जोशीमठ या ज्योतिर्मठ भारत के उत्तराखण्ड राज्य के चमोली ज़िले में स्थित एक नगर है जहाँ हिन्दुओं की प्रसिद्ध ज्योतिष पीठ स्थित है। यहाँ ८वीं सदी में धर्मसुधारक आदि शंकराचार्य को ज्ञान प्राप्त हुआ और बद्रीनाथ मंदिर तथा देश के विभिन्न कोनों में तीन और मठों की स्थापना से पहले यहीं उन्होंने प्रथम मठ की स्थापना की।
देहरादून 2 जनवरी : लगातार हो रहे भू धँसाव के कारण जोशीमठ नगर खतरे की जद में आ चुका है और सरकार है कि वह लोगों की सुध भी नहीं ले रही ; ऐसा कहना था जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति के लोगों का। दून स्थित उत्तराँचल प्रेस क्लब में आयोजित पत्रकार वार्ता में क्षेत्रीय विधायक राजेन्द्र भँडारी ने कहा नगर में हो रहे भू- धँसाव के चलते वहां का जनमानस परेशां है उनको लगता है कि उनके मकान कभी भी ढह सकते है। ऐसे में हो रही बर्फ़बारी और ठण्ड के बीच व खुद को और अपने सामान को कहाँ ले जाये। अधिकारीयों से बात करो तो वह “ऊपर” से आदेश आने पर ही कुछ करने की बात करते है। हम लोग विभिन्न माध्यमों से सरकार को अपनी दिक्कत बताते रहे मगर जब कोई ठोस कार्यवाही नहीं हुई तो मजबूरन यहाँ आना पड़ा। अभी भी सरकार शीघ्र कोई समुचित उपाय नहीं करती है तो पूरा नगर तबाह हो जायेगा ।
पत्रकार वार्ता में जोशीमठ नगर पालिका के अध्यक्ष शैलेन्द्र पँवार ने बताया कि भू-धँसाव के चलते तहसील प्रशासन के निर्देश पर पालिका द्वारा कराए गये सर्वेक्षण में 550 के लगभग क्षतिग्रस्त भवन चिन्हित किये जा चुके हैं। मकानों,दुकानों,खेत आँगन सभी जगह दरारें नुमाया हो रही हैं । वरिष्ट काँग्रेस नेता कमल रतूडी सरकार के रवैये से खासे नाराज दिखे उन्होंने कहा सरकार के सँज्ञान में सब कुछ है लेकिन वो इस प्रकरण में ठोस कार्यवाही करने से बच रही है, जिससे जनता को और नगर को भारी क्षति हो रही है।
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जनप्रतिनिधि अतुल सती ने कहा कल ही उनकी मुलाकात सीएम धामी से हुई है। अब देखना ये है सरकार इस सँबन्ध में क्या कार्यवाही करती है। नगर में हो रहे भू धँसाव के कारण नगरवासी खौफजदा हैं। यदि इसी तरह लगातार भू धँसाव और भू स्खलन होता रहा तो इस ऐतिहासिक नगर जोशीमठ के अस्तित्व को बचाना मुशकिल हो जाएगा।
जोशीमठ का इतिहास
उत्तराखंड के प्रमुख नगरों में से एक नगर है जोशीमठ जिसे ज्योतिमठ के नाम से भी जाना जाता है। उत्तराखंड के हरिद्वार – बद्रीनाथ मुख्य मार्ग पर स्थित जोशीमठ की स्थापना शंकराचार्य द्वारा की गयी थी।शंकराचार्य के जीवन के धार्मिक वर्णन के अनुसार भी ज्ञात होता है कि उन्होंने अपने चार विद्यापीठों में से एक की स्थापना की और इसे ज्योतिर्मठ का नाम दिया, जहां उन्होंने अपने शिष्य ट्रोटकाचार्य को यह गद्दी सौंप दी।यह स्थान कामप्रयाग क्षेत्र में स्थित है जहाँ नदी धौलीगंगा व अलखनंदा का संगम होता है।