9 अप्रेल महाविद्राेही राहुल सांकृत्यायन का जन्मदिवस होता है। भारतीय इतिहास में ऐसे प्रचण्ड तूफानी व्यक्तित्व बहुत कम हैं। बहुत छाेटी उम्र में घर परिवार से निकल पड़ना, फिर महन्त बने, महन्त से आर्यसमाजी, फिर बौद्ध और अन्त में कम्युनिस्ट, दुनिया काे देखा किताबाें में नहीं बल्कि संघर्ष भरी यात्रा में। लाेगाें से संवाद किया। 36 भाषायें सीख डाली। किसानाें की लड़ाई लड़ते हुए कई बार जेल गये। जाति-मजहब और पुरानी रूढियाें काे विचाराें की ताप से जलाकर भस्म कर दिये। लिखते-पढ़तेे-लड़ते-लाेगाें की मानसिक गुलामी पर चाेट करते हुए वाे अन्तिम सांस लिये। आज इस मौके पर पेश हैं राहुल सांकृत्यायन की किताबाें से कुछ उद्धरण,

  • हमें अपनी मानसिक दासता की बेड़ी की एक-एक कड़ी को बेदर्दी के साथ तोड़कर फ़ेंकने के लिए तैयार रहना चाहिये। बाहरी क्रान्ति से कहीं ज्यादा ज़रूरत मानसिक क्रान्ति की है। हमें आगे-पीछे-दाहिने-बांये दोनों हाथों से नंगी तलवारें नचाते हुए अपनी सभी रुढ़ियों को काटकर आगे बढ़ना होगा।
  • असल बात तो यह है कि मज़हब तो सिखाता है आपस में बैर रखना। भाई को सिखाता भाई है का खून पीना। हिन्दुस्तानियों की एकता मज़हब के मेल पर नहीं होगी, बल्कि मज़हबों की चिता पर। कौव्वे को धोकर हंस नहीं बनाया जा सकता। कमली धोकर रंग नहीं चढ़ाया जा सकता। मज़हबों की बीमारी स्वाभाविक है। उसकी मौत को छोड़कर इलाज नहीं।
  • यदि जनबल पर विश्‍वास है तो हमें निराश होने की आवश्यकता नहीं है। जनता की दुर्दम शक्ति ने, फ़ासिज्म की काली घटाओं में, आशा के विद्युत का संचार किया है। वही अमोघ शक्ति हमारे भविष्य की भी गारण्टी है।
  • रूढ़ियों को लोग इसलिए मानते हैं, क्योंकि उनके सामने रूढ़ियों को तोड़ने वालों के उदाहरण पर्याप्त मात्रा में नहीं है।
  • हमारे सामने जो मार्ग है उसका कितना ही भाग बीत चुका है, कुछ हमारे सामने है और बहुत अधिक आगे आने वाला है। बीते हुए से हम सहायता लेते हैं, आत्मविश्वास प्राप्त करते हैं, लेकिन बीते की ओर लौटना कोई प्रगति नहीं, प्रतिगति-पीछे लौटना होगा। हम लौट तो सकते नहीं क्योंकि अतीत को वर्तमान बनाना प्रकृति ने हमारे हाथ में नहीं दे रखा है।
  • जाति-भेद न केवल लोगों को टुकड़े-टुकड़े में बाँट देता है, बल्कि साथ ही यह सबके मन में ऊँच-नीच का भाव पैदा करता है। हमारे पराभव का सारा इतिहास बतलाता है कि हम इसी जाति-भेद के कारण इस अवस्था तक पहुँचे। ये सारी गन्दगियाँ उन्हीं लोगों की तरफ से फैलाई गयी हैं जो धनी हैं या धनी होना चाहते हैं। सबके पीछे ख्याल है धन बटोरकर रख देने या उसकी रक्षा का। गरीबों और अपनी मेहनत की कमाई खाने वालों को ही सबसे ज्यादा नुकसान है, लेकिन सहस्राब्दियों से जात-पाँत के प्रति जनता के अन्दर जो ख्याल पैदा किये गये हैं, वे उन्हें अपनी वास्तविक स्थिति की ओर नजर दौड़ाने नहीं देते। स्वार्थी नेता खुद इसमें सबसे बड़े बाधक हैं।
  • धर्मों की जड़ में कुल्हाड़ा लग गया है, और इसलिए अब मजहबों के मेल-मिलाप की बातें भी कभी-कभी सुनने में आती हैं। लेकिन, क्या यह सम्भव है ‘मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना’ -इस सफेद झूठ का क्या ठिकाना। अगर मजहब बैर नहीं सिखलाता तो चोटी-दाढ़ी की लड़ाई में हजार बरस से आजतक हमारा मुल्क पागल क्यों है पुराने इतिहास को छोड़ दीजिये, आज भी हिन्दुस्तान के शहरों और गाँवों में एक मजहब वालों को दूसरे मजहब वालों का खून का प्यासा कौन बना रहा है कौन गाय खाने वालों से गो न खाने वालों को लड़ा रहा है असल बात यह है – ‘मजहब तो है सिखाता आपस में बैर रखना। भाई को है सिखाता भाई का खून पीना।’ हिन्दुस्तान की एकता मजहबों के मेल पर नहीं होगी, बल्कि मजहबों की चिता पर होगी। कौवे को धोकर हंस नहीं बनाया जा सकता। कमली धोकर रंग नहीं चढ़ाया जा सकता। मजहबों की बीमारी स्वाभाविक है। उसकी मौत को छोड़कर इलाज नहीं है।
  • धर्म आज भी वैसा ही हज़ारों मूढ़ विश्वासों का पोषक और मनुष्य की मानसिक दासता का समर्थक है जैसा पाँच हज़ार वर्ष पूर्व था।… सभी धर्म दया का दावा करते हैं, लेकिन हिन्दुस्तान के इन धार्मिक झगड़ों को देखिये तो मनुष्यता पनाह माँग रही है।”

