व्यवहार और दबाव
यदि उत्तराखण्ड राज्य मे हमारे माननीय मुक्यमंत्री जी का व्यवहार या सहयोग अपने मंत्री, विधायको या सासंदो या कुछ कार्यकर्ताओं से अच्छा होता तो ये सब दबाव बनाने बारी बारी दिल्ली मे चुनाव के आखरी दिनो मे यह हबड़-दबड नही मचाते।
चाहे श्री सतपाल जी महाराज मंत्री और सत्ता में होते हुए भी बिल्कुल शून्य …
श्री विजय बहुगुणा जी या उनके पुत्र श्री सौरव बहुगुणा विधायक अपनी सत्ता होते हुए कोई सुनवाई नही …
सासद जनरल खण्डुडी हो या फिर उनकी पुत्री श्रीमती ऋतु खंडूड़ी विधायक अपनी सता होते हुए बिल्कुल शून्य।
उनके गुरु समान सासद श्री भगत सिह कोश्यारी जी केंद्र मे और राज्य मे सत्ता होते हुए भी शून्य …
अपनी ही पार्टी के कई कार्यकर्ता और विधायक अपनी ही सरकार का रोना-रोते हुए दिखना वह भी चिंतनीय है।
.बाकी मेहमान विधायक (काग्रेस से आये) तो जेसे मानो बिना टिकट यात्रा कर रहे हो, बिल्कुल डरे- सहमे और हताश जबकि कहने को अपनी सरकार और सत्ता में हैं मगर सब शून्य ……
प्रदेश अध्यक्ष और मुखिया की बीच की दूरियों को सब महसूस कर ही रहे हे सब कुछ होते हुए भी सब शून्य …..
सब बारी बारी से राष्ट्रीय अध्यक्ष और प्रभारी से मुखिया द्वारा सहयोग न मिलने की कहानी कई बार बातो बातो मे बताही चुके हे …..
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बाकी प्रदेश के कर्मचारी संगठन व सामजिक संगठन या कोई और संस्थाओ के लोग तो पहले ही अपनी शिकायत आमजन के समक्ष रखते ही रहते हे …..
आखिर बात क्या है मेरी सरकार ! आखिर लोकतंत्र में रहते हुए इतना अभिमान और हठ धर्मिता क्यॊ …
पहले जनरल खंडूड़ी की गिनती भी जनता से ना मिलने वालो मे होती थी …परन्तु अपनी दूसरी पारी मे वह भी जनता के समझाने के बाद बहुत लचीले हो गये थे …
‘मेरा मानना हे मुखिया या राजा, प्रजा के लिए पिता स्वरूप होता हे, राजा या मुखिया की सोच हमेशा बड़ी होनी चाहिए और सबके दुख और दर्द के साथ कुछ कड़वी और मीठी बाते सुननी ही पड़ती हैं और साथ ही कभी कभी उनका भी गुस्सा देखना पड़ता है और सरकार के मुखिया की हैसियत से आपको सबकी सुनकर उन्हें अपने तर्को से सतुष्ट करता हे …..अन्यथा हल्की सोच के नेता आज भी समाज मे प्रश्न चिन्ह की तरह हैं।
श्री विजय बहुगुणा जी या उनके पुत्र श्री सौरव बहुगुणा विधायक अपनी सत्ता होते हुए कोई सुनवाई नही …
सासद जनरल खण्डुडी हो या फिर उनकी पुत्री श्रीमती ऋतु खंडूड़ी विधायक अपनी सता होते हुए बिल्कुल शून्य।
उनके गुरु समान सासद श्री भगत सिह कोश्यारी जी केंद्र मे और राज्य मे सत्ता होते हुए भी शून्य …
अपनी ही पार्टी के कई कार्यकर्ता और विधायक अपनी ही सरकार का रोना-रोते हुए दिखना वह भी चिंतनीय है।
.बाकी मेहमान विधायक (काग्रेस से आये) तो जेसे मानो बिना टिकट यात्रा कर रहे हो, बिल्कुल डरे- सहमे और हताश जबकि कहने को अपनी सरकार और सत्ता में हैं मगर सब शून्य ……
प्रदेश अध्यक्ष और मुखिया की बीच की दूरियों को सब महसूस कर ही रहे हे सब कुछ होते हुए भी सब शून्य …..
सब बारी बारी से राष्ट्रीय अध्यक्ष और प्रभारी से मुखिया द्वारा सहयोग न मिलने की कहानी कई बार बातो बातो मे बताही चुके हे …..
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बाकी प्रदेश के कर्मचारी संगठन व सामजिक संगठन या कोई और संस्थाओ के लोग तो पहले ही अपनी शिकायत आमजन के समक्ष रखते ही रहते हे …..
आखिर बात क्या है मेरी सरकार ! आखिर लोकतंत्र में रहते हुए इतना अभिमान और हठ धर्मिता क्यॊ …
पहले जनरल खंडूड़ी की गिनती भी जनता से ना मिलने वालो मे होती थी …परन्तु अपनी दूसरी पारी मे वह भी जनता के समझाने के बाद बहुत लचीले हो गये थे …
‘मेरा मानना हे मुखिया या राजा, प्रजा के लिए पिता स्वरूप होता हे, राजा या मुखिया की सोच हमेशा बड़ी होनी चाहिए और सबके दुख और दर्द के साथ कुछ कड़वी और मीठी बाते सुननी ही पड़ती हैं और साथ ही कभी कभी उनका भी गुस्सा देखना पड़ता है और सरकार के मुखिया की हैसियत से आपको सबकी सुनकर उन्हें अपने तर्को से सतुष्ट करता हे …..अन्यथा हल्की सोच के नेता आज भी समाज मे प्रश्न चिन्ह की तरह हैं।
यदि मैं गलत नही हूँ तो .. …
अंत में कष्ट के लिए क्षमा चाहता हू क्योकि शायद यह – छोटे मुह बड़ी बात…
अंत में कष्ट के लिए क्षमा चाहता हू क्योकि शायद यह – छोटे मुह बड़ी बात…
उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी प्रदीप कुकरेती की फेस बुक वाल से ….