क्रौंच पर्वत स्थित भगवान कार्तिक स्वामी का मंदिर।
– निर्वाण रूप में होती है पूजा।
-धार्मिक अनुष्ठान को लेकर श्रद्धालुओं में उत्साह
रुद्रप्रयाग, क्रौंच पर्वत के शीर्ष पर लगभग 8,530 फीट की ऊंचाई पर विराजमान देव सेनापति कार्तिक स्वामी तीर्थ में पांच से पन्द्रह जून तक होने वाले महायज्ञ व पुराण वाचन की तैयारियां जोरों पर हैं। 11 दिवसीय धार्मिक अनुष्ठान के आयोजन को लेकर स्थानीय श्रद्धालुओं में भारी उत्साह बना हुआ है।
भगवान शंकर के ज्येष्ठ पुत्र दक्षिण भारत में बालरूप में पूजे जाते हैं। दक्षिण भारत में देव सेनापति कार्तिक स्वामी के छः तीर्थ है। वहां पर कार्तिक स्वामी मुरगन, सुब्राम्णयम, गागेय और आग्नेय नामों से जाने जाते हैं। उत्तराखंड में भगवान कार्तिक स्वामी निर्वाण रूप में पूजे जाते हैं। यहां भगवान कार्तिक स्वामी 360 गांवों के ईष्ट देवता, कुल देवता व भूमियाल देवता माने जाते है। भगवान कार्तिक स्वामी की अनेक पौराणिक परम्परायंे आज भी मानी जाती हैं। यानि किसी भी ऋतु के प्रथम अनाज का भोग भगवान कार्तिक स्वामी को अर्पित करना पड़ता है। गांवो में होने वाले सार्वजनिक या फिर व्यक्तिगत कार्य में भी कार्तिक स्वामी की अगय्याल पहले रखने की परम्परा आज भी जीवित है। कार्तिक स्वामी तीर्थ से पांच नदियां प्रवाहित होती हैं, जो क्रमशः चार नदियां मंदाकिनी व एक नदी अलकनन्दा में मिलती है। कार्तिक स्वामी तीर्थ से निकलने वाली नील नदी में 360 जल कुण्ड है और क्रांैच पर्वत तीर्थ में 360 गुफायें हैं, जिन पर महान तपस्वी आज भी अदृश्य रूप में जगत कल्याण के लिए साधनारत है। कार्तिक स्वामी तीर्थ से चैखम्भा व हिमालय की चमचमाती श्वेत चादर का अति निकट से देखा जा सकता है। इस तीर्थ को अपार वन सम्पदा ने अपना भरपूर दुलार दिया है। कार्तिक स्वामी तीर्थ में सर्व प्रथम 1942 में महायज्ञ व पुराण वाचन का श्री गणेश किया गया था। 1996 तक महायज्ञ व पुराण वाचन का आयोजन हर तीसरे वर्ष होता रहा, मगर 1996 के बाद से लेकर अब तक हर वर्ष जून माह में महायज्ञ व पुराण वाचन होता आ रहा है। इसी परम्परा के तहत इस वर्ष भी पंाच से पन्द्रह जून तक होने वाले महायज्ञ व पुराण वाचन की तैयारियां जोरों पर है। पांच जून को भगवान कार्तिक स्वामी की रूप छडी स्वारी ग्वांस गांव से कार्तिक स्वामी तीर्थ पहुंचेगी तथा कुण्ड खातिक के साथ महायज्ञ व पुराण वाचन का श्री गणेश किया जायेगा। 14 जून को बीहड़ चट्टानों के मध्य से भव्य जल कलश यात्रा निकाली जायेगी और पन्द्रह जून को पूर्णाहुति के साथ महायज्ञ व पुराण वाचन का समापन होगा।