डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला

उत्तराखंड के विश्व प्रसिद्ध चारधाम यात्रा ग्रीष्मकाल में मई में कपाट खुलने से लेकर नवंबर में धामों के कपाट बंद होने तक जारी रहती है। यानी लगभग छह माह तक चारधाम यात्रा जारी रहती है। हालांकि मानसून काल में पर्वतीय क्षेत्रों से भूस्खलन के खतरे और मार्ग बंद होने के कारण चारधाम यात्रा कुछ प्रभावित रहती है और कम संख्या में यात्री धामों में पहुंचते हैं। इस वर्ष तीन मई को गंगोत्री तथा यमुनोत्री धाम के कपाट खुलने के साथ चारधाम यात्रा शुरू हो गई थी। यात्रा शुरू होते ही श्रद्धालुओं का बड़ी संख्या में चारधाम यात्रा के लिए उमड़े। जिससे चारधाम यात्रा व्यवस्थाएं ही चरमराने लगी और प्रशासन को स्थिति नियंत्रित करने के लिए धामों में स्लाट व्यवस्था लागू करनी पड़ी। करीब डेढ़ माह तक चारधाम यात्रा अपने पूरे उफान पर रही। मगर, जून मध्य से यात्रियों की संख्या में कमी आने लगी थी। जुलाई के शुरुआती सप्ताह में जहां धामों में 15 से 16 हजार श्रद्धालु प्रतिदिन दर्शन को पहुंच रहे थे, वहीं दूसरे सप्ताह में यह संख्या 10 हजार से कम रह गई। जबकि वर्तमान में छह हजार से अधिक श्रद्धालु प्रतिदिन धामों में दर्शन को पहुंच रहे हैं।

चार धाम यात्रा में चार पवित्र स्थानों में यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ अैर बद्रीनाथ की यात्रा शामिल है। उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में स्थित चार धामों की तीर्थयात्रा को भारत में सबसे पवित्र स्थान माना जाता है। ये चार प्राचीन मंदिर चार पवित्र नदियों के आध्यात्मिक स्त्रोत को भी चिन्हित करते हैं, जिन्हें यमुनोत्री, गंगोत्री, मंदाकिनी और अलकनंदा के नाम से जाना जाता है। मानसून शुरू होने के साथ ही चारधाम यात्रा भले ही धीमी पड़ गई हो, मगर यात्रा काल अभी समाप्त नहीं हुआ है। ऐसे में यात्रा वाहनों की जांच तथा अन्य व्यवस्था की अनदेखी करना उचित नहीं है। बदरीनाथ मार्ग पर कौडियाला के समीप हुई बस दुर्घटना के मामले में सामने आई खामियों को देखकर तो यह कहना गलत नहीं होगा कि चारधाम यात्रा को प्रशासन ने अब भगवान भरोसे ही छोड़ दिया है।

यात्रा आरंभ होने पर जिस तरह से चारधाम यात्रा से जुड़े तमाम विभागों ने सक्रियता दिखाई थी, वह सक्रियता अब नजर नहीं आ रही है। कुल मिलाकर प्रशासन के सभी जिम्मेदार विभागों ने यात्रा व्यवस्था से किनारा कर दिया है।सबसे अहम भूमिका निभाने वाला परिवहन विभाग भी यात्रा को लेकर बेफिक्र हो गया है। इसका ताजा उदाहरण सोमवार को बदरीनाथ मार्ग पर कौडियाला के समीप हुई दुर्घटना में देखने को मिला। हादसे की प्राथमिक जांच में यह बात सामने आई कि दुर्घटनाग्रस्त हुई बस को यात्रा के लिए ट्रिप कार्ड ही जारी नहीं किया गया था। यानी यह बस बिना ट्रिप कार्ड के ही 33 यात्रियों को धाम के दर्शन करा लौट आई। यह बात भी सामने आई कि बस चालक ने शराब का सेवन किया था, जो दुर्घटना का कारण बना। मगर, यात्रा मार्ग पर इसकी जांच करने और रोकने वाला कोई नहीं मिला। गनीमत तो यह रही कि बस पहाड़ी की ओर टकराने के बाद सड़क पर ही पलट गई। जबकि सड़क के बायें ओर गहरी खाई थी और यह हादसा और भयाभय हो सकता था। इस हादसे में पुलिस और एसडीआरएफ की मुस्तैदी जरूरी सराहनीय रही, जिसने समय पर पहुंचकर यात्रियों को रेस्क्यू कर उन्हें प्राथमिक उपचार दिया और अस्पताल पहुंचाया। मगर, कुछ जिम्मेदार विभागों की कार्यप्रणाली जरूर सवाल खड़े करने वाली है।

चारधाम यात्रा अभी जारी है, ऐसे में यात्रा व्यवस्था को लेकर किसी भी विभाग की ओर से कोई कमी नहीं की जानी चाहिए। परिवहन विभाग को वाहनों की फिटनेस, जांच और अन्य कार्यों में पूरी सतर्कता बरतनी होगी। इसके लिए अधिकारियों को जरूरी निर्देश दिए जा रहे हैं। आपातकालीन परिचालन केंद्रों में सभी विभागों द्वारा सक्षम स्तर के नोडल अधिकारियों को तैनात किए जाने के निर्देश दिए। मानसून काल में आपदा की दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्रों को चिन्हित कर वहां जेसीबी और पोकलैंड मशीने तैनात करने को कहा है। जिससे सड़क टूटने या धंसने की स्थिति में तत्काल यातायात का सुचारु किया जा सके। सिंचाई विभाग को बरसात के दौरान नदियों व बैराजों के जलस्तर पर लगातार नजर रखने और खाद्य विभाग को सभी गोदामों में पर्याप्त अनाज की व्यवस्था करने के निर्देश दिए हैं। विश्व प्रसिद्ध चारधाम यात्रा जारी है। सूबे में मॉनसून आने के बाद भले ही चारधाम यात्रा में आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या में कमी आ गई हो, लेकिन अब सबसे बड़ी चुनौती सरकार और प्रशासन के सामने कांवड़ यात्रा की है। राज्य सरकार और पुलिस प्रशासन की मानें तो हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, पंजाब, बिहार और दिल्ली के पुलिस अधिकारियों से जो तालमेल उत्तराखंड पुलिस का बैठा है, उसके बाद यह अंदाजा लगाया जा रहा है कि इस बार की कांवड़ यात्रा कुंभ मेले का रिकॉर्ड तोड़ सकती है।

यह लेखक के निजी विचार हैं !

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