प्रदेश के सभी विभागों की करतूतों का हिसाब-किताब रखने की जिम्मेदारी आडिट विभाग के पास होती है। वह हर वर्ष सभी विभागों की वित्तयी जाँच कर उसकी रिपोर्ट विधान सभा के पटल पर रखता है। जिसके बाद अगर सरकार को लगता है कि किसी विभाग में कोई अनियमितता चल रही है तो वह उसके खिलाफ नियमानुसार कार्यवाही करती है। मगर जब पिछले आठ सालों से ऑडिट रिपोर्ट विधानसभा के पटल पर ही नहीं रक्खी गई हो तो आप खुद समझ सकते हैं कि सूबे में किस तरह का जीरो टॉलरेंस चल रहा होगा ।

देहरादून, 21 फरवरी : आडिट एक्ट 2012 के नियम 8(3) के अनुसार पिछले आठ साल से वार्षिक आडिट रिपोर्ट विधानसभा के पटल पर नहीं रखे गये हैं । रिटायर्ड असिस्टेंट आडिट आफिसर एंव उत्तराखंड कार्मिक एकता मंच के संस्थापक अध्यक्ष रमेश चंद्र पाण्डे ने यह खुलासा करते हुए कहा कि सारे विभागों की वर्षवार आडिट रिपोर्ट विधानसभा के पटल पर पुटअप नहीं किये जाने से सरकार के जीरो टॉलरेंस के दावों पर सवाल उठना स्वाभाविक है। राज्य विधान सभा से पारित होने के बाद राज्यपाल की सहमति से 7 जून 2012 को उत्तराखण्ड लेखा परीक्षा अधिनियम 2012 जारी हुआ ।

श्री पाण्डे के अनुसार उत्तराखण्ड लेखा परीक्षा अधिनियम 2012 के नियम 8(3) में निहित प्रावधान के अनुसार निदेशक लेखा की एक संहत लेखा परीक्षा रिपोर्ट तैयार करेगा या करायेगा और उसे राज्य विधान सभा के समक्ष रखे जाने के लिए राज्य सरकार को प्रतिवर्ष भेजेगा ।
इस नियम के तहत निदेशालय द्वारा वर्ष 2012-13 एवं 2013-14 के वार्षिक लेखा परीक्षा प्रतिवेदन राजकीय मुद्रणालय से प्रिन्ट करवाकर क्रमश: 12 जून 2015 तथा 5 मई 2016 को शासन को भेजे गये, जिन्हें शासन स्तर से विधानसभा पटल पर रखा जा चुका है लेकिन 2014-15 से अद्यतन अवधि की आडिट रिपोर्ट अभी तक विधानसभा पटल पर नहीं रखी गई ।


आडिट निदेशालय के अनुसार वर्ष 2014-15 से 2019-20 की आडिट रिपोर्ट विधानसभा के पटल पर रखे जाने हेतु आडिट प्रकोष्ठ वित्त विभाग को भेजी गई हैं । लम्बे समय तक आडिट प्रकोष्ठ में पड़े रहने के बाद इन्हे हाल ही में आपत्ति के साथ निदेशालय को लौटा दिया और निदेशालय द्वारा कुछ समय पूर्व आपत्ति का सुधार कर अनुमोदन हेतु पुन: शासन को भेजा गया है । अनुमोदन होने के बाद निदेशालय द्वारा राजकीय मुद्रणालय से प्रिन्ट कराने के बाद विधानसभा के पटल पर रखने हेतु इसे शासन को भेजा जायेगा ।

बहरहाल आडिट रिपोर्ट विधानसभा के पटल पर रखने में हुई देरी के लिए आडिट निदेशालय और आडिट प्रकोष्ठ एक दूसरे पर अंगुली उठाते नजर आ रहे हैं और कोई यह बताने को तैयार नहीं है कि इसे विधान सभा के पटल पर पुट -अप करने में अभी और कितना वक्त लगेगा । कहा कि अनियमितताओं व गबन घोटालों से सम्बन्धित आडिट रिपोर्ट विधान सभा के संज्ञान में समय रहते नहीं लाये जाने से जहां इसमें सुधार व नियन्त्रण हेतु कोई कदम नहीं उठाए जा रहे हैं वहीं सरकार के जीरो टॉलरेंस के दावों पर भी सवाल उठ रहे हैं। उन्होंने 2012 में आडिट एक्ट बन जाने के बाद भी अभी तक नियमावली नहीं बनने पर आश्चर्य जताते हुए कहा कि नियमावली के स्थान पर मैनुअल बनाना गलत है ।