गुनाह हो गया लोकगीत गाना…….
एक कलाकार अपने उत्तराखंड की संस्कृति को बढ़ाने के लिए जी जान लगाकर अपने पौराणिक लोकगीतों को उत्तराखंड के जनमानस तक पहुंचाने का काम करता है, सोचो उसकी अंतरात्मा पर क्या बीती होगी जब उसे उसके अपने ही लोगों ने प्रताड़ित करना शुरू कर दिया हो , लोगों द्वारा प्रताड़ित करने के बाद उसके आंसू निकल पड़े” और वह फेसबुक क्रांतिकारियों, संस्कृति के उन तथाकथित ठेकेदार, पहाड़ों से बाहर शहरों में बैठे हुए उन……… समितियों के प्रताड़ित करने पर विवश हो जाए और एक लोकगीत को अपने चैनल से हटाने पर मजबूर हो जाए धन्य है मेरा उत्तराखंड।
जी हां मैं बात कर रहा हूं उत्तराखंड में प्रसिद्धि पा चुकी उत्तराखंडी लोक गायिका संगीता ढौंडियाल की उन्होंने कुछ दिन पहले चमोली का एक लोकगीत जो एक प्रसिद्ध लेखक नंदकिशोर हटवाल जी की किताब चाँचरि झमाको…. से लेकर कंपोज करके गाया, उत्तराखंडी वेशभूषा उत्तराखंड की लोक विरासतो में फिल्माया.. और रिलीज कर दिया बस क्या था फेसबुक एक वीर ने उस पर प्रतिक्रिया देने शुरू कर कर दी और भेड़ चाल पर उस पर कई प्रतिक्रियाएं आनी शुरू हो गई,
“आपको बताता चलूं कि उसमें एक बेटी का संवाद है वह कहती है कि मुझे उस जगह शादी नहीं करनी जो उसके इलाके से बहुत दूर है उसी संवाद में एक जिक्र आता है जिसमें वह स्थान विशेष को पापी मुल्क कहती है। यदि आप उत्तराखंडी हैं उत्तराखंड की संस्कृति से थोड़ा सा भी सरोकार रखते हैं तो हर बेटी के लिए आज से 5 दशक पूर्व उसका ससुराल बहुत ही कष्ट दाई होता था और वो अक्सर ससुराल के लिए ऐसे शब्दों का प्रयोग किया करती थी..
यहां तक कि अगर आप मां नंदा के गीतों को सुनेंगे तो उनके कई गीतों में शिव के कैलाश को भी पापी कहा गया है..
मेरा एक निवेदन है उत्तराखंड लोक भाषा के उन तमाम बुद्धिजीवियों से ही लेखकों से कवियों से लोक गायकों से लोक कलाकारों से पत्रकारों से अपनी लोक संस्कृति को लोकगीतों को गाने के लिए अगर इतनी प्रताड़ना किसी को झेलनी पड़े और ऐसे गीतों को यह लोग पसंद करें जिनका उत्तराखंड की संस्कृति से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं है इन तमाम विषयों पर अपनी चुप्पी तोड़ कर खुलकर आगे आये।।