डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला (दून विश्वविद्यालय)
पहाड़ी राज्य उत्तराखंड में आवागमन हमेशा से चुनौती भरा रहा है. भारी बारिश और उसकी वजह से होनेवाले भूस्खलन से यहां का ट्रैफिक अक्सर अस्त-व्यस्त होता है। सड़कों के खस्ताहाल होने की वजह से सफर का समय अक्सर काफी बढ़ जाता है। यदि हम बात राज्य के दुर्गम इलाकों की करें तो यह समस्या वहां ज्यादा बढ़ जाती है। पिथौरागढ़ में बारिश के दौरान सड़क के किनारे पड़े हुए बोल्डर राहगीरों के लिए समस्या खड़ी कर रहे हैं और इनकी वजह से दुर्घटना का अंदेशा बना हुआ है। पिथौरागढ़-घाट एनएच-9 पर रोजाना हजारों वाहन आवाजाही करते हैं। पिथौरागढ़ को चंपावत और अल्मोड़ा जिले को जोड़ने का यह प्रमुख मार्ग है। यही कारण है कि इसे जिले की लाइफलाइन कहा जाता है। इस ऑल वेदर रोड पर बरसात में तमाम लैंड-स्लाइड की घटनाएं देखी गईं, जिससे कई बार यातायात बाधित रहा। अब बरसात के मौसम को विदा हुएमहीने से ज्यादा वक्त हो चुका है, लेकिन अभी भी इस सड़क के किनारे बड़े बड़े बोल्डर पड़े हैं। सड़कों से मलबे हटाए नहीं जा सके हैं। ये बोल्डर और मलबे दुर्घटना की वजह बने हुए हैं। मुसाफिरों को इस सड़क पर दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। घाट-पिथौरागढ़ राष्ट्रीय राजमार्ग पर दिल्ली बैंड और चुपकोट बैंड में विशाल बोल्डर अभी भी सड़क किनारे देखे जा सकते हैं, जो कभी भी किसी बड़ी दुर्घटना का कारण बन सकते है।
इस ऑल वेदर रोड का मलबा डंपिंग जोन होने के बाद भी सीधे नदी और खाई में फेंका गया है, जिससे यहां के पारिस्थितिकी तंत्र को भी काफी नुकसान हुआ है। इस सड़क पर पर्यावरण से संबंधित नियमों की धज्जियां उड़ाने के साक्ष्य स्पष्ट देखे जा सकते हैं। राष्ट्रीय राजमार्ग से अभी तक मलबा न हटाना और इसके आसपास कोई चेतावनी बोर्ड न होना निर्माणदायी संस्था और प्रशासन की कार्यशैली पर सवाल खड़ा करते हैं। जिले के स्थानीय व्यक्ति और जनप्रतिनिधियों ने इस विषय पर नाराजगी व्यक्त की है। यहां के जनप्रतिनिधि ने कहा कि राष्ट्रीय राजमार्ग पर सड़क किनारे पड़ा मलबा कभी भी किसी बड़ी दुघर्टना को अंजाम दे सकता है, इसके बावजूद स्थानीय प्रशासन और ठेकेदार इस ओर कोई ध्यान नहीं दे रहे हैं।
पिथौरागढ़ की नवनियुक्त जिलाधिकारी का कहना है कि वे इस संबंध में जल्द ही संबंधित विभाग और ठेकेदारों से मीटिंग कर इस समस्या का हल निकालने की कोशिश करेंगी। घाट-पिथौरागढ़ सड़क जो ऑल वेदर रोड का हिस्सा है, जिससे कयास लगाए गए थे कि हर मौसम में इस सड़क पर यातायात सुगम होगा। लेकिन इसके उलट यह सड़क आमजनों के लिए मुसीबत का कारण बनी है और सरकार के करोड़ों रुपये खर्च करने के बाद भी हर बरसात में यहां जान हथेली पर रखकर लोग सफर करने को मजबूर है। राष्ट्रीय राजमार्ग से लेकर ग्रामीण क्षेत्र की सड़कें बदहाल पड़ी हैं। लोगों को जान हथेली में रखकर आवागमन करना पड़ रहा है। थोड़ा सा चूकने पर सैकड़ों फुट गहरी खाई या फिर उफनाती नदियों में गिरने का खतरा रहता है। पहाड़ों की कटाई से निकलने वाला मलबा भी एक बहुत बड़ा मुद्दा है और ये मलबा उत्तराखंड के पहाड़ों की समस्याओं को और बढ़ा देता है। इस मलबे के निस्तारण के लिए निर्धारित डंपिंग ज़ोन बनाये गए हैं ताकि ये मलबा नदियों में ना डाला जाये।लेकिन इन डंपिंग ज़ोन में क्षमता से अधिक मलबा डालने के कारण अधिकतर डंपिंग ज़ोन में भूस्खलन का खतरा बढ़ गया है, जिसके कारण डंपिंग ज़ोन के नीचे के ढ़लान के पेड़ों और नदियों पर भी बुरा असर हुआ है। हालांकि, इससे पैदा होने वाली समस्या से निपटने के लिए अभी कोई पर्याप्त योजना नहीं है। चिंताजनक बात यह है कि इन सड़कों में दुर्घटना संभावित स्थलों में क्रैश बैरियर तक नहीं लगाए गए हैं।
