जब हम छोटे थे तब किताबों में पढ़ते थे कि इतिहास में हिटलर नाम का ऐसा शासक भी हुआ था जो अपने अलावा किसी और कि नहीं सुनता था। उसके उत्पीड़न से जनता इतनी त्रस्त हो गई थी जिसे शब्दों में बयां करना आसां नहीं है। माना जाता है कि इतिहास अपने आप को दोहराता है और उत्तराखंड में आज जो चल रहा है उसे यदि हिटलरशाही कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। आम जनता त्रस्त है परंतु भारी भरकम बहुमत वाली त्रिवेन्द्र सरकार जनता का सुध लेना तो दूर उनकी तरफ देखना भी उचित नहीं समझती है।
चाहे मामला आयुष छात्रों के मामले में माननीय न्यायालयों के फैसले को लागू करवाने का हो, चाहे संविदा या उपनल कर्मियों की मांगों का हो चाहे फिर अब आप सब आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं की मांगों का हो!
इससे बड़ा दुःख का विषय क्या हो सकता है कि बड़े बड़े बैनरों में तो बेटी बचाओ बेटी पढाओ का नारा जोरशोर से दिया जाता रहा है और हकीकत में उन माता बहनों की तरफ देखने तक की ज़हमत हमारी सरकार नहीं उठा रही है। उल्टा अपनी मांगों को आंदोलन माता बहनों की जबरन सेवाएं समाप्त की जा रही हैं।
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उन माननीयों की गरीबी का अहसास हमारे मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत को रहा जो पहले से ही जनता के धन का पूरा लाभ ले रहे हैं और उनके वेतन में भारी-भरकम बढोत्तरी करके प्रदेश के राजस्व पर जबरन बोझ डालने का काम करने वाले त्रिवेन्द्र सिंह रावत को आज आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं की मांग नाजायज़ लग रही है।
आप सब आंदोलनकर रही हैं हम सब आपके आंदोलन में सम्मिलित हैं और मिलकर आपकी लड़ाई लड़ी जाएगी। जब तक सरकार आपकी मांगों पर विचार नहीं करती हैं इसके लिए बड़े स्तर पर भी आंदोलन करना पड़े तो हम पीछे नहीं होने वाले।
साभार – कवींद्र इष्टवाल