त्रिलोचन भट्ट
आज सुबह से विश्व पर्यावरण दिवस की रस्म अदायगी की जा रही है। कुछ लोग पेड़-पौधों की सुन्दर तस्वीरें भेजकर शुभकामनाएं दे रहे हैं तो कुछ कूड़े से सड़की धरती की तस्वीरें भेजकर मजा किरकिरा कर रहे हैं। कुछ लोग पेड़ लगाने की अपील कर रहे हैं, कुछ हो सकता है लगा भी रहे हों। यह बात अलग है कि पिछले कई सालों से हम वृक्षारोपण की जो कवायद कर रहे हैं, वे वृक्ष हैं कहां? जाहिर है कि हम तो सिर्फ वृक्षारोपण कर फोटो खिंचवाने या सेल्फी लेने वालों की भीड़ बनकर रहे गये हैं, यदि ऐसा न होता तो इन कुछ सालों में करोड़ों ने वृक्ष हमारी धरती पर लहलहा रहे होते।
जब भी पर्यावरण और प्रदूषण की बात आती है तो पर्यावरण के जानकार प्लास्टिक से होने वाले प्रदूषण पर सबसे ज्यादा जोर देते हैं। पिछले वर्ष विश्व स्तर पर पर्यावरण दिवस को प्लास्टिमुक्त विश्व के रूप में मनाया गया था, लेकिन मुझे नहीं लगता कि इससे कोई सुधार हुआ है। जब भी कभी कहीं प्लास्टिक से मुक्त होने की बात चलती है तो पहला सवाल यह पूछा जाता है कि आखिर प्लास्टिक का विकल्प क्या है?
यह एक ईमानदार सवाल है। हम आज जितनी वस्तुएं इस्तेमाल करते हैं, उनमें 95 प्रतिशत में किसी न किसी रूप में प्लास्टिक मौजूद है। जो मोबाइल और कम्प्यूटर आज जीवन का परम सत्य बन चुका है, उससे लेकर खाने-पीने के बर्तनों तक हर जगह प्लास्टिक है। पर्यावरणविद् भी इस बात को मानते हैं, यही वजह है कि फिलहाल उनका फोकस उस प्लास्टिक पर है, जिसे एक बार इस्तेमाल करके फेंक दिया जाता है।
फिलहाल यदि हम बाकी वस्तुएं छोड़ भी दें तो कम से कम बाजार से सामान लाने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली प्लास्टिक की थैलियांे और सामूहिक भोजों में इस्तेमाल की जाने वाली प्लास्टिक कटोरियों, गिलासों और प्लेटों का इस्तेमाल ही छोड़ दें तो काफी कुछ हो सकता है। जानकारों का कहना है कि रिसाइकिल किया जा सकने वाले प्लास्टिक से निपटना उतना कठिन नहीं है, जितना कि यूज एंड थ्रो वाले प्लास्टिक से। क्योंकि यही प्लास्टिक धरती को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचा रहा है और यदि इसका इस्तेमाल आज की बंद नहीं किया गया तो कल बहुत देर हो जाएगी