डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला

उत्तराखंड राज्य की स्थापना एक पर्वतीय राज्य की संकल्पना के साथ हुई। इसके तराई भाबर के मैदानी इलाकों को पहाड़ों की आधार भूमि कहते हुये जोड़ा गया। उत्तराखंड राज्य बनने के समय भी पहाड़ के कई स्थानीय नेताओं ने इसका विरोध किया था। राज्य बनने के बाद से ही मैदानी क्षेत्रों और पर्वतीय क्षेत्रों में विकास का अंतर साफ़ देखा जा सकता है। सबसे बड़ा उदाहरण तो 22 सालों में हमारी स्थायी राजधानी का न होना है। उत्तराखंड के नेता चुनावी भाषणों में तो पहाड़ की बात करते हैं लेकिन जब असल काम करने की बारी आती है तो उन्हें मैदान ही पसंद आता है।

केंद्र सरकार की ओर से देश भर में 100 सैनिक स्कूल खोले जाने का निर्णय लिया गया है। इसके लिए राज्यों से मानकों को पूरा करने वाले स्कूूलों के प्रस्ताव मांगे गए थे। उत्तराखंड में राजीव गांधी नवोदय विद्यालय देहरादून और ए एन झा इंटर कालेज रुद्रपुर सैनिक स्कूल के लिए तकरीबन सभी मानकों को पूरा कर रहे हैं। दोनों का प्रस्ताव तैयार कर केंद्र सरकार को भेजा जा रहा है। प्रस्ताव भेजे जाने के बाद केंद्र की टीम संबंधित स्कूलों का निरीक्षण करेगी। रक्षा मंत्रालय ने शैक्षणिक सत्र 2022-23 के लिए देशभर के जिन 21 नए सैनिक स्कूलों को खोलने की मंजूरी दी थी, उसमें देहरादून के भाऊवाला में स्थित जीआरडी वर्ल्ड स्कूल भी शामिल था, लेकिन स्कूल की मान्यता संबंधी शिकायत पर इसमें प्रवेश को स्थगित रखा गया है।

सैनिक धाम को प्रचारित करने वाले प्रधानमंत्री जी पहाड़ के साथ न्याय नहीं कर पाए। और डबल इंजन की सरकार होते हुए भी पिछले 10 सालों से यह मामला लटका हुआ है। इस समय देश की रक्षा सेवाओ के शीर्ष पदो पर उत्तराखण्डी मौजूद है। सैनिक स्कूल खुलने से यह परंपरा आगे भी मौजूद रहने की आशा को ऊर्जा देती। इस स्कूल से पहाड़ में विकास की नई आधारशिला रखी जा रही थी। यह पहाड़ के विकास में विकास का अहम सपना भी था जिससे पहाड़ को नयी पहचान मिलनी भी तय थी। लेकिन आशा और उम्मीदे पहाड़ के हिस्से में आसानी से नही आती है इस स्कूल को भी राजनीति का शिकार होना पड़ा। जिससे पिछले सालो से यहा निर्माण कार्य बंद है।

राज्य बनने के बाद पलायन रोकने के लिऐ यह जरूरी है कि इन सूदूरवर्ती क्षेत्रो में उच्च शिक्षण संस्थानो, शोध संस्थानो, सैन्य प्रशिक्षण संस्थानो, कृर्षि विश्वविद्यालयो की स्थापना हो जिससे देश दुनिया के तमाम छात्र यहा आयेगे साथ ही हमारे नौनिहाल भी उच्च शिक्षा की ओर प्रेरित होगे। वीरान हो रहे इन पहाड़ो में अप्रत्यक्ष रूप से इससे गाँवो में रोजगार बड़ेगा फिर चाहे वो आवागमन हो, दुकान होटल हो या बुनियादी सुविधाऐ। सरकार को सोचना चाहिऐ कि पहाड़ो की खूबसूरती दिखलाने के साथ साथ शिक्षा, प्रशिक्षण, शोध के लिऐ भी पहाड़, देश दुनिया के लिऐ आकर्षण का केन्द्र बने। इस हक के लिऐ अब वक्त आ गया है कि पहाड़वासी अपनी चेतना को जागृत करे। राजनिति को परे रखकर नेता अपने अपने क्षेत्रो में विकास की नयी पहचानो के लिऐ आगे आऐ।

सैनिक स्कूल खुलना नितांत आवश्यक है , यह हमारे पहाड़ का हक भी बनता है, देश पर उत्तराखंड का अहसान है जब भी कोई युद्ध हुआ है उत्तराखंड के रणबांकुरों ने अपनी जान न्यौछावर की है , सवाल उठता है कि हम और हमारे लोग सेना मे सेवा करें उनके बच्चों के लिए उनके घर मे सैनिक स्कूल बनाने पर इतनी हील-हवाली नहीं होनी चाहिए थी क्या ? हमारा उत्तराखंड क्षेत्र केवल सैनिकों की फैक्टरी बनकर रहेगा, सैनिकों के घर-गांव के बच्चों को अच्छी शिक्षा का प्रबंध अच्छे स्वास्थ्य का प्रबंध भी चाहिए। सरकारों की लापरवाही से बहुत सवाल खड़े होंगे।

कुछ वक्त पहले केंद्रीय रक्षा मंत्रालय द्वारा पूरे देश में 28 सैनिक स्कूलों की लिस्ट तैयार हुई थी। इसके बाद इनमें से 24 स्कूलों का चयन हुआ और घोड़ाखाल के सैनिक स्कूल ने इसमें पहला स्थान प्राप्त किया था। उत्तराखंड के लिए गर्व की बात है कि सैनिक स्कूल घोड़ाखाल ने देश में पहाड़ का मान बढ़ाया है रोजगार के बाद शिक्षा और स्वास्थ्य दो मुख्य मुद्दे हैं जो पहाड़ में पलायन को रोकने में सबसे कारगार साबित होते हैं. उत्तराखंड राज्य में रोजगार के नाम पर या तो नेताओं की चमचागिरी का काम मिल रहा है या फिर ठेकेदारी का. तीसरे किसी भी तरह के रोजगार के लिये राज्य में नोटों के बंडल मांगे जा रहे हैं. कम से कम एक 22 सालों में तो ऐसा ही समझ आ रहा है. पहाड़ में राजनीतिक पराकाष्ठा के कारण आज भी उपेक्षित है।