शैलेश मटियानी राज्य पुरस्कार से सम्मानित होने पर राजकीय इण्टर कॉलेज गोर्ती लस्या के प्रवक्ता वीरेन्द्र सिंह नेगी का विद्यालय में नागरिक अभिनन्दन
रुद्रप्रयाग, राइंका गोर्ती लस्या के प्रधानाचार्य रोशन लाल सुपरियाल ने वीरेन्द्र सिंह नेगी का विद्यालय परिवार की ओर से नागरिक अभिनन्दन करते हुए कहा कि यह हमारे लिए गौरव की बात है। उन्होंने कहा कि नेगी को वर्ष 2015 के लिए जनपद उत्तरकाशी में शिक्षा के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने के लिए पुरस्कृत किया गया है। वर्तमान में पदोन्नत होकर राइंका गोर्ती आए वीरेंद्र सिंह नेगी की कार्यकुशलता और अनुभव का लाभ विद्यालय को मिलेगा। इस मौके पर प्रवक्ता वीरेन्द्र सिंह नेगी ने विद्यालय द्वारा आयोजित अभिनन्दन कार्यक्रम को लकर आभार व्यक्त किया। कहा कि विद्यालय के सर्वांगीण विकास के लिए वह निरंतर प्रयास करेंगे।
शैलेश मटियानी का जन्म 14 अक्टूबर 1931 को अल्मोड़ा जिले के बाड़ेछीना गांव में हुआ था. उनका मूल नाम रमेशचंद्र सिंह मटियानी था तथा आरंभिक वर्षों में वे रमेश मटियानी ‘शैलेश’ नाम से लिखा करते थे. मटियानी जी जब बारह वर्ष (1943) के ही थे तभी उनके माता-पिता का देहांत हो गया. उस समय वे पांचवीं कक्षा में पढ़ रहे थे. चाचाओं के संरक्षण में परिस्थितियां कुछ ऐसी विलोम हो गई कि उन्हें पढ़ाई छोड़ बूचड़खाने तथा जुए की नाल उघाने का नाम करना पड़ा. इसी दौरान पांच सालों के बाद वे किसी तरह पढ़ाई शुरू करके मिडिल तक पहुँचे और काफी विकट परिस्थितियों के बावजूद हाईस्कूल पास कर गए. लेखक बनने की उनकी इच्छा बड़ी जिजीविषापूर्ण थी. अल्मोड़ा के घनघोर आभिजात्य के तिरस्कार से तंग आकर वे 1951 में दिल्ली आ गए और ‘अमर कहानी’ के संपादक आचार्य ओमप्रकाश गुप्ता के यहां रुके. ‘अमर कहानी’ और ‘रंगमहल’ से उनकी कहानी तब-तक प्रकाशित हो चुकी थी. इसके बाद उन्होंने साहित्य की उर्वर भूमि इलाहाबाद जाने का निश्चय किया. इसके लिए पैसे की व्यवस्था उन्होंने ‘अमर कहानी’ के लिए ‘शक्ति ही जीवन है’ (1951) और ‘दोराहा’ (1951) नामक लघु उपन्यास लिखकर की. इलाहाबाद में शमशेर बहादुर खां को छोड़कर क्षितींद्र और सुमित्रानंदन पंत सभी ने उन्हें दुत्कारा. उसके बाद उन्होंने इलाहाबाद छोड़ दिया और मुजफ्फरनगर में एक सेठ के घर घरेलू नौकर का काम किया. फिर दिल्ली आकर कुछ समय रहने के बाद वे बंबई चले गए. फिर पांच-छह वर्षों तक उन्हें फुटपाथों पर सोना, फेंके हुए भोजन खाना, खून बेचना, भिखांड़यों की पंगत में बैठना जैसे कई अनुभवों से गुजरना पड़ा. 1956 में श्रीकृष्ण पुरी हाउस में प्लेटें साफ करने का काम मिला और अगले साढ़े तीन साल तक वे वहीं रहे और लिखते रहे. बंबई से फिर अल्मोड़ा और दिल्ली होते हुए वे इलाहाबाद आ गए और फिर कई वर्षों तक यहीं रहे. उन्होंने ‘विकल्प’ और ‘जनपक्ष’ पत्रिका भी निकाली. अपने छोटे बेटे की मृत्यु के बाद (1992) में उनका मानसिक संतुलन डगमगा गया. 1992 में कुमाऊं विश्वविद्यालय ने उन्हें डी. लिट. की मानद उपाधि से सम्मानित किया. जीवन के अंतिम वर्षों में वे हल्द्वानी आ गए. विक्षिप्तता की स्थिति में उनकी मृत्यु 24 अप्रैल 2001 को दिल्ली के शहादरा अस्पताल में हो गई .
