चौराहे पर एक शराबी चिल्ला रहा था कि सरकार सत्ता के सहारे लोगों को बेवकूफ बना रही है राह गुजरते किसी ‘भक्त’ ने सुन लिया और हुजूर को ख़बर कर दी। अगले दिन सुबह गोलमटोल दरोगा जी दरवाजे पर थे और थाने चलने का हुक्म था। शराबी ने पूछा किस ख़ुशी में चलना है तो दरोगा जी बताया कि तुमने रात को सरकार पर इल्जाम लगाया कि वह लोगों को बेवकूफ बना रही है। शराबी का रात का हेंगओवर अभी बाकी था इसलिए वह बिफ़र कर बोला मैंने तो पाकिस्तानी सरकार के लिये बोला था। दरोगा जी मुस्काराए और बोले – अबे ! हम इतने भी बेवकूफ नहीं है, जो ये भी न समझ पायें कि कहाँ के अधिकारी ये काम कर रहे है। .. ऐसा ही कुछ मामला आजकल उत्तराखंड के ठेकेदारों और अधिकारियों के बीच चल रहा।

क्या है ये मामला

अक्सर चर्चाओ में रहने वाले सचिव पंकज पांडे द्वारा CAG की रिपोर्ट आधार बनाते हुए उत्तराखंड में कार्यरत सिविल के ठेकेदारों के कारण होने वाले राजस्व की हानि का जिक्र किया और फ़िर उसे रोकने का एक नायाब तरीका भी ढूंड निकला। उसके बाद 28 जून 2022 को वह तानाशाही फरमान जारी कर दिया गया। जिसमें उनके( ठेकेदारों ) द्वारा अपने कार्य के दौरान इस्तेमाल किये गए किसी भी प्रकार के खनिजों (रेत, बजरी, बोल्डर ) जिसका भी वह बिल लगायेगा, उसे उसकी कीमत के साथ 5 गुना पेनाल्टी भी भरनी पड़ेगी। शुरू में तो ठेकेदारों की समझ में कुछ नहीं आया। मगर जैसे-जैसे विभागों ने उसका मतलब स्पष्ट किया तो ठेकेदारों में रोष पनपना शुरू हो गया। ख़बर फेलती गई और पूरे प्रदेश के ठेकेदार संघों ने अपने अपने स्तर से इसका विरोध करना शुरू कर दिया। यहाँ तक कि प्रदेश के लगभग सभी जिलों के ठेकेदारों ने अपने विधायको के माध्यम से अपनी आवाज सरकार तक पहुचाने का प्रयास भी किया मगर नतीजा सिफ़र ही रहा।

इसी बीच पौड़ी के ठेकेदार संघ की अगुवाई कर रहे विधायक दिलीप रावत की तो विभागीय मंत्री सतपाल महाराज से हुई गर्मागर्म बहस भी चर्चा में रही, जिसमें ‘माननीय मंत्री जी’ किसी भी तरह की सहायता करने से इन्कार करते हुए इसका ठीकरा राजस्व विभाग के ऊपर डाल कर पल्ला झाड़ लिया। उसके बाद देहरादून ठेकेदार कल्याण समिति से जुड़े लोगों ने राजस्व सचिव से मिल कर अपने साथ हो रही इस नाइंसाफी के बारे में अवगत कराया। मगर उन्होंने यह कहते हुए कि यह आदेश खनन विभाग द्वारा निकला गया है वही कुछ कर सकते हैं। अब खनन विभाग है मुख्यमंत्री के पास और सचिव हैं पंकज पांडे तो मामला आसानी से कैसे सुलट सकता है ?

इसके बाद ठेकेदारों ने एकजुट हो कर पहले अपनी गुहार जिलाधिकारी के माध्यम मा0 मुख्यमंत्री उसके बाद मुख्यअभियंता लोक निर्माण विभाग, मुख्य अभियंता सिंचाई विभाग,मंत्री सरिता आर्य, विधायक ; कैंट श्रीमती सविता कपूर, विनोद चमोली, गणेश जोशी, मुन्ना चौहान, प्रेमचंद अग्रवाल,बृज भूषण गैरोला सभी से लगाई मगर हर तरफ़ निराशा ही हाथ लगी। मसले का कोई कहीं हल न निकलता देख कर पूरे प्रदेश के ठेकेदारों ने मजबूर हो कर आज कामबंदी के रूप में सत्याग्रह की घोषणा कर दी।

