नेशनल बुक ट्रस्ट द्वारा किया गया पुस्तक का प्रकाशन
भारतीय सभ्यता, संस्कृति एवं इतिहास को विश्व में प्राचीनतम माना और जाना जाता है। कहना न होगा कि विश्व का प्रथम ग्रंथ ‘वेद’ भारतीय अध्यात्म एवं संस्कृति की ही देन है। प्रस्तुत पुस्तक में विद्वान लेखक ने मौखिक परंपरा से निःसृत, वेदों के काल से लेकर भारत की सनातन सभ्यता और धर्म तथा अध्यात्म को विश्वभर में प्रसारित करने वाले आधुनिक सनातन संत, स्वामी विवेकानंद तक की यात्रा के क्रम में, महाकाव्य काल, जैन-बौद्ध काल, दार्शनिक काल, प्राचीन और मध्यकाल, भक्तिकाल तथा अंततः मुगल साम्राज्य के पतन के उपरांत 18वीं – 19वीं सदी में राजा राममोहन राय, दयानंद सरस्वती एवं स्वामी विवेकानंद के कार्य एवं अवदान तक को समेटा है।
सात हजार वर्षों के लंबे कालखंड के भारतीय इतिहास, संस्कृति, सभ्यता, इतिहास तथा अध्यात्म के इस विशद विमर्श के क्रम में लेखक ने विश्व के सर्वाधिक दिव्य, भव्य, दीप्त और परंपरा से सिक्त, सबसे सुंदर एवं व्यवस्थित एवं प्रथम धर्म, सनातन धर्म के विश्व सभ्यता पर पड़े प्रभाव और अवदान को भी बड़ी गहराई से रेखांकित किया है । यह एक पठनीय पुस्तक है ।
शायद ही आज यह बात किसी आंदोलनकारी को पता हो कि पृथक राज्यआंदोलन में जो व्यक्ति सबसे पहले घायल हुआ था उसका नाम था -प्रकाश सुमन ध्यानी ! 1994 में पुलिस के बर्बर लाठीचार्ज से उनकी कॉलर-बोन (कन्धा ) टूट गई थी । जिसके बाद वह कई दिनों तक दून अस्पताल में भर्ती रहे.. और यह कोई कही सुनी बात नहीं है। इसका गवाह मैं स्वयं रहा हूँ । अम्बुज शर्मा ( वरिष्ठ राज्य आंदोलनकारी )
उत्तराखंड के वरिष्ठ राजनीतिज्ञ, चिंतक तथा बुद्धिजीवी प्रकाश सुमन ध्यानी डी.ए.वी. कॉलेज, देहरादून जीव विज्ञान से स्नातकोत्तर होने के बावजूद, भारतीय सभ्यता, संस्कृति, समाज, अध्यात्म तथा इतिहास के प्रति अतिशय अनुराग रखते हैं। अपने इसी रुचि एवं अनुराग के वशीभूत उन्होंने ‘विश्व इतिहास दर्शन’ तथा प्रस्तुत पुस्तक ‘सनातन प्रज्ञा-प्रवाह : वेदों से विवेकानंद तक’ का प्रणयन किया है। लेखक की पहली पुस्तक को पाठक समाज का प्रभूत प्रतिभाव प्राप्त हुआ है।
प्रकाश सुमन ध्यानी की एक अन्य पुस्तक- ‘पानी है तो प्रकृति है, प्रकृति है तो जीवन है’ हाल ही में आ चुकी है। इनके लेख देशभर की पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर आलेख प्रकाशित होते रहते हैं। यह पूर्व में भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता होने के साथ उत्तराखंड के दो मुख्यमंत्री भुवनचंद्र खंडूरी तथा रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ के पर्यटन सलाहकार का दायित्व भी बखूबी संभाल चुके हैं। इसके अलावा भारत सरकार के विभिन्न मंत्रालयों में उन्हें सदस्य के रूप में रह कर अपनी दूरदर्शिता का लोहा भी वह मनवाने में कामयाब रहे। आज भी यह देहरादून के अपने निवास करते हुए अपनी सृजनशीलता को सतत विस्तार दे रहें हैं ।
राष्ट्रीय पुस्तक न्यास द्वारा प्रकाशित इस पुस्तक में कुल 356 पेज हैं जबकि इस पुस्तक का मूल्य 440 रुपए निर्धारित किया गया है।
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