एक तरफ जहाँ पूरा देश कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए एकजुट है वहीँ कुछ असामाजिक तत्व इस मौके पर अपने संकीर्ण एजेंडा को बढ़ाने की जुगत में लगे हैं. अभी हाल में घटित महाराष्ट्र के पालघर की घटना से पूरा देश स्तब्ध है. अब उन्मादी भीड़ को हिरासत में लिए जाने के समाचार आ रहे हैं किन्तु उन अफवाहबाजों पर किसी का ध्यान नहीं है जिन्होंने इलाके में बच्चा चोर गिरोह के सक्रिय होने की अफवाह सोशल मीडिया पर चलायी. यही नहीं पालघर की घटना के उपरांत इसे सांप्रदायिक रंग देते हुए बहु संख्यक समुदायों को धर्म के आधार पर उत्तेजित करने की कोशिशें भी शुरू कर दी गयी. कुछ ऐसा ही प्रयास उत्तराखंड के वन गुर्जरों के खिलाफ माहौल बनाने के लिए किया जा रहा है.

लॉकडाउन के चलते पहाड़ों की तरफ अपने मवेशियों के साथ सीजनल पलायन करने वाले गुर्जरों की जिन्दगी शिवालिक के जंगलों में फिलहाल थमी हुई है. गर्मी के बढ़ते ही शिवालिक के अधिकांश जलस्रोत सूख जाते हैं, जंगलों से पर्याप्त चारा भी नहीं मिल पाता और आग का भय अलग से बना रहता है. इस दिनों दून घाटी के कारबारी ग्रांट से शिवालिक की दिशा में कड़वा पानी के (कड़वा राव) इलाके में गुर्जरों के अनेक डेरे जमा हो रखे हैं. कड़वा राव शिवालिक के उन गिने चुने जल स्त्रोतों में है जहाँ साल भर पानी मिल जाता है. फिलवक्त दूनघाटी के वन गुर्जर अपनी विशिष्ट जीवनशैली के चलते अनेक समस्याओं से जूझ रहे हैं इनमे से कुछ समस्याएँ उसी अफवाहबाजी के चलते पैदा हो रही हैं जिनसे संकट की इस घडी में पूरा देश त्रस्त है.

यदि कोरोना वायरस के सेफ्टी प्रोटोकॉल की दृष्टि से देखें तो वन गुर्जरों की परंपरागत जीवन शैली संक्रमण से फैलने वाली बिमारियों से बचाव करने में पूर्णत: सहायक है. कारण यह की वन गुर्जरों के डेरे परंपरागत रूप से सोशल आइसोलेशन की पद्धति का अनुशरण करते आ रहे हैं जंगलों के विस्तार में गुर्जरों के डेरे एक दूसरे से काफी दूरी पर लगाये जाते हैं जिस से मनुष्यों और पशुओं में संक्रमण की संभावना बहुत कम हो जाती है. इन दूरियों के बावजूद इनका समृद्ध सामाजिक/सांस्कृतिक ताना-बाना एक समुदाय के रूप में धड़कता रहता है. वन गुर्जरों के प्रधान मुस्तफा चोपड़ा कहते हैं कि 1864 से उनके पूर्वज यही रह रहे हैं। लेकिन कभी उन्होंने और उनके पूर्वजों ने ऐसा समय नहीं देखा. मुस्तफा चोपड़ा मानते है कि इस समय वन गुर्जरों की हालत बड़ी खराब है।

क्रोनोलोजी के फलसफे के अनुसार पहले सवाल पैदा होता है !

पिछले कुछ दिनों से अफवाहों के बाज़ार में गुर्ज़रों को निशाना बनाते हुए कहा जा रहा है कि गुर्ज़रों के दूध का बहिष्कार करो. इस हेतु विचित्र तर्क दिए जा रहे हैं कि गुर्जरों के डेरे में कोरोना वायरस फैल गया है अथवा ये कि गुर्जर दूध में थूकते हैं. इसके पीछे वन गुर्जरों के एक मात्र व्यवसाय को निशाना बना कर उनकी आर्थिकी को ख़त्म करने के प्रयास हैं. सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के इस माहौल में कोई अफवाहबाज़ से यह सवाल भी नहीं पूछता कि यदि गुर्जर परिवार कोरोना वायरस से ग्रस्त हैं तो लोकहित में यह सूचना प्रशासन को क्यों नहीं दी जा रही है.

