उत्तराखंड की महिलाओं ने चुनौतियों का मुकाबला कर जन-आंदोलनों को मुकाम तक पहुंचाया। बात चाहे स्वतंत्रता आंदोलन की हो या राज्य गठन के आंदोलन की। महिलाओं ने अपने संघर्ष से इन आंदोलन को कामयाबी दिलाई है। इसके अलावा प्रदेश में पेड़ को कटाने को रोकने के लिए चिपको आंदोलन और नशे बढ़ती प्रवृत्ति के खिलाफ भी महिलाओं ने आवाज को बुलंद किया। उत्तराखंडी महिलाएं अपने सीमित दायरे और सामाजिक रूढ़िवादिता के बावजूद हर समस्या के समाधान के लिए लड़ाई लड़ने में अग्रिम पंक्ति में रही हैं। उन्होंने अपने आंचल को हमेशा ही इंकलाबी परचम बना दिया।

उत्तराखंड राज्य आंदोलन में महिलाओं की अहम भूमिका रही है। 1994 में उत्तराखंड की महिलाओं ने अलग राज्य की मांग को लेकर सड़कों पर उतर कर आंदोलन किया। उत्तराखंड को अलग राज्य का दर्जा दिलाने में जितना योगदान यहां के पुरुष वर्ग ने दिया उससे कई गुना अधिक योगदान यहां की महिलाओं ने दिया। इस आंदोलन के दौरान घटित मुजफ्फरनगर कांड महिलाओं की सक्रिय भागीदारी की याद दिलाता है।

9 नवम्बर 2000 को भारत के सत्ताइसवें राज्य के रूप में जन्म लेने वाला पहाड़ी राज्य उत्तराखंड। जो पहले उत्तराँचल के नाम से बना और बाद में इसे उत्तराखंड के नाम से नवाजा गया। इस राज्य को यथार्थ के धरातल पर लाने के कई वर्षो का संघर्ष चला। कई लोगों ने इस सपनों के उत्तराखंड को बनाने में अपना बलिदान दिया। ,इस उत्तराखंड को मुज़फ्फर नगर कांड और खटीमा मंसूरी जैसे गोली कांडों से रूबरू होकर बनाया है । २ माह बाद हमारा उत्तराखंड बाइस साल पूरे कर लेगा मगर इतने सालों में हमने क्या खोया-क्या पाया ? क्या है उत्तराखंड का विकास की असलियत है ?

2022 से पहले अगर आप इस विषय पर विचार करते तो उत्तराखंड के विकास ,उत्तराखंड की स्थिति की वास्तविकता जानने में थोड़ा मशक्क्त करनी पढ़ती लेकिन इस साल 2022 कई घटनाएं ऐसी घटी जिससे आईने की तरह साफ हो जाता है ,कि आज उत्तराखंड कहाँ है ? और इसका भविष्य कहाँ जा रहा है ? यहाँ कुछ प्रमुख घटनाओं के माध्यम से उत्तराखंड की वर्तमान स्थिति के बारे में जान सकते हैं। यदि आप जानना चाहते हैं कि आपके सपनों के राज्य उत्तराखंड में राज्य प्रशासन को अपने मूल निवासीयों के हकों की कितनी चिंता है, तो आप जुलाई माह में हुई चमोली के हेलंग की घस्यारी घटना का संदर्भ ले सकते हैं। स्वास्थ के मांमले में बात करें तो 14 सितम्बर को घटित पिथौरागढ़ की घटना जिसमे एक बच्चे ने ओपीडी की लाइन में लगे पिता की गोद में दम तोड़ दिया। उत्तराखंड स्वास्थ विभाग का ये कोई पहला मामला नहीं है ,पिछले महीने अल्मोड़ा में एमरजेंसी ड्यूटी पर डॉक्टर साहब पी कर टुन्न मिले थे। उत्तरकाशी में एक परिवार ने अपनी बहु और बच्चे को खोया था। आईने बन कर ये घटनाये हमे बताती हैं कि उत्तराखंड में स्वास्थ व्यवस्था की क्या स्थिति है।  उत्तराखंड के जर्जर विकास खोलती एक और घटना ,चम्पावत में स्कूल शौचालय की छत गिरने से एक बच्चे की मृत्यु हो गई और कई घायल हो गए।

