कोरोना वायरस

कोरोना वायरस को महामारी का दर्जा दिया जा चुका है। पूरी दुनिया इसके प्रकोप या उसकी आशंका से लगभग कांप रही हैं। मगर कुछ हैं, जिन्हे इसमें भी कमाई के अवसर और मुनाफ़ों के पहाड़ नजर आ रहे हैं। हमारे देश में मास्क और हाथधुलाऊ तरल – सेनेटाइजर – दस से बीस गुनी कीमत पर बेचे जाने की खबरें आम हो गयी हैं। मौत से डराकर की जा रही यह कमाई किसी भी तरह व्यापार या धंधे की परिधि में नहीं आती, तब भी इसकी आड़ में बाकी जो हो रहा है उसकी तुलना में ये बहुत मामूली-सी चिंदीचोरी है। हालांकि ऐसा करने वालों के प्रोफाइल की एकरूपता विडंबना उजागर करती हैं ; ये वे ही हैं, जो सुबह से शाम तक राष्ट्रवाद के तमगे बाँटते हैं और मुसीबत पड़ने पर राष्ट्रवासियों की जेब काटते हैं। बहरहाल दोष इनका नहीं, उस सांचे का है, जिसने इन्हें इस तरह ढाला।

बादल सरोज संयुक्त सचिव (अ.भा.किसान सभा)

कोरोना प्रकोप के विश्वव्यापी होने के साथ ही दुनिया भर के कार्पोरेट्स को तो जैसे कमाई और लूट का नया पासवर्ड ही मिल गया है। अमरीकी कारपोरेट ने अपने प्रिय-तम राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के साथ मिलकर इस मौके का किस तरह इस्तेमाल किया है, इसका विवरण कनाडा की लेखिका और फिल्मकार नाओमी क्लेन ने विस्तार से दिया है। वे बताती हैं कि इस आड़ में सबसे पहले तो ट्रम्प प्रशासन ने मंदी और दिवालियेपन के संकट से जूझ रहे कारपोरेट के लिए बेलआउट पैकेज जारी कर दिए और उसके साथ जितने भी नियामक प्रतिबन्ध थे, उन्हें वापस लेकर खुली छूट दे दी। अगला और कहीं ज्यादा सीधे-सीधे संहार की स्थित पैदा करने वाला काम यह किया कि पे-रोल टैक्स का एलान कर दिया, जिससे सामाजिक सुरक्षा योजना के लगभग दिवालिया हो जाने की आशंका पैदा हो गयी है। नाओमी कहती हैं कि अगले कुछ दिनों में ट्रम्प सामाजिक सुरक्षा योजना का पूरी तरह निजीकरण भी कर दें, तो ताज्जुब नहीं होना चाहिए। गौरतलब है, कुछ दिन पहले अमरीकी राष्ट्रपति ने कोरोना के लिए उपलब्ध सस्ती दवाइयों के बदले एक ऐसी दवा की “सलाह” दी थी जिसे बनाने वाली कंपनी में खुद उनकी भागीदारी है। यह उस अमरीका में हो रहा है, जिसके बारे में स्वास्थ्य शोध से जुड़े संगठनो का मानना है कि यदि कोरोना वायरस ने महामारी की शक्ल ली, तो अकेले अमरीका में करीब 22 लाख लोग मौत के मुंह में जा सकते हैं।

नाओमी के अनुसार ट्रम्प की प्राथमिकताएं क्या है, यह इसी से स्पष्ट हो जाता है कि उन्होंने जिनके लिए मदद का एलान किया है वे एयरलाइन्स, क्रूज कंपनियां, कोयले और पेट्रोल की कंपनियां हैं, जो प्रदूषण की सबसे बड़ी जिम्मेदार हैं। दो दिन पहले ट्रम्प अमरीकी जनता के स्वास्थ्य के सबसे बड़े मुजरिम स्वास्थ बीमा की निजी कंपनियों के प्रमुखों के साथ मीटिंग कर चुके हैं।

इटली में महामारी इतनी तेजी से फैली है कि( देखने के लिए यहाँ क्लिक करें ) वहां की सरकार ने अब कोरोना-ग्रसित बुज़ुर्गों को अपनी मौत मरने के लिए छोड़ दिया है। बाकी कारपोरेट संचालित पूंजीवादी देशों की भी स्थिति यही है। इनके कफ़न खसोट कारपोरेट अपने कबरबिज्जू चाकर राजनेताओं के जरिये अपने खजाने भरने के रास्ते तलाश रहे हैं। वैश्विक आर्थिक मंदी के चलते हुए नुकसान (कम कमाई) से उबरने के लिए कोरोना को उपयोग में लाना चाहते हैं।