मटियानी जी में बचपन से ही एक लेखक बनने की धुन थी जो विकट से विकटतर परिस्थितियों के बावजूद न टूटी. 1950 से ही उन्होंने कविताएं, कहानियां लिखनी शुरू कर दी परंतु अल्मोड़ा में उन्हें उपेक्षा ही मिली. हालांकि मटियानी जी ने आरंभिक वर्षों में कुछ कविताएं भी लिखी परंतु वे मूलत एक कथाकार के रूप में प्रतिष्ठित हुए. अगर विश्वस्तरीय प्रमुख कहानियों की सूची बनाई जाए तो उनकी दस से ज्यादा कहानियां सूची में शामिल होंगी. उनकी आरंभिक पंद्रह-बीस कहानियां ‘रंगमहल’ और ‘अमर कहानी’ पत्रिका में छपी थी. उनका पहला कहानी संग्रह ‘मेरी तैंतीस कहानियां’(1961) के नाम से संग्रहित हैं. मटियानी जी की कालजयी कहानियां में ‘डब्बू मलंग’, ‘रहमतुल्ला’, ‘पोस्टमैन’, ‘प्यास और पत्थर’, ‘दो दुखों का एक सुख’, ‘चील’, ‘अर्द्धांगिनी’, ‘ जुलूस’, ‘महाभोज’, ‘भविष्य’, और ‘मिट्टी’ आदि प्रमुख हैं. ‘डब्बू मलंग’ एक दीन-हीन व्यक्ति की कथा है जिसे कुछ गुंडे पीर घोषित कर लोगों को ठगते हैं. ‘रहमतुल्ला’ कहानी सांप्रदायिक स्थितियों पर कठोर व्यंग्य है. ‘चील’ मटियानी जी की आत्मकथात्मक कहानी है जिसमें भूख की दारूण स्थितियों का चित्रण है. ‘दो दुखों का एक सुख’ मैले-कुचैले भिखाड़ियों की जीवन की विलक्षण कथा है. ‘अर्द्धांगिनी’ दांपत्य सुख की बेजोड़ कहानी है. एक कहानीकार के रूप में वे नई कहानी आंदोल के सबसे प्रतिबद्ध कहानीकार हैं. जिन्होंने बजाय किसी विदेशी प्रभाव के अपने मिट्टी की गंध और विशाल जीवन अनुभव पर अपनी कहानी रची है. ‘दो दुखों का एक सुख’(1966), ‘नाच जमूरे नाच’, ‘हारा हुआ’, ‘जंगल में मंगल’(1975), ‘महाभोज’(1975), ‘चील’ (1976), ‘प्यास और पत्थर’(1982), एवं ‘बर्फ की चट्टानें’(1990) उनके महत्वपूर्ण कहानी संग्रह हैं. ‘सुहागिनी तथा अन्य कहानियां’(1967), ‘पाप मुक्ति तथा अन्य कहानियां’(1973), ‘माता तथा अन्य कहानियां’(1993), ‘अतीत तथा अन्य कहानियां’, ‘भविष्य तथा अन्य कहानियां’, ‘अहिंसा तथा अन्य कहानियां’, ‘भेंड़े और गड़ेरिए’ उनके अन्य कहानी संग्रह हैं.
मटियानी जी ने कई उपन्यास भी लिखे हैं. ‘हौलदार’(1961), ‘चिट्‌ठी रसेन’(1961), ‘मुख सरोवर के हंस’, ‘एक मूठ सरसों’(1962), ‘बेला हुई अबेर’(1962), ‘गोपुली गफूरन’(1990), ‘नागवल्लरी’, ‘आकाश कितना अनंत है’ आदि उपन्यासों में वे उत्तराखंड के जीवन और अनुभव को रचना क्षेत्र के रूप में चुनते हैं. ‘बोरीबली से बोरीबंदर’, बंबई की वेश्याओं के जीवन पर आधारित एक आर्थिक उपन्यास है. ‘भागे हुए लोग’ , ‘मुठभेड़’(1993), ‘चंद औरतों का शहर’(1992) पूरब के व्यापक हिन्दी क्षेत्र पर लिखा उपन्यास है. गरीबों के दमन-शोषण पर आधारित ‘मुठभेड़’ के लिए उन्हें हजारीबाग, बिहार के फणीश्वरनाथ रेणु पुरस्कार 1984 से सम्मानित किया गया. ‘किस्सा नर्मदा बेन गंगू बाई ‘, ‘सावित्री’, ‘छोटे-छोटे पक्षी’ , ‘बावन नदियों का संगम’, ‘बर्फ गिर चुकने के बाद’, ‘कबूतरखाना’(1960), ‘माया सरोवर’ (1987) और ‘रामकली’ उनके अन्य उपन्यास हैं.
आर्थिक और सामाजिक रूप से शोषित-दलित वर्ग उनकी कहानियों के केन्द्रीय पात्र हैं. लेकिन काफी संख्या में उनके संस्मरण और निबंध संग्रह भी प्रकाशित हैं. ‘मुख्य धारा का सवाल’ , ‘कागज की नाव’(1991), ‘राष्ट्रभाषा का सवाल’ , ‘यदा कदा’, ‘लेखक की हैसियत से’ , ‘किसके राम कैसे राम’( 1999), ‘जनता और साहित्य’ (1976), ‘यथा प्रसंग’ , ‘कभी-कभार’(1993) , ‘राष्ट्रीयता की चुनौतियां’(1997) और ‘किसे पता है राष्ट्रीय शर्म का मतलब’(1995) उनके संस्मरणों तथा निबंधों के संग्रह हैं. पत्रों का संग्रह ‘लेखक और संवेदना’(1983) में संकलित है. मटियानी जी को उत्तर प्रदेश सरकार का संस्थागत सम्मान, शारदा सम्मान, देवरिया केडिया सम्मान, साधना सम्मान और लोहिया सम्मान दिया गया.
उनकी कृतियों के कालजयी महत्व को देखते हुए प्रेमचंद के बाद मटियानी का नाम लिया जाए तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी.
कार्यक्रम में सूर्यपाल सिंह असवाल सहित विद्यालय के छात्र-छात्राओं द्वारा फूल मालाओं से शिक्षक का स्वागत किया गया। जिला पंचायत अध्यक्ष अमरदेई शाह, रुद्रप्रयाग विधायक भरत सिंह चौधरी, पूर्व मण्डलीय मंत्री शिव सिंह नेगी, खण्ड शिक्षा अधिकारी आरएल वर्मा ने उन्हें शुभकामनाएं दी।