डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
स्वर्गीय इन्द्रमणि बडोनी, ये वो नाम है जो उत्तराखंड की आत्मा में बसा है। आज अगर आप उत्तराखंड में एक अलग राज्य की हवा को महसूस कर रहे हैं तो ये इस तूफान की वजह से हो सका। 1994 का उत्तराखंड आन्दोलन, इसके सूत्रधार थे इंद्रमणि बडोनी। जुबान के पक्के, मजबूत इरादों वाले और सत्ता को हिलाकर रख देने वाले इस शख्स को आज नमन करें। बीबीसी ने उत्तराखंड आन्दोलन पर अपनी एक रिपोर्ट छापी जिसमें उसने लिखा अगर आपने जीवित और चलते-फिरते गांधी को देखना है तो आप उत्तराखंड चले जायें। वहां गांधी आज भी विराट जनांदोलनों का नेतृत्व कर रहा है। इस व्यक्ति का नाम था इन्द्रमणि बडोनी।
उत्तराखंड राज्य की मांग करने वाले लोगों में सबसे प्रमुख और बड़ा नाम है इन्द्रमणि बडोनी उत्तराखंड राज्य आंदोलन जो अहिंसक व गांधीवादी तरीके से चला, जिसकी अगुवाही गांधीवादी विचारक व जिन्हें पहाड़ का गांघी कहा गया स्वर्गीय इंद्रमणि बड़ोनी के नेतृत्व में आगे बढ़ा। सुरेशानंद बडोनी के पुत्र इन्द्रमणि बडोनी का जन्म 24 दिसम्बर 1924 को टिहरी के ओखड़ी गांव में हुआ था उनकी प्रारंभिक शिक्षा भी गांव में ही हुई। माध्यमिक और उच्च शिक्षा के लिए वह नैनीताल और देहरादून रहे। इसके बाद नौकरी के लिए बंबई गये जहाँ से वह स्वास्थ्य कारणों से वापस अपने गांव लौट आये। उनका विवाह 19 साल की उम्र में सुरजी देवी से हुआ था, 1961 में वो गाँव के प्रधान बने। इसके बाद जखोली विकास खंड के प्रमुख बने। बाद में उन्होंने उत्तर प्रदेश विधान सभा में तीन बार देवप्रयाग विधानसाभ सीट से जीतकर प्रतिनिधित्व किया। 1977 का चुनाव उन्होंने निर्दलीय लड़ा और जीता भी। 1980 में उन्होंने उत्तराखंड क्रांति दल का हाथ थामा और जीवन भर उसके एक्टिव सदस्य रहे।
स्वर्गीय इन्द्रमणि बडोनीमें जन्मे बडोनी मूलतः एक संस्कृति कर्मी थे। 1956 की गणतंत्र दिवस परेड को कौन भूल सकता है, 1956 में राजपथ पर गणतंत्र दिवस के मौके पर इन्द्रमणि बडोनी ने हिंदाव के लोक कलाकार शिवजनी ढुंग, गिराज ढुंग के नेतृत्व में केदार नृत्य का ऐसा समा बांधा की तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु भी उनके साथ थिरक उठे थे।
उत्तर प्रदेश में बनारसी दास गुप्त के मुख्यमंत्रित्व काल में वे पर्वतीय विकास परिषद के उपाध्यक्ष रहे। बडोनी ने 1989 का लोकसभा चुनाव भी लड़ा। यह चुनाव बडोनी दस हजार वोटो से हार गये, कहते हैं कि पर्चा भरते समय बडोनी की जेब में मात्र एक रुपया था, जबकि उनके प्रतिद्वंद्वी ब्रह्मदत्त ने लाखों रुपया खर्च किया। 1988 में उत्तराखंड क्रांतिदल के बैनर तले बडोनी ने 105 दिन की पदयात्रा की। यह पदपात्रा पिथौरागढ़ के तवाघाट से देहरादून तक चली। उन्होंने गांव के घर.घर जाकर लोगों को अलग राज्य के फायदे बताये। 1992 में उन्होंने बागेश्वर में मकर संक्रांति के दिन उत्तराखंड की राजधानी गैरसैण घोषित कर दी।
ऋषिकेश उत्तराखंड राज्य आंदोलन की धुरी रहा है। यहां से व्यापक आंदोलनों की रणनीति तैयार की जाती थी, जिनका नेतृत्व स्व. इंद्रमणि बडोनी किया करते थे। स्वर्गीय बडोनी जी की याद को चिरस्मरणीय बनाने के लिए जन भावनाओं के अनुरूप उक्त चौक का नाम बडोनी जी के नाम से रखा गया है. एक जनहित याचिका के बाद एन एच की कारवाई में अतिक्रमण हटाओ अभियान के दौरान धवस्त हुए शहीद स्मारक को नगर निगम के स्व इंद्रमणि बडोनी सभागार में शिफ्ट कराने का रास्ता साफ हो गया है।
उत्तराखंड राज्य प्राप्ति के दौरान पर्वतीय गांधी के योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता है, आज स्वर्गीय बडोनी के बताये हुए मार्ग पर चलने के लिए सभी को कार्य करना होगा। तभी सिद्ध होगी जब हम उनकी भावनाओं के अनुरूप क्षेत्र के विकास के लिए संगठित होकर कार्य करेंगे।
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जन-विरोधी भू-कानून को लेकर जन-मानस हुआ लामबंद
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