 

9 April is the birthday of Mahavidrahi Rahul Sankrityayan. There are very few such stormy personalities in Indian history. Moving from family to family at a very young age, then became Mahant, Mahant to Aryasamaji, then Buddhist and finally Communist, saw the world not in books but in a journey of struggle. Communicated with Lagaen. Learned 36 languages. Went to jail many times while fighting the battle of the peasants. The caste-religion and old traditions were burned by the heat of the thoughts.Chanting on mental slavery while writing, studying and fighting, he breathed his last. Here are some quotes from the books of Rahul Sankrityayan on this occasion,
We must be ready to throw each link of our mental slavery into a piece of brutality. More than external revolution, mental revolution is needed. We have to cut forward all our stances by drawing drawn swords with both hands, right and back and left.
The real thing is that religion teaches hatred among themselves. The brother teaches brother to drink blood. The unity of Hindustanis will not be on the combination of religion, but on the creed of religions. Crows cannot be washed and swan. Kamali cannot be washed and dyed. Religion disease is natural. No treatment except his death.
If there is confidence in manpower then we need not be disappointed. The ruthless power of the masses has, in the dark circles of fascism, infused the power of hope. The same unfailing power is also a guarantee of our future.
People believe in stereotypes because they do not have enough examples of those who break stereotypes.
No matter how much of the path has passed before us, something is in front of us and much is going to come forward. We seek help from the past, gain confidence,But to return to the past is no progress, to return backward. We cannot return because nature has not given it to us to make the past present.
Caste-distinction not only divides people into pieces, but at the same time it creates a sense of high and low in everyone’s mind.The entire history of our defeat tells us that we reached this stage due to this caste-discrimination. All these dirty things have been spread by those who are rich or want to be rich. The idea behind all is to collect or keep the money. The poor and those who earn their hard-earned money are the biggest losers, but the thoughts that have been created in the public towards casteism for millennia, do not let them run towards their real situation. Selfish leaders themselves are the biggest deterrent in this.
At the root of religions, an ax has been planted, and so now the reconciliation of religions is sometimes heard. However, is it possible that religion does not teach hatred among themselves – what is the point of this white lie. If religion does not teach hatred, then why is our country crazy for a thousand years in the battle of top-beard, leave the old history, even today, in the cities and villages of India, who is making one religion people thirsty for the blood of other religious peopleWho is fighting the cow eaters and those who do not eat cow, the real thing is – ‘religion is teaching teaches hatred among themselves. Bhai is taught to drink the blood of brother. ”The unity of India will not be on the peace of religion, but on the funeral pyre of religions. Crows cannot be washed and swan. Kamali cannot be washed and dyed. The religion of religion is natural. There is no cure except for his death.
Religion is still the creator of thousands of foolish beliefs and advocates for the mental enslavement of man like it was five thousand years ago.… All religions claim mercy, but looking at these religious conflicts in India, mankind is seeking refuge. ”