भारत के संविधान की प्रस्तावना यह स्पष्ट कर देती है कि यह संविधान भारत के लोगो का है ,उनके लिए ही बना है और उनके द्वारा अंगीकृत हो कर ही यह भारतवर्ष देश का संविधान बना है। अर्थात भारत भूमि में रहने वाले हम भारत के लोग ही हैं जिनसे यह देश है और यह देश एक पंथ निरपेक्ष ( सेक्युलर ) देश है। यह एक समाजवादी राष्ट्र है। यह एक लोकतांत्रिक देश है और यह एक संप्रभु देश है।
पर क्या यह एक दुखद आश्चर्य नहीं कि संविधान जिन मूल भूत उक्त बातों को लेकर बना है , आज उसी संविधान की शपथ लेकर बनी सरकार और सरकार बनाने वाली पार्टी , खुले आम सेक्यूलर शब्द से नफरत करती है, समाजवाद को गाली देती है। लोकतंत्र के नाम पर पर् तंत्र ही नहीं बल्कि व्यक्ति विशेष द्वारा नियंत्रित-तंत्र को विकसित करने का प्रयास कर रही है और अमेरिका के हितों को संरक्षित रखने को मजबूर हो कर देश की सम्प्रुभता को भी सुरक्षित नही रख पाती है, तब भी उसे संवैधानिक सरकार कहा/माना जाता है।
संविधान में , हम भारत के आम लोगों के हित में सबसे महत्वपूर्ण है उसके “नीति निर्देशक सिद्धान्त ” पर इसे दुर्भाग्य न कहें तो क्या कहें कि पूंजीपतियों व बड़े चढे मध्यवर्ग के हित में तो इस संविधान के प्राविधानों के तहत विधायिका हो या कार्यपालिका या फिर न्याय पालिका सभी ने हमेशा ही बहुत कुछ किया है परन्तु नीति निर्देशक सिद्धान्तों के अनुपालन की दिशा में पिछले सत्तर वर्षों में किसी भी सरकार ने कभी कुछ सार्थक/प्रभावी नहीं किया और ना ही कभी उनसे कुछ ऐसा कराया जा सका है।
क्या यह कहना कुछ गलत होगा कि कितने लाचार हैँ हम/हमारा संविधान, इन भ्रष्ट निहित स्वार्थी नेताओं की पार्टियों के आगे ,जो इस संविधान की शपथ ले कर सत्तासीन होते हैँ और फिर संविधान के ही किसी न किसी प्राविधान का सहारा ले कर हमेशा अपनी ही मनमानी करते रहते हैं।
साभार – कमला पंत (उत्तराखंड महिला मंच