भारत में समस्या त्रि-आयामी है। पहली तो केंद्र सरकार का हद दर्जे का गैरजिम्मेदार और “किफायती” रवैया है, जो 14 मार्च को निकले गृह मंत्रालय के नोटिफिकेशन में कुछ ही घंटों में किये “संशोधन” से स्पष्ट हो जाता है। इस नोटिफिकेशन में गृह मंत्रालय ने कहा था कि सारे कोरोना पीड़ितों के इलाज का खर्चा सरकार उठायेगी। यह भी कहा गया था कि कोरोना पीड़ितों की मौत हो जाने पर उसके परिजनों को 4 लाख रूपये का मुआवजा दिया जाएगा। कुछ ही घंटों बाद जारी संशोधित नोटिफिकेशन में से यह दोनों बातें हटा दी गयीं। मतलब न अब सरकार इलाज में कोई मदद करेगी, न मौत पर कोई राहत देगी। जो हुकूमत अपने मात्र छह साल के कार्यकाल में कारपोरेट को 25-30 लाख करोड़ रुपया भेंट कर चुकी हो, जो घोटालेबाज यस बैंक को बचाने के लिए स्टेट बैंक और एलआईसी की जमा-पूंजी दांव पर लगा रही हो – उसके पास इस महामारी के लिए छदाम भी नहीं है!! इतना ही नहीं, खुद प्रधानमंत्री संकेत दे चुके हैं कि उनकी सरकार कोरोना के मुकाबले के लिए जल्द ही कोई टैक्स ला सकती है। यह टैक्स किन पर लगेगा, यह अंदाज लगाने के लिए इसके लिए हॉर्वर्ड में पढ़ा लिखा होना जरूरी नहीं। *खून में व्यापार सिंड्रोम* इसी को कहते हैं।

सवा अरब – कोई 130 करोड़ – आबादी इस तरह दुनिया के दूसरे सबसे बड़ी जनसंख्या वाले देश में, सरकारी अस्पतालों में कोरोना जांच के लिए मुम्बई के एक बड़े डॉक्टर के मुताबिक़, कुल जमा डेढ़ लाख किट बताई जाती हैं। दिल्ली के एक सरकारी अस्पताल के चिकित्सक की लीक हुयी निजी बातचीत के अनुसार ज्यादा टैस्ट इसलिए नहीं कर रहे, क्योंकि उनमें यदि कोई पॉजिटिव निकला, तो हमारे पास इतना इंतजाम नहीं है कि उसे संभाल सकें। यह एक भयावह स्थिति है। इसका समाधान भाषणों और जुमलों से नहीं होगा।

दूसरी समस्या ठेठ हिन्दुस्तानी प्रजाति की है। इसके उपचार की अनेकानेक मौलिक विधियों की बाढ़-सी आ गयी है। इनमे सर्वाधिक लोकप्रिय है गोबर और गौमूत्र, जिसे रामबाण बताकर दरअसल महामारी को न्यौता दिया जा रहा है। यह मोरोना (मूर्खता का) वायरस है। दिक्कत यह है कि खुद सरकार में बैठे लोग इसे प्रचारित कर रहे हैं। एक तरफ प्रधानमंत्री यह सलाह दे रहे हैं कि “सुनी सुनाई बातों या अफवाहों पर भरोसा मत कीजिये।” दूसरी तरफ खुद आयुष जैसा सरकारी विभाग, जिसका मंत्री स्वयं एक सचमुच की डिग्री वाला डॉक्टर है, बिना किसी तरह की वैज्ञानिक पुष्टि के कभी होम्योपैथी, तो कभी यूनानी दवाओं में इसका इलाज बता रहा है।

तीसरी समस्या – हाल के दिनों में लगभग महामारी बन चुकी समस्या – व्हाट्सप्प यूनिवर्सिटी की है, जिसने दुनिया भर में देश का मजाक बनाकर रख दिया है। बजाय बीमारी के वैज्ञानिक विवेचन के इस अवसर का इस्तेमाल भी जिस तरह झूठ और अज्ञान, उन्माद और बिखराव पैदा करने के लिए किया जा रहा है, वह एक बेहद व्यापक और सर्वग्रासी हो चुकी मानसिक रुग्णता के सिवा कुछ नहीं है।

कोरोना वायरस एक वैज्ञानिक वास्तविकता है, हालांकि इसकी मृत्युदर सिर्फ 2 प्रतिशत के आसपास है, लेकिन सौ में से दो भी कोई कम संख्या नहीं है। खासतौर से तब जब कि सावधानी और सजगता से इससे बचा जा सकता हो। महामारियां और हादसे सबक भी होते हैं, अवसर भी होते हैं। दुनिया में महामारियों के धक्कों ने जनता को रईसों की ऐसी लूट का जरिया बनाया है, जिससे उबरने में उन्हें दसियों साल लग गए; तो कई बार ऐसी प्रगतिकामी जीतों को हासिल करने का माध्यम भी बनी हैं, जिनके बारे में कुछ सप्ताह पहले किसी ने सोचा भी नहीं था। इनमें से क्या होने जा रहा है, इसका निर्णय आने वाले कुछ दिन करेगे। यह जागरूक भारतीयों पर निर्भर करेगा कि इस निर्णय का इंतज़ार करेंगे या उसे मनुष्यता के पक्ष वाला बनाने के लिए कुछ करेंगे।