आज उत्तराँचल प्रेस क्लब में आयोजित प्रेस वार्ता में अपनी पीड़ा बयां करते हुए उन्होंने कहा कि उनकी समझ में यह नहीं आ रहा है कि सरकारी ठेकेदार से राजस्व की हानि कैसे हो रही है ? अगर वह लोग अपने काम के दौरान किसी प्रकार का खनिज (रेत, बजरी, बोल्डर ) आदि का प्रयोग कर रहें हैं तो उसका पक्का बिल GST के साथ दे रहें हैं। उसके बाद विभाग रु.194 प्रति घन मीटर के हिसाब से पेनाल्टी के साथ ही 25% डीएम फंड भी काट रहा है। इन सब के बाद अगर 5 गुना पेनाल्टी भी देनी पड़ेगी तो फ़िर बचेगा क्या ?

ठेकेदारों की बात वाजिब होने के साथ एक सच यह भी था कि अगर पहाड़ में पलायन बचा है तो सिर्फ़ इन्ही ठेकेदारों के कारण। अगर इन्हें भी ख़तम कर दिया गया तो फ़िर इनके साथ जुड़े लोगों का गुजरा कैसे चलेगा ? इसके अलावा अगर लेखाकार की रिपोर्ट को आधार मान कर यह सब किया गया इसमें कमी तो खनन या पुलिस विभाग की है कि वह क्यों कर खनन की चोरी को रोक नहीं पा रहे हैं !

आखिर कहाँ है झोल

अवैध खनन रोकने के लिए खनन विभाग के पास कोई ठोस व्यवस्था ही नहीं है। जो व्यवस्था है, वह भी अमल में नहीं आ पाई है। कहने को नीति में सभी व्यवस्थाओं को आनलाइन करने, वाहनों में जीपीएस ट्रेकिंग सिस्टम लगाने, ई-रवन्ना काटने व मोबाइल चेकपोस्ट बनाने की व्यवस्था की बात कही गई है, लेकिन ये सब बेहद धीमी गति से आगे बढ़ रही हैं।

ऊपर से कई सफेदपोश भी खनन माफिया को अवैध खनन में संरक्षण देते हैं। जिसके चलते अवैध खनन करने वाले माफियाओं का हौसला इतना बढ़ चुका है कि ये सरकारी कर्मचारियों व अधिकारियों पर हमला करने से भी नहीं घबराते। पूर्व में ऐसी कई घटनाएं सामने आ चुकी हैं, जब खनन माफिया अधिकारियों पर हमले कर चुके हैं।

कब और कहाँ हो चुके हैं हमले

2014 रुड़की में तत्कालीन एएसपी प्रहलाद नारायण मीणा पर खनन माफिया ने तमंचा ताना था।
2016 नारसन में खनन रोकने गए एक दारोगा पर जानलेवा हमला हुआ।
2017 काशीपुर में में खनन माफिया ने कोतवाल समेत पांच दारोगाओं पर जानलेवा हमला पांच कार्मिक घायल हुए।
2018 ऊधमसिंह नगर पुलिस टीम पर खनन माफिया ने हमला किया। एक सिपाही घायल
2018 ऊधमसिंह नगर में खनन माफिया ने पुलिस पर हमला किया। दो पुलिस कर्मियों को ट्रेक्टर ट्राली से कुचलने का प्रयास।
2018 काशीपुर में बुलेट से ट्रैक्टर का पीछा कर रहे दारोगा को कुचलने का प्रयास किया गया।
2019 रेंजर व डिप्टी रेंजर पर हमला किया गया।
2020 कोटद्वार में खनन माफिया ने तहसीलदार पर हमला किया।
2021 हरिद्वार के नारसन में माफिया ने पीएसी के जवानों पर हमला किया।

तो माननीय मुख्यमंत्री महोदय अब यहाँ पर जो सवाल उठता है वह यह है कि बीमारी की जड़ तो है ‘खनन विभाग’ और सचिव महोदय राजस्व की ‘बीन’ बजा कर ‘लोक-निर्माण’ से जुड़े लोगों को नचा रहें हैं। अब आप ही बताएं आखिर यह कहाँ तक उचित है ?

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