टनकपुर-पिथौरागढ़ राष्ट्रीय राजमार्ग पर ऑलवेदर सड़क परियोजना का काम नवंबर 2017 से शुरू हुआ। डेढ़ हजार करोड़ रुपये की लागत से निर्माणाधीन 133 किलोमीटर लंबी सड़क का काम 2019 में पूर्ण होना था। लेकिन आपदा, कोरोना महामारी के चलते कार्य में देरी होती चली गई। हालांकि वर्ष के प्रारंभ में चल्थी पुल को छोड़कर ऑल वेदर रोड का कार्य लगभग पूर्ण हो चुका है। वर्ष 2019 से एनएच पर चल्थी में लधिया नदी पर 120 मीटर लंबे और 14.90 मीटर चौड़े पुल के निर्माण का काम 80 प्रतिशत काम पूरा हो चुका था और इस पुल को दिसंबर 2021 में तैयार होना था। लेकिन अक्तूबर 2021 की आपदा में पुल के पांच जैक और दो फाउंडेशन टावर नदी में समा गए। तत्कालीन मुख्यमंत्री ने ऑलवेदर सड़क के साथ निर्माणाधीन चल्थी पुल की गुणवत्ता की जांच के आदेश दिए थे। जिला प्रशासन ने जांच के लिए पिथौरागढ़ के अधीक्षण अभियंता के नेतृत्व में तकनीकी जांच टीम का गठन किया था। तीन सदस्यीय तकनीकी टीम की जांच पूरी होने से पहले ही अक्तूबर की आपदा ने निर्माण कार्य को ही बहा दिया।
घाट-पिथौरागढ़ सड़क जो ऑल वेदर रोड का हिस्सा है, जिससे कयास लगाए गए थे कि हर मौसम में इस सड़क पर यातायात सुगम होगा। लेकिन इसके उलट यह सड़क आमजनों के लिए मुसीबत का कारण बनी है और गवर्नमेंट के करोड़ों रुपये खर्च करने के बाद भी हर बरसात में यहां जान हथेली पर रखकर लोग यात्रा करने को विवश है।
पिथौरागढ़ जिले में घाट-पिथौरागढ़ सड़क के 30 किमी में हुए चौडीकरण से पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव के आंकलन से किया जा सकता है। मसलन घाट से पिथौरागढ़ तक हो रहे रोड चौड़ीकरण से स्थानीय पादकों की जैव विविधता पर बुरा असर पड़ रहा है। इस हिस्से में साल,चीड़, बांज और अन्य मिश्रित वन पाए जाते है। जिस तरह से नामांकित मक डिस्पोजल साइट्स के अलावा भी अन्य जगहों पर मलबा फेंका जा रहा है, उससे साल वनों के प्राकृतिक रिजेनेरसन क्षेत्र बहुत अधिक मात्रा में खत्म हो गए हैं। इन सभी क्षेत्रों में पुराने व नए पेड़ दब चुके हैं, जिससे स्थानीय तौर पर धीमी गति से बढ़ने वाले इन वनों को खतरा हो चुका है।
इसी प्रकार से बेल आदि के बहुउपयोगी वृक्षों के अस्तित्व को भी खतरा हो चुका है। यह क्षेत्र नदी घाटी से लगा हुआ है और सड़क के आस-पास के गांव में च्युरे के बहुउपयोगी पेड़ पाए जाते हैं। इस वृक्ष के पुष्प न सिर्फ मधुमक्खियों को प्रचुर मात्रा में पुष्परस उपलब्ध कराते हैं, साथ ही साथ शहद के उत्पादन में भी सहायक है। इसके बीजों से एक बहुउपयोगी तेल निकाला जाता है , जिसे स्थानीय तौर पर लोग अपने खाने आदि में प्रयोग करते हैं। क्षेत्र की ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए यहां पेड़ अति आवश्यक प्रजाति है। सड़क के कटान और अनियंत्रित मक डिस्पोजल और इसके साथ उड़ने वाली धूल के कारण इस विशेष पेड़ के पुष्पों पर विशेष प्रभाव पड़ रहा है। न सिर्फ पेड़ों का प्राकृतिक री-जेनरेशन रुक गया है, बल्कि साथ ही साथ स्थानीय मधुमपक्खयों की प्रजातियां भी खतरे में हैं। कई नए व पुराने वृक्ष भी मक डिस्पोजल की भेंट चढ़ चुके हैं।