जोशीमठ का पौराणिक संबंध भी है माना जाता है कि प्रारंभ में जोशीमठ का क्षेत्र समुद्र में था तथा जब यहां पहाड़ उदित हुए तो वह नरसिंहरूपी भगवान विष्णु की तपोभूमि बनी। किंबदन्ती में दानव हिरण्यकश्यपु तथा उसके पुत्र प्रह्लाद की कथा है। हिरण्यकश्यपु को वरदान प्राप्त था कि किसी स्त्री या पुरूष, दिन या रात, घर के अंदर या बाहर या तथा किसी शस्त्र के प्रहार द्वारा उसे मारा नहीं जा सकेगा। इसी कारण वह अहंकारी बना और वह स्वयं को भगवान मानने लगा। उसने अपने राज्य में विष्णु की पूजा को वर्जित कर दिया। प्रह्लाद, भगवान विष्णु का भक्त था इसीलिए अपने पिता द्वारा दी गयी यातनाओं के बावजूद वह विष्णु की पूजा करता रहा। क्रोधित होकर हिरण्यकश्यपु ने अपनी बहन होलिका से कहा कि वह अपनी गोद में प्रह्लाद को लेकर प्रज्ज्वलित अग्नि में चली जाय क्योंकि होलिका को वरदान था कि वह अग्नि में नहीं जलेगी। जब होलिका प्रह्लाद को लेकर अग्नि में गयी तो भक्त प्रह्लाद को कुछ भी नही हुआ और होलिका जलकर राख हो गयी। अंतिम प्रयास में हिरण्यकश्यपु ने एक लोहे के खंभे को गर्म कर लाल कर दिया तथा प्रह्लाद को उसे गले लगाने को कहा। एक बार फिर भगवान विष्णु प्रह्लाद को उबारने आ गये। खंभे से भगवान विष्णु नरसिंह के रूप में प्रकट हुए तथा हिरण्यकश्यपु को चौखट पर, गोधुलि बेला में आधा मनुष्य, आधा जानवर (नरसिंह) के रूप में अपने पंजों से मार डाला।
कहा जाता है कि इस अवसर पर नरसिंह का क्रोध इतना प्रबल था कि हिरण्यकश्यपु को मार डालने के बाद भी कई दिनों तक वे क्रोधित रहे। अंत में, भगवती लक्ष्मी ने प्रह्लाद से सहायता मांगी और वह तब तक भगवान विष्णु का जप करता रहा जब तक कि वे शांत न हो गये। आज उन्हें जोशीमठ के सर्वोत्तम मंदिर में शांत स्वरूप में देखा जा सकता है।नरसिंह मंदिर से संबद्ध एक अन्य रहस्य का वर्णन स्कंद पुराण के केदारखंड में है। इसके अनुसार शालीग्राम की कलाई दिन पर दिन पतली होती जा रही है। जब यह शरीर से अलग होकर गिर जायेगी तब नर एवं नारायण पर्वतों के टकराने से बद्रीनाथ के सारे रास्ते हमेशा के लिये बंद हो जायेंगे। तब भगवान विष्णु की पूजा भविष्य बद्री में होगी जो तपोवन से एक किलोमीटर दूर जोशीमठ के निकट है। जोशीमठ ही वह स्थान है जहां ज्ञान प्राप्त करने से पहले आदि शंकराचार्य ने शहतूत के पेड़ के नीचे तप किया था। यह कल्पवृक्ष जोशीमठ के पुराने शहर में स्थित है और वर्षभर सैकड़ों उपासक यहां आते रहते हैं।इस वृक्ष के नीचे भगवान ज्योतिश्वर महादेव विराजमान है जिनके मंदिर के एक भाग में आदि जगतगुरू शंकराचार्य जी द्वारा जलाई गयी। ऐसी मान्यता है कि इस ज्योति के दर्शन मात्र से मानव जीवन का तम समाप्त हो जाता है। इस पावन ज्योति के साथ स्थल का दर्शन करने से मानव को एक कल्प यज्ञ का फल प्राप्त होता है। बद्रीनाथ के विपरीत जोशीमठ प्रथम धाम या मठ है जिसे शंकराचार्य ने स्थापित किया, जब वे सनातन धर्म के सुधार के लिये निकले।
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