सार्वजनिक वितरण के अभिलेखों का खोना सामान्य प्रक्रिया या साजिश ?

देहरादून , 26 अप्रैल : राज्य सूचना आयोग के समक्ष पहुंचे हरिद्वार जिले के राशन विक्रेताओं से सम्बंधित मामले की सुनवाई हुई। दायर की गई अपील पर सुनवाई के दौरान यह तथ्य सामने आया कि हरिद्वार जिले के कुछ राशन विक्रेताओं से सूचना का अधिकार के अंतर्गत राशन वितरण के अभिलेखोंं को मांग की गई। जिसके प्रतिउत्तर में उनके द्वारा अभिलेखों के गुम हो जाने या नष्ट हो जाने की सूचना प्रेषित करते हुए बताया गया कि रिपोर्ट पुलिस में दर्ज है। आयोग ने राशन विक्रेताओं के इस कथन पर कड़ी आपत्ति व्यक्त करते हुए राशन वितरण प्रणाली में बड़ी अनियमितता का संदेह व्यक्त किया।
आयोग ने अलग-अलग अपीलो/ शिकायतों के आने के बाद अपने अंतरिम आदेश में जिला खाद्य आपूर्ति अधिकारी से रिपोर्ट देने को कहा है कि पूरे जिले में कितनी दुकानों के अभीलेख आज तक खो चुके हैं ? कितनों की रिपोर्ट दर्ज है ? और उन दुकान संचालकों के खिलाफ़ विभाग द्वारा क्या कार्रवाई की गई ?


आयोग ने राशन वितरण के अभिलेखों को खोने और उसके बाद विक्रेताओं द्वारा पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराने पर इस दृष्टिकोण से जांच करने के निर्देश दिए हैं कि कहीं सार्वजनिक वितरण प्रणाली में किसी तरह के घपले के साक्ष्यों को मिटाने के उद्देश्य से तो रजिस्टर गायब नहीं किए गए? आयोग में सुनवाई के दौरान खाद्य विभाग के अधिकारियों का कहना था कि हरिद्वार के कुछ क्षेत्रों में आरटीआई कार्यकर्ता के नाम पर कुछ लोग गिरोह बंद तरीके से सूचना अनुरोध पत्र लगाते हैं तथा विक्रेताओं से राशन वितरण से संबंधित सूचना मांगा करते हैं। आयोग ने एक ही सूचना कई व्यक्तियों द्वारा एक साथ मांगे जाने और सूचना प्राप्त करने के नाम पर अवलोकन के लिए एक साथ राशन विक्रेताओं के यहां पहुंचने को भी गंभीरता से लिया।

धारा 18 के तहत दर्ज अनूप कुमार की शिकायत पर सुनवाई करते हुए राज्य सूचना आयुक्त योगेश भट्ट ने कहा कि सूचना का अधिकार अधिनियम जनहित में पारदर्शी व्यवस्था के लिए हो रहा है तो यह उचित है। लेकिन यदि इसका उद्देश्य इस्तेमाल किसी को डरा कर स्वार्थपूर्ति के लिए किया जा रहा है तो यह अपराध की श्रेणी में आता है। उन्होंने स्पष्ट किया कि सूचना का अधिकार का इस्तेमाल सद्भावना से लोकहित में किया जाए तो या लोकतंत्र की ताकत बन जाता है लेकिन जब इसका दुरुपयोग होता है तो सिस्टम के लिए खतरा बन जाता है। आयोग ने उच्चतम न्यायालय के निर्णय का हवाला देते हुए शिकायतकर्ता को चेताया कि सूचना का अधिकार नागरिकों के हाथ में है। भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई और जवाबदेही पारदर्शिता के लिए दुर्जये औजार है इसे राष्ट्र के मध्य नागरिकों में शांति , सामंजस्य रखने के लिए ही होना चाहिये। बिना किसी उचित कारण के तथा भ्रष्टाचार संबंधी मामले को तार्किक अंत तक पहुंचाने की इच्छा व्यक्त के बिना सूचना आवेदन नहीं लगाना चाहिए। वहीँ सूचना के दौरान शिकायतकर्ताओ द्वारा सूचना अनुरोध पत्र लगाने पर राशन विक्रेता द्वारा रिकॉर्ड के गुम हो जाने,रिकॉर्ड में आग लग जाने को भी आयोग ने गंभीरता से लिया।

सुनवाई के दौरान आयोग ने पाया कि विभाग के अधिकारी अधिकारियों के पास यह जानकारी ही नहीं थी की फिलवक्त क्षेत्रवार कितने राशन विक्रेताओं के अभिलेख गुम हो चुके हैं। वह यह भी स्पष्ट नहीं कर पाया कितने प्रकरणों की पुलिस में रिपोर्ट दर्ज हुई और उन पर विभाग द्वारा क्या कार्रवाई की गई। राशन वितरण से जुड़ अभिलेखों का अचानक गायब हो जाना और उसके बाद पुलिस में एक प्राथमिकी दर्ज करा कर इतिश्री कर लेना या एक गंभीर मामला है। विभाग द्वारा इसका संज्ञान ना लिया जाना बेहद आश्चर्यजनक है और यह कहीं ना कहीं या राशन विक्रेताओं के साथ विभागीय कर्मचारीयों /अधिकारीयों की संलिप्तता की ओर इशारा करता है।

उक्त खुद मामले की सुनवाई की आदेश पारित करते हुए सूचना आयुक्त योगेश भट्ट ने कहा कि जो विक्रेता अभिलेखों का संरक्षण जिम्मेदारी पूर्वक नहीं कर सकता तो वह जिम्मेदारी पूर्वक राशन-वितरण कैसे कर सकता है। इसलिए जिला पूर्ति अधिकारी को निर्देशित करते हुए कहा कि आदेश प्राप्ति के 1 माह के अंदर यह सूचना अधतन कर ली जाये कि पूरे जनपद में कितनी दुकानों के अभिलेख गुम अथवा नष्ट हो चुके हैं ? इसकी सूचना राशन विक्रेताओं द्वारा कब कहां और किस थाने में दर्ज करवाई गई।
साथ ही इस विवादित स्थिति में प्रकरण की जांच पुलिस द्वारा करवाई जानी भी अति आवश्यक है। अतः सूचना आयुक्त ने विभागीय अपीलीय अधिकारी (जिला पूर्ति अधिकारी) हरिद्वार को निर्देशित करते हुए कहा कि वह संबंधित पुलिस थानों से रिपोर्ट दर्ज करवा कर सुनवाई की अगली तिथि तक आयोग को भी अवगत कराएं व उक्त आदेश की प्रति वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक हरिद्वार को पृथक से प्रेषित की जाए।

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