अब आते हैं उत्तराखंड की इस साल की सबसे बड़ी घटना उत्तराखंड परीक्षा घोटाला। अगस्त माह में खुली यह एक ऐसी घटना है ,जिसने उत्तराखंड के विकास को खुली किताब की तरह सबके सामने रख दिया। आन्दोलनकारियों की शाहदत और मातृृ शक्ति की अस्मत पर मिले इस सपनो के राज्य में माफिया दीमक की तरह कितने अंदर तक घुस चुका है , इस घटना से स्पष्ट रूप से पता चल गया। जहाँ नेता अपने रिश्तेदारों को पिछले दरवाजे से सरकारी नौकरी में बिठाकर सब कुछ नियम से हो रहा है का दम्भ भर रहे हैं। सरकार रोज एक एक बलि बकरा पकड़ कर ,युवा आक्रोश को शांत करने की कोशिश में लगी है। वही बेरोजगार युवा रोड पर धक्के खा कर अपना आक्रोश व्यक्त कर रहा है और सीबीआई जाँच की मांग कर रहा है।

समाज की हालत ये है कि एक अनुसूचित जाती के युवक ने सामान्य जाती की युवती से विवाह कर लिया तो युवती के परिजनों ने युवक की हत्या कर दी गई तो दूसरी तरफ़ उत्तराखण्ड अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग के उपाध्यक्ष अंकित आर्य के भाई पुलकित आर्य ने पहाड़ की एक उर्जावान बेटी अंकिता की जान सिर्फ इसलिए ले ली क्योंकि उसने सत्ता के दलालों के आगे अपनी अस्मत बेचने से इंकार कर दिया।

19 तारीख़ सोमवार की सुबह रिजॉर्ट के मालिक पुलकित आर्य ने अंकिता की गुमशुदगी की रपट राजस्व पुलिस चौकी में दर्ज कराई पटवारी विवेक कुमार की जांच में 19 तारीख़ बृहस्पतिवार तक भी अंकिता का कोई सुराग नहीं मिला. इस बीच अंकिता के परिजन मामले को रेगुलर पुलिस को नहीं सौंपने की गुहार लगाते हुए चौकी के बहार बैठे रहे तो पटवारी पुलकित आर्य के पिता विनोद के साथ बेठ कर गुफ्तुगू करता रहा। वहीं, सीएम पुष्कर सिंह धामी ने ऋषिकेश की घटना को बहुत दुखद बताते हुए कहा कि जिस किसी ने ये जघन्य अपराध किया है, उसे हर हाल में कड़ी सजा दिलाई जाएगी। पुलिस अपना कार्य कर रही है।

ये थी उत्तराखंड में घटित कुछ घटनाएं जो उत्तराखंड के विकास की हकीकत को खुली किताब की तरह सामने रखती हैं। ये घटनाएं उत्तराखंड में स्वस्थ ,शिक्षा, रोजगार की वास्तविकता को बता रहीं है। उत्तराखंड के साथ जन्मे झारखंड के बारे में एक खबर आई थी कि वहा खतियान 1932 के आधार पर मूल निवासी कानून लागू होगा। अर्थात जिनके पूर्वज 1932 के पहले के भू-सर्वे में शामिल थे या उनके पास 1932 से पहले से जमीनें थी। इस आधार पर महेंद्र सिंह धौनी जैसे चर्चित उत्तराखंड मूल के क्रिकेटर बाहरी कहे जायेंगे। लेकिन उत्तराखंड में अलग-अलग राज्यों क्षेत्रों के अलग अलग संस्कृतियों के लोग यहां अवैध रूप से बस रहे हैं। यहां जमीनों पर अवैध कब्जा हो रहा। शांत कहे जाने वाले पहाड़ो में अपराध ,मानव तस्करी बढ़ रही है। पहाड़ अपराधियों के छुपने का एक अच्छा और सुरक्षित अड्डा बन रहे हैं। पहाड़ों में लोगो के गायब होने और बाहरी लोगों द्वारा पहाड़ों पर की जाने वाली आपराधिक गतिविधियों की खबरें रोज आ रहीं हैं।

21वीं सदी के डिजिटल युग में आज भी आधारभूत सुविधाओं के अभाव से कुछ इलाके ग्रस्त हैं। बिजली, पानी, सड़क और मोबाइल नेटवर्क की समस्या पहाड़ों में आम बात रही है। मगर 2022 वास्तव में उत्तराखंड और उत्तराखंडियों को उनके सपनों के राज्य उत्तराखंड की वास्तविक हकीकत दिखा रहा है।अब इतनी घटनाये घट रही हैं तो उत्तराखंड के निवासी उत्तराखंडी कहाँ है ? उत्तराखंडी उत्तराखंड में है ही नहीं ! उत्तराखंड में भाजपाई है ,कांग्रेसी है ,आपिया है। उत्तराखंडी तो बेचारा दो वक्त की रोटी की खोज में पलायन कर गया। बाकी जो बचे हैं उसमें बयानवीर, भाषणबाज और नारेबाज ही ज्यादा नज़र आते हैं।

डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला (दून विश्वविद्यालय )

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