आजकल उत्तराखंड में हिमाचल प्रदेश की तरह के भू_कानून को लागू करने की मांग उठ रही है। हिमालयी राज्य हिमाचल प्रदेश में राज्य का अपना भू कानून है। उत्तराखंड वासियों की मांग है कि उनके राज्य में भी इसी तर्ज का भू_कानून बने। इसे समझने के लिए पहले हिमाचल के भू कानून को समझें ।
आखिर क्या है हिमाचल प्रदेश का भू_कानून ?
हिमाचल सरकार ने 1972 में एक सख्त भू_कानून बनाया गया। इस कानून के अंतर्गत बाहरी राज्यों के लोग हिमाचल प्रदेश में जमीन नहीं खरीद सकते थे। असल में उस समय हिमाचल राज्य आज की तरह संपन्न नहीं था। यह डर था कि इस प्रदेश के लोग मज़बूरी में बाहर के लोगों को अपनी जमीन ना बेच दें। तब हिमाचल प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री डॉ यशवंत सिंह परमार यह कानून ले कर आए कि राज्य से बाहर के लोग धारा-118 के तहत हिमाचल प्रदेश में कृषि भूमि नहीं खरीद सकते।
2007 में धूमल सरकार ने धारा-118 में संशोधन करते हुए उन बाहरी राज्य के व्यक्तियों को जमीन खरीदने की इजाजत दी जो इस राज्य में 15 साल से रह रहे थे। लेकिन बाद में अगली सरकार ने इस सीमा को बढ़ाकर 30 साल कर दिया। यानी हिमाचल प्रदेश में बाहरी राज्य से आया कोई भी व्यक्ति जमीन नहीं ले सकता है। इसी तर्ज पर उत्तराखंड में भी भू कानून की मांग उठ रही है।
उत्तराखंड का भू_कानून
09 नवंबर 2000 को राज्य की स्थापना के बाद सन 2002 में कांग्रेस की तत्कालीन तिवारी सरकार द्वारा राज्य में भी भू कानून बनाया गया था जिसमे यह प्रावधान था कि अन्य राज्यों के लोग उत्तराखंड में सिर्फ 500 वर्ग मीटर तक ही जमीन खरीद सकते थे। 2007 में बनी भाजपा सरकार के मुखिया जरनल खंडूरी ने यह सीमा घटाकर 250 वर्गमीटर कर दी गई। इसका मतलब किसी भी राज्य से आया व्यक्ति उत्तराखंड में अधिकतम 250 वर्ग मीटर की कृषि जमीन ही खरीद सकता था।
06 अक्टूबर 2018 को भाजपा की त्रिवेन्द्र सरकार एक नया अध्यादेश ले कर आयी जिसके मुताबिक “उत्तरप्रदेश जमींदारी विनाश एवं भूमि सुधर अधिनियम” 1950 में संशोधन का विधेयक पारित किया गया। इसमें धारा 143 (क) और धारा 154(2) जोड़ी गई जिसके तहत पहाड़ों में भूमि खरीद की अधिकतम सीमा को ही समाप्त कर दिया गया। निवेश और उद्योगों को बढ़ावा देने के नाम पर लाये इस संशोधन से अन्य राज्य का कोई भी व्यक्ति कितनी भी जमीन उत्तराखंड में खरीद सकता है।
क्या है उत्तराखंड के लोगों का डर
जब से उत्तराखंड सरकार ने इस कानून के माध्यम से बाहरी लोगों के लिए राज्य में जमीन खरीदने की सीमा से रोक हटाई है, तभी से यहाँ के लोग इसे अपनी संस्कृति, सभ्यता, परंपरा, लोकभाषा, जलवायु आदि पर खतरे के रूप में महसूस करने लगें हैं।
यहाँ के आमजन के डर का कारण यह भी है कि यदि बाहर के रसूखदारों को यहाँ के पहाड़ बेच दिए गये तो वह अपने उस राज्य में, जिसे उन्होंने लम्बे संघर्षों व अनेको शहादतों के बाद पाया है, में ही दोयम दर्जे के नागरिक बन कर रह जायेंगे। हिमाचल प्रदेश जो पहाड़ी राज्यों में सबसे संपन्न है, उसके इस विकास का कारण कहीं न कहीं वहां का भू कानून भी है।
क्या फायदा होगा भू_कानून से उत्तराखंड को ?
उत्तराखंड राज्य में अधिकतर उद्योग दूसरे राज्य के लोग चलाते हैं। चाहे होटल हों, रेस्टोरेंट हो, कारखाने हों या निजी स्कूल-कॉलेज, ज्यादातर संस्थाओं के मालिक उत्तराखंड से बाहर के लोग हैं। इस राज्य के लोगों का इनसे कोई तालुक नहीं है, बस राज्य के कुछ लोग ही इनकी संस्थाओं में नौकरी करते हैं, जिन्हें उचित वेतन भी नहीं मिलता।
अगर उत्तराखंड में भी हिमाचल जैसा भू_कानून बन जाता है, तो बाहर के लोग इस राज्य में जमीन नहीं खरीद सकेंगे जिसके चलते यहाँ का सारा उद्द्योग राज्य के लोगों के हाथों में रहेगा । जाहिर सी बात है कि किसी भी संस्थान का मालिक जिस राज्य का होता है वह कामगार भी उसी राज्य के रखता है और यह सारा खेल प्रदेश की जनता पिछले 22 सालों से देख ही रही है।
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