उत्तराकाशी, बड़ाहाट में मंगसीर की बग्वाल (दीपावली) बड़े धूमधाम से मनाई गई। कार्यक्रम की शुरुआत में वीर भड़ माधोसिंह भंडारी की झांकियां पूरे शहर में निकाली गई और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया गया। 

मान्यता है कि बीर भड़ माधो सिंह भंडारी की तिब्बत पर विजय के बाद यह त्यौहार मनाया जाता है।.जानकार बताते हैं कि मंगसीर की बग्वाल गढ़वाली सेना की तिब्बत विजय का यह उत्सव है। पूरे देश में जब दीपावली हो रही थी उस समय बीर भाड़ माधो सिंह भंडारी और उसकी सेना तिब्बत पर विजय कर रही थी। जिसके बाद यह उत्सव एक महीने बाद मंगसीर बग्वाल के रूप में मनाया जाता है। इस उत्सव में उत्तरकाशी के लोगों ने रामलीला मैदान में पारंपरिक नृत्य रासो तांदी और भेलो का खूब जमकर लुत्फ उठाया और इस संस्कृति को आगे जीवित रखने में अपना योगदान दिया। सन 1627-28 के बीच गढ़वाल नरेश महिपत शाह के शासनकाल के दौरान जब तिब्बती लुटेरे गढ़वाल की सीमाओं के अंदर आकर लूटपाट करते थे तो राजा ने माधो सिंह भंडारी व लोदी रिखोला के नेतृत्व में चमोली के पैनखंडा और उत्तरकाशी के टकनौर क्षेत्र से सेना भेजी थी। सेना विजय करते हुए दावाघाट (तिब्बत) तक पहुंच गई थी। कार्तिक मास की दीपावली के लिए माधो सिंह भंडारी घर नहीं पहुंच पाए थे। तब उन्होंने घर में संदेश पहुंचाया था कि जब वे जीतकर लौटेंगे तब ही दीपावली मनाई जाएगी। युद्ध के मध्य में ही एक माह पश्चात माधो सिंह अपने गांव मलेथा पहुंचे। तब उत्सव पूर्वक दीपावली मनाई गई। तब से अब तक मंगसीर के माह इस बग्वाल को मनाने की परंपरा गढ़वाल में प्रचलित है।