बादल सरोज – संयुक्त सचिव (अ.भा.किसान सभा)

 

The corona virus has been given epidemic status. The whole world is almost shivering from its wrath or apprehension. But there are some, who also see mountains of earning opportunities and profits in it. In our country, reports of masks and handwashing liquid – sanitizers – being sold at ten to twenty times the price have become common. This income, being scared of death, does not come under the purview of business or business in any way, even then it is a very minor cindy compared to what is happening under the cover of it.However, the uniformity of the profiles of those who do so is ironic; These are the ones who share the elements of nationalism from morning to evening and cut the pockets of the nationalists in case of trouble. However, it is not his fault, but the mold that molded him in this way.With the global outbreak of Corona, corporates around the world have got new passwords like money and loot. How has the US corporate used this opportunity in collaboration with their beloved President Donald Trump,It is described in detail by Canadian writer and filmmaker Naomi Klein. She says that under this guise, the Trump administration first issued bailout packages for corporates struggling with recession and insolvency and withdrew free of any regulatory restrictions. The next and more straightforward genocidal situation was that the pay roll tax was announced, raising the possibility of the Social Security Scheme becoming almost bankrupt.It should not be surprising if Naomi says that Trump should fully privatize the social security plan in the next few days. Significantly, a few days ago, the US President “advised” a drug that he himself owns in partnership with the company in exchange for the cheaper medicines available for Corona. This is happening in the United States, about which health research organizations believe that if the corona virus caused the epidemic, then in the US alone, about 2.2 million people can die.According to Naomi, what Trump’s priorities are, it is clear from this that those whom he has announced help are airlines, cruise companies, coal and petrol companies, which are responsible for the biggest pollution. Two days ago, Trump held a meeting with the heads of private companies of health insurance, the largest criminal in American public health.The epidemic has spread so rapidly in Italy that the government there has now left the Corona-afflicted elderly to die. The same is true for other corporate-driven capitalist countries. Their Kafan Khasot corporates are looking for ways to fill their coffers through politicians with their own curb. Want to use Corona to recover from losses (low earnings) due to global economic slowdown.The problem in India is three-dimensional. The first is the irresponsible and “economical” attitude of the central government to the extent, which is evident from the “amendment” made in a few hours in the notification of the Ministry of Home Affairs released on 14 March. In this notification, the Ministry of Home Affairs had said that the government will bear the expenses for the treatment of all Corona victims. It was also said that upon the death of the corona victims, their families would be given compensation of Rs 4 lakh.Both these things were removed from the revised notifications issued a few hours later. Meaning, now the government will not help in the treatment, nor will it give any relief on the death. The government, which in its mere six-year tenure, has offered Rs 25-30 lakh crore to the corporate, which is putting the deposits of State Bank and LIC at stake to save the scammer Yes Bank – for this epidemic Not even a camouflage !! Not only this, the Prime Minister himself has indicated that his government may soon bring some tax to combat Corona.To guess who this tax will be levied, it is not necessary to be read in Harvard for this. * Business syndrome in blood * This is called.A quarter of a quarter of a billion – some 130 crore – in the world’s second-largest population, according to a leading doctor in Mumbai, a total of one and a half million kits are reported for corona examination in government hospitals. According to the leaked private conversation of a doctor of a government hospital in Delhi, they are not doing much test,Because if any positive turns out in them, then we do not have enough arrangements to handle it. This is a terrible situation. Speeches and jumals will not solve this.The second problem is of the typical Indian species. There have been a flood of many fundamental methods of its treatment. The most popular among them are cow dung and cow urine, which is being called a panacea and is actually inviting the epidemic. It is the Morona (foolish) virus. The problem is that people sitting in the government themselves are promoting it.On the one hand, the Prime Minister is advising that “Do not rely on heard things or rumors.” On the other hand, a government department like Ayush itself, whose minister himself is a doctor with a genuine degree, is referring to homeopathy and treatment in Unani medicines without any scientific confirmation.The third problem – a problem that has become almost epidemic in recent times – is that of Whatsapp University, which has made fun of the country around the world.Instead, this opportunity of scientific deliberation of the disease, which is being used to create lies and ignorance, hysteria and disintegration, is nothing but a very widespread and ubiquitous mental illness.The corona virus is a scientific reality, although its mortality is only around 2 percent, but no less than two out of a hundred. Especially when it can be avoided with caution and alertness.Pandemics and accidents are lessons, there are opportunities. The pandemics of the epidemics in the world have made the public such a plunder of the nobles, which took them tens of years to recover; So many times it has also become a medium to achieve such progressive victories, which no one had thought of a few weeks ago. What is going to happen will be decided by the next few days. It will be up to the conscious Indians to wait for this decision or do something to make it humanitarian.

 

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