8 जनवरी की देशव्यापी हड़ताल को समर्थन
एस एफ़ आई राज्य कमेटी ने बताया कि वर्तमान समय में सार्वजनिक शिक्षा पर नव-उदारवादी नीतियों के हमले अपने चरम पर हैं। शिक्षण संस्थानों में फीस वृद्धि और भी ज्यादा व्यापक और बेलगाम हो गयी है। छात्रों से प्राइवेट एवं सरकारी शैक्षणिक संस्थानों द्वारा मनमाने ढंग से पैसे लिए जा रहे हैं। एक तरफ उत्तराखण्ड आयुष कॉलेज छात्रों से लाखों रुपये मनमानी फीस वसूली कर रहे हैं जिसको हाइकोर्ट भी गैरकानूनी बता चुका है दूसरी तरफ गढ़वाल विश्वविद्यालय भी मनमाने ढंग से बीच सत्र में परीक्षा फीस में वृद्धि कर रहा है। इस तरह के हमलों का बोझ सीधा छात्र समुदाय पर पड़ रहा है। उत्तराखंड राज्य में सार्वजनिक शिक्षा का हाल बहुत ही ज्यादा बुरा है, लगातार सरकारी स्कूल बंद किये जा रहे हैं और जो सरकारी स्कूल चल रहे हैं उनमें शिक्षकों की नियुक्ति नहीं है। शिक्षकों की परमानेंट नियुक्ति के बजाय अतिथि शिक्षक जैसे शॉर्टकट को सरकार अपना रही है और शिक्षा के क्षेत्र में ठेकेदारी और बाज़ारीकरण की प्रथा को बढ़ावा दे रही है। उत्तराखण्ड में मौजूद तकनीकी शिक्षा के केंद्रों IIT रुड़की में भी भारी फीसवृद्धि हुई है जिस कारण ये संस्थान सिर्फ मध्यम वर्ग और गरीब लोगों की पहुँच से बाहर हो गए हैं। NIT श्रीनगर जो राज्य का एक मात्र है उसको भी पिछले वर्ष सुविधओं के अभाव में बाहर भेज दिया गया, अभी भी उसके लिए जमीन आवंटन के नाम पर शिलान्यास की राजनीति हो रही है।
राज्य में सरकारी कॉलेज खस्ताहाल हैं और इंफ्रास्ट्रक्चर के अभाव में कुछ जगह किराए के मकान पर चल रहे हैं। इन सरकारी कॉलेज में एकेडमिक माहौल और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मुहैय्या करने के लिए सरकार के पास कोई नीति नही है। गेस्ट प्रोफेससरों की फेहरिस्त लम्बी है और सुदूरवर्ती छेत्रों में कॉलेज इन्ही के भरोसे चल रहे हैं। ऐसे में परमानेंट और काबिल प्रोफेसरों नियुक्ति के सरकार की मंशा बहुत ही धूमिल दिखती है। राज्य का नया नवेला श्रीदेव सुमन विश्वविद्यालय अगले सत्र से प्राइवेट कॉलेज में सेमेस्टर परीक्षा और सरकारी कॉलेज में वार्षिक परीक्षा करवाने जा रहा है ऐसे में पहले से ही जो रिजल्ट अटके हुए हैं और परीक्षा फलों में जो देरी होती है उसको ठीक करने का काम विश्वविद्यालय कैसे करेगा। राज्य के दून विश्वविद्यालय में हाल ही में VC की नियुक्ति को हाइकोर्ट ने फ़र्ज़ी करार दिया और उन्हें पद से हटा दिया गया ऐसे में राज्य सरकार और केंद्र सरकार का शिक्षा के प्रति दृष्टिकोण साफ नजर आ रहा है। नयी शिक्षा नीति में केंद्र सरकार की मंशा साफ है कि वो यू जी सी को खत्म करना चाह रहे हैं और उसकी जगह ऐसी बॉडी ल रहे हैं जो विश्वविद्यालयों को अनुदान के स्थान पर लोन देंगी और विश्विद्यालय अपने खर्चे खुद उठाने के लिए बाध्य होगा जिसका सीधा बोझ फीसवृद्धि के रूप में छात्रों पर पड़ेगा। साथ ही नई शिक्षा नीति स्वतंत्र शोध को भी खत्म कर रही है। नई शिक्षा नीति ने लोन देने वाली एजेंसी (हायर एजुकेशन फंडिंग एजेंसी)पर चुप्पी बनाये रखी है।
एस एफ़ आई के नेताओं ने बताया कि इस हड़ताल को आयुष छात्र भी पूर्ण तरहा से समर्थन कर रहे है।