हाल के दिनों में भारतीय अर्थव्यवस्था से जुड़े सारे संकेतकों ने समूचे देश को चिंता में डाल दिया है। शुतुरमुर्ग की तरह आंखें बंद करके तूफान के टल जाने की उम्मीद की तरह मोदी सरकार आचरण कर रही है। मैनुफैक्चरिंग की विकास दर का ऋणात्मक हो जाना, नागरिकों की मासिक खपत में करीब 100 रुपयों की कमी आ जाना, बेरोजगारी दर का तेजी से बढ़ जाना और दैनिक उपभोग की चीजों के दाम में लगातार वृद्धि होते जाना इसी के उदाहरण हैं। रही-सही पोल जीडीपी ने खोल दी है।
यह गिरावट सरकार द्वारा अपनाई गई देशी-विदेशी कॉर्पोरेट-हितैषी नीतियों का नतीजा है। इन विनाशकारी नीतियों के उलटने के बजाय मोदी सरकार संकट को और अधिक बढ़ाने के उपाय कर रही है। हाल में रिज़र्व बैंक के सुरक्षित भंडार में से पौने दो लाख करोड़ रुपये निकालकर ठीक इतनी ही राशि की सौगातें कॉर्पोरेट कंपनियों को दिया जाना इसी मतिभ्रम की नीतियों को आगे बढ़ने का उदाहरण है।
देश की किसान आबादी की हालत और भी अधिक खराब होती जा रही है। करीब 18 करोड़ किसान परिवारों में से 75% परिवारों की आय मात्र 5000 रुपये मासिक या उससे भी कम है। उस पर खाद, बीज और कीटनाशकों में विदेशी कॉर्पोरेट कंपनियों को मनमर्जी की कीमतें तय करने की छूट देकर और फसल खरीदी के सारे तंत्र को ध्वस्त करके पूरे देश में खेती को अलाभकारी बनाकर रख दिया गया है।
खेती-किसानी का संकट अब सिर्फ कृषि संकट नहीं रह गया है, यह समूचे समाज और सभ्यता का संकट बन गया है। सभ्यता के मूल्यों में चौतरफा गिरावट, हिंसा, उन्माद, उत्पीड़न और अवैधानिकताओं को स्वीकृति मिलना इसी के प्रतिबिंबन हैं। लोगों के आक्रोश को भटकाने के लिए सत्ता अब शिक्षा, शिक्षकों और विश्वविद्यालयों, किताबों और बौद्धिकता को अपने हमले का निशाना बना रही है।
देश, समाज और सभ्यता को बचाने के लिए जरूरी है कि इन विनाशकारी नीतियों को बदलकर उनकी जगह जनहितैषी और देशहितैषी नीतियों को लाया जाएं। ठीक इसी मांग को लेकर देश भर के लगभग सारे संगठनों के साझे मंच *अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति ने 8 जनवरी 2020 को गांव-हड़ताल का आह्वान किया है।* यह हड़ताल इसी दिन हो रही देश भर के श्रमिकों की देशव्यापी हड़ताल की संगति में होगी।
छत्तीसगढ़ में इस ग्रामीण बंद-हड़ताल को कामयाब बनाने के लिए छत्तीसगढ़ किसान सभा ने आज संपन्न अपनी दो-दिवसीय बैठक में विस्तृत अभियान की योजना बनाई है। अखिल भारतीय किसान सभा भूमि अधिकार आंदोलन, छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन, वन स्वराज अभियान सहित सभी किसान संगठनों के संपर्क में हैं। ये सभी संगठन मिलकर इस अभियान को आगे बढ़ाएंगे।
सारकेगुड़ा : दोषियों को जेल भेजने में देरी क्यों ?
2012 में सारकेगुड़ा जनसंहार की जांच के लिए बनी न्यायिक आयोग की रिपोर्ट आ गई है। अफसोस की बात है कि अभी तक सरकार ने किसी भी दोषी के खिलाफ मामला दर्ज कर उसे जेल नहीं भेजा है। अखिल भारतीय किसान सभा की मांग है कि उस जनसंहार में शामिल सभी के विरूद्ध सोचे-समझे तरीक़े से हत्या का मुकदमा दर्ज किया जाए। उस जनसंहार को दबाने में अहम भूमिका निभाने वाले तत्कालीन मुख्यमंत्री, गृहमंत्री और डीजीपी को भी अपराधी बनाया जाए और बिना देरी किये इन्हें तत्काल जेल भेजा जाए। कथित मुठभेड़ों के बारे में समय-समय पर आ चुकी मानवाधिकार आयोग, सीबीआई, अनुसूचित जाति-जनजाति-महिला आयोग इत्यादि की रिपोर्ट्स के आधार पर भी सभी संबंधितों के विरूद्ध आपराधिक मुकदमे दर्ज किए जाए। केंद्र और छत्तीसगढ़ सरकार को पीड़ितों के परिजनों तथा समूचे बस्तर से माफी भी मांगनी चाहिए। अ. भा. किसान सभा इस तरह की फर्जी मुठभेड़ों के विरूद्ध, सारकेगुड़ा पीड़ितों को न्याय व समुचित मुआवजा देने के लिए देश भर में अभियान चलाएगी।
धान खरीदी में लूट बंद हो
छत्तीसगढ़ की मंडियों तथा समितियों में धान उत्पादक किसानों की लूट जारी है। उन्हें लंबे समय तक इंतजार ही नहीं कराया जा रहा, बल्कि 40 किलो की बोरी पर 5-5 किलो अतिरिक्त धान की भी जबरिया वसूली की जा रही है। इसे तत्काल रोका जाये। इस मुद्दे पर छत्तीसगढ़ किसान सभा आंदोलन छेड़ रही है। मंडियों, समितियों, तहसीलों और जिला मुख्यालयों पर प्रदर्शन किए जाएंगे।
धान के न्यूनतम समर्थन मूल्य पर किसानों को बोनस दिए जाने पर छत्तीसगढ़ द्वारा उपार्जित चावल को केंद्र सरकार द्वारा न खरीदने की धमकी देना निंदनीय है। इसे वापस लिया जाना चाहिए और राज्य सरकार को बोनस दिए जाने की इजाजत दी जानी चाहिए। किसान सभा स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के अनुसार फसल की सी-2 लागत मूल्य का डेढ़ गुना समर्थन मूल्य दिए जाने की मांग दुहराती है।
खनन और विकास के नाम पर विस्थापन पर लगे रोक
किसान सभा पूरे प्रदेश में खनन और विकास के नाम पर वनाधिकारों को छीने जाने और विस्थापन पर रोक लगाने की मांग करती है और वनाधिकारों की स्थापना के लिए वन भूमि के व्यक्तिगत और सामुदायिक पट्टों को देने की प्रक्रिया को तेज करने की मांग करती है। यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि पेसा कानून और 5वीं अनुसूची के प्रावधानों और भावना के अनुसार वन भूमि पर काबिज किसी भी आदिवासी व कमजोर तबके के लोगों को बेदखल न किया जाए और ग्राम-सभा की राय को सर्वोच्च माना जाए। हसदेव अरण्य और बैलाडीला की पहाड़ियों को अडानी को न देने की घोषणा राज्य सरकार को करनी चाहिए। किसान सभा इन क्षेत्रों में अपने जीवन-अस्तित्व के लिए आदिवासियों द्वारा चलाये जा रहे आंदोलनों के समर्थन करती है।