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आइये शुरुआत एक सामान्य लेकिन दिलचस्प प्रश्न से करते हैं.: मानव सभी जीवों में श्रेष्ठ क्यों है? यानि कि सावभौमिक विजेता क्यों है ? इसकी विकसित बुद्धि के कारण। मानव का मस्तिष्क अन्य जीवों के सापेक्ष अत्यंत उन्नत है.. पृथ्वी पर कठिन से कठिन परिस्थितियों वाली जगहों जैसे कि उत्तरी ध्रुव से लेकर सहारा मरुस्थल तक मानव ने अपने सर्वाइवल का परचम लहराया है.अब तो चाँद पर भी बस्तियां बसाने का सपना संजोया जा रहा है. कमोवेश आपका भी यही उत्तर होगा। अब दूसरा प्रश्न करते हैं. एक जीव बिहीनटापू में एक बाघ और एक सर्वाधिक विलक्षण बुद्धि वाले व्यक्ति को छोड़ दिया जाय तो अपना अस्तित्व बचाये रखने की अधिक संभावनाएं उस बुद्धिमान व्यक्ति की होंगी की उस बाघ की…??? उत्तर निश्चित तौर पर बाघ के पक्ष में जाता है…बल्कि बहुत कुछ संभावना है की वह मानव को अपना भोजन बना दे. अब यहां मानव की विलक्षण बुद्धि का क्या हुआ ???? अब प्रश्न फिर घुमाते हैं.. उसी टापू में सौ बाघ और सौ मानव जोकि आपस में बिलकुल परिचित नहीं हैं छोड़ दिए जायँ तो ??? अधिक संभावना यही है कि बाघों और मानव के संघर्ष में मानव अपनी सूझ-बूझ के कारण अधिकांश बाघों को मार गिराए और अभाव की अवस्था में उनको खा भी जाए..भले ही इस संघर्ष में कुछ मानव मर भी जाएँ।।परन्तु अंत में विजेता मानव ही बनेगा.,,, ऐसा कैसे हुआ? मानव एकल रूप में सामान्य जीव से भी अधिक निरीह है.. मानव बुद्धि की विलक्षणता वस्तुतः उसकी साथ में काम करने की क्षमता के कारण है. वे आपस में सहयोग करके हथियार बनाएंगे।।ओट बनाएंगे।।।ऐसी फांस बनाएंगे कि बाघ उसमें फंस जाएँ। वे किसी तरह से जुगाड़ करके आग जलाएंगे और उन बाघों को पका कर भक्षण करेंगे।।।वे ऐसा जुगाड़ करेंगे कि बाघ से बचे रहें।।।।दूसरी और १०० बाघ अगर टापू में होंगे तो वे सबसे पहला संघर्ष आपस में ही करेंगे। यही वह बात है जो मानव को सर्वश्रेष्ठ बनाते हैं…हज़ारों लाखों करोड़ों आपस में बिलकुल अपरिचित होने पर भी आपस में सहयोग से कार्यों को अंजाम देना।। परन्तु ऐसा सहयोग तो चींटियों, दीमकों मधुमक्खियों में भी देखा जाता है.. वे भी हज़ारों तादाद में आपस में कार्य करती हैं। .तो फिर मानव का आपसी सहयोग ही उसको श्रेष्ठ कैसे बनाता है…. आप देखिये कि चींटियों का और मधुमक्खियों का आपस में सहयोग अत्यंत सीमित है..जो मजदूर है वे केवल वही कार्य करेंगी।।जो सैनिक हैं वे केवल वही कार्य करेंगी।।।।दूसरी और एक ही मनुष्य अपनी भूमिकाएं कई तरह से बदल सकता है..वह मजदूर का कार्य भी कर सकता है तो सैनिक भी हो सकता है…वह प्रशासक भी हो सकता है तो प्रशासित भी.. यही नहीं नितांत आपस में अपरिचित रहते हुए भी किसी परिकल्पित सिस्टम के तहत सहयोगात्मक कार्य करना। ..मसलन मैं कहीं ऐसी जगह जाता हूँ जहां मेरा कोई परिचित नहीं है…मैं तब भी वहाँ किसी अदृश्य सिस्टम के तहत सहयोगात्मक कार्य को अंजाम देता रहूंगा ,,अपनी भूमिकाएं बदल बदल कर भी। .. मानव के सर्वाधिक सर्वाइवल का सीक्रेट यही सहकारिता का गुण है जो उसकी बुद्धि के कारण अत्यंत जटिल संयुग्मन करता है..आगे वाले एपिसोड्स में यह और अधिक स्पष्ट होगा…….जारी।।।
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साभार – डॉ0 एस. पी. सती