इस प्रकरण में #जनसंवाद का सुझाव है कि यदि किसी के पास सोशल मिडिया अथवा व्यक्तिगत रूप से गुर्जर समुदाय के प्रति कोई दुर्भावनापूर्ण सूचना पहुंचे तो पहले यह सुनिचित कर लें कि कहीं वह व्यक्ति अथवा ग्रुप स्वयं अफवाहों से संक्रमित तो नहीं है तथा उसने उक्त सूचना को व्यापक हित में ओपचारिक रूप से प्रशासन को क्यों नहीं अवगत करवाया. यकीन मानिये आपका यह छोटा सा सवाल उस बीमारी की रोकथाम में सहायता करेगा जिसे टारगेटेड ‘अफवाहबाज़ी’ कहते हैं. क्रोनोलोजी के फलसफे के अनुसार पहले सवाल पैदा होता है फिर उसका उत्तर जन्म लेता है. सवाल पूछना आपके जिन्दा होने का संकेत है

उत्तराखंड गजेटियर की रिपोर्ट

While the entire nation is united to prevent the infection of Corona virus, some anti-social elements are trying to increase their narrow agenda on this occasion. The whole country is shocked by the recent incident in Palghar in Maharashtra. Now news of detention of the frenzied mob is coming, but no attention is paid to the rumors which triggered rumors of child thief gang operating in the area on social mediaNot only this, after the incident of Palghar, giving it a communal color, efforts were made to incite the majority of the communities on the basis of religion. Some similar efforts are being made to create an atmosphere against the forest Gurjars of Uttarakhand.

The life of the Gurjars who make seasonal migrations with their cattle towards the mountains due to the lockdown is currently stagnant in the forests of Shivalik. Most of the Rival of Shivalik dries up as the heat rises,Not enough fodder is available from the forests and there is also a fear of fire. These days, many camps of Gurjars have gathered in the bitter area of bitter water in the direction of Shivalik from the business grant of Doon Valley. Kadva Rao is among the few water sources of Shivalik where water is available throughout the year. At present, the forest Gujjars of Doonghati are struggling with many problems due to their specific lifestyle, some of which are arising due to the same rumor that the whole country is suffering in this time of crisis.From the point of view of the safety protocol of the corona virus, the traditional lifestyle of forest Gujjars is completely helpful in protecting against the spread of infection. The reason is that the forest Gujjars have been traditionally following the method of social isolation, in the extension of forests, Gurjars’ camps are placed at great distance from each other, which reduces the chances of infection between humans and animals.Despite these distances, their rich social / cultural fabric keeps on beating as a community. Mustafa Chopra, the head of forest Gurjars, says that his ancestors have been living since 1864. But he and his ancestors never saw such a time. Mustafa Chopra believes that the condition of forest Gurjars is very bad at this time.For the past few days, targeting the Gujjars in the market of rumors, it is being said that boycott the milk of Gujjars. Bizarre arguments are being made for this that the corona virus has spread in the Gujjars camp or that the Gurjars spit in milk. Behind this, there are efforts to end the economy of forest Gurjars by targeting the only business.In this atmosphere of communal polarization, no one asks a rumor that if the Gurjar family is suffering from Corona virus, then why is this information not being given to the administration in the public interest.

In this case, #jansamvad suggests that if anyone has any malicious information about the social media or the Gurjar community in person, first make sure that the person or group itself is infected with the rumors and why did he not inform the said information formally to the administration in the larger interest. Believe it your little question will help in the prevention of that disease which is called Targeted ‘rumor’. According to the philosophy of chronology, the first question arises and then the answer is born. Asking questions is a sign of your life

https://jansamvadonline.com/in-context/who-is-wetting-our-gunpowder/

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