मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने विधानसभा के आगामी सत्र में नागरिकता संधोधन कानून और एक राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनसीआर) बनाने के मोदी सरकार के मंसूबे के खिलाफ प्रस्ताव पारित करने की मांग की है। माकपा ने राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) तैयार करने हेतु राज्य सरकार द्वारा अक्टूबर में जारी अधिसूचना को भी वापस लेने की मांग की है।
आज यहां जारी एक विज्ञप्ति में माकपा राज्य सचिवमंडल ने कहा है कि एनआरसी की पहली सीढ़ी एनपीआर ही है। अतः जो लोग और सरकारें नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ हैं, उन्हें एनपीआर रोकने के लिए कदम उठाना होगा, जैसा कि केरल में वाम मोर्चा सरकार ने किया है। इसीलिए माकपा ने जनगणना में एनपीआर से संबंधित सवालों का जवाब न देने की अपील के साथ देशव्यापी अभियान चलाने का फैसला किया है।
माकपा राज्य सचिव संजय पराते ने कहा है कि भले हो मोदी सरकार ने केंद्र में अपने बहुमत के बल पर संविधानविरोधी नागरिकता कानून पारित कर दिया हो, लेकिन इसे एनपीआर के जरिये लागू करने का रास्ता राज्यों से होकर ही जाता है। राज्य सरकार को चाहिए कि विधानसभा में इस संबंध में प्रस्ताव पारित कराएं।
उन्होंने कहा कि यह आश्चर्यजनक है कि एनपीआर न होने देने की मुख्यमंत्री के बार-बार के वादे के बावजूद इस संबंध में अक्टूबर में ही अधिसूचना जारी होने के प्रमाण सामने आ गए हैं। इससे सरकार की असली मंशा पर ही सवाल उठ गए हैं। इस पर सरकार को स्पष्टीकरण देना चाहिए और सरकार को अंधेरे में रखकर उसकी नीतियों के खिलाफ अधिसूचना जारी करने वाले अधिकारियों के खिलाफ कार्यवाही करना चाहिए। पराते ने कहा कि कांग्रेस सरकार को इस अधिसूचना को तुरंत वापस लेना चाहिए और एनपीआर न होने देने के लिए एक नई अधिसूचना जारी करनी चाहिए, ताकि भ्रम और संदेह का वातावरण दूर हो।