जय प्रकाश उत्तराखंडी
ओली में गुप्ता बंधु जैसे कोरपोरेट के दो सौ करोड और उनकी पारिवारिक शादी का लाईव बडी घटना बनेगी। नीचे से पैसा उपर चढेगा और उसकी खुरचन लोकल मजदूर और ग्रामीणों तक पहुंचेगी,जो शायद इस शादी के भव्य आयोजन की बेताबी से प्रतीक्षा कर रहे हों।उनकी हथैली खुजा रही होगी, दुआ कर रहे होंगे दस बीस गुप्ता इस वीरान पहाड पर ऐसा ही भव्य आयोजन करें ताकि चार पैसे,पिज्जा और डाक्टर भी हत्थे लगे।
आज की दुनिया में चाहे-अनचाहे पैसे वाला या कोरपोरेट ही रोजगार और विकास की दिशा तय कर रहा है।जिस पहाड की दुख तकलीफों से पिंड छुडाकर खुद पहाडी अभी तक भागता आ रहा ,उस पर धंधा करने को मैदान के पैसे वाले चढने लगेंगे। जहां जहां पिछले तीस सालों में बाहरी सेठ चढे , वे अब खाने कमाने की जगह हो गयी हैं।
अंग्रेज मसूरी नैनीताल रानीखेत जैसे पहाड न चढते और उन्हे न सजाते तो आज इन पहाडों पर बकरियां या बंदर बाघ टहल रहे होते।स्थानीय लोग यहां की घाटी और चोटियों पर आछरी(परी) के गीत और किस्से गढ रहे होते।मुझे याद अंग्रेजों के जाने के बाद से 1970 के दशक तक मसूरी बर्बाद हो चली थी, 1980 के बाद से बाहर के सेठ ऊपर चढने लगे तो आज मसूरी जगमगा रही है।
मैं खुद अपने गांव में रह नहीं सकता और जो प्रवासी शहरों में बस गये,वे भी अपने गांव में नहीं रह सकते।गांव रहने का पाखंड करना सच से मुंह चुराना है । सच ये है कि हमारे गांव, न तब- न अब कभी भी रहने लायक ही नहीं थे । रहने के लायक होते तो लाखों लोग दशकों से गांव छोडकर मैदानी शहरों के रास्ते न लगे होते। हम पहाड के जिन जंगलों और प्रकृति उजडने पर चिल्ला रहे, उसने हमें भूख और बेबसी के सिवाय दिया ही क्या है ? हमने हथैली लगाकर रोक ली क्या नदियां ,जो कभी हमारी न हुई , जिसने हमारी बजाय पटना तक की खेतियां सरसब्ज की। इनसे किस बात का मोह भैय्या? यह जितनी जल्दी हम ठीक से समझ लें कि आज के भाग्यविधाता अमीर और कोरपोरेट ही हैं, उसी में कल्याण है..हम तो हर न सके,क्या पता अब गुप्ता बंधु या अंबानी जेसे लोग ही पहाड के दुख हर लें …।।