दूब या ‘दूर्वा’ (वैज्ञानिक नाम- ‘साइनोडान डेक्टीलान”) वर्ष भर पाई जाने वाली घास है, जो ज़मीन पर पसरते हुए या फैलते हुए बढती है। हिन्दू धर्म में इस घास को बहुत ही महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। हिन्दू संस्कारों एवं कर्मकाण्डों में इसका उपयोग बहुत किया जाता है। इसके नए पौधे बीजों तथा भूमिगत तनों से पैदा होते हैं। वर्षा काल में दूब घास अधिक वृद्धि करती है तथा वर्ष में दो बार सितम्बर-अक्टूबर और फ़रवरी-मार्च में इसमें फूल आते है।

दूब सम्पूर्ण भारत में पाई जाती है। भगवान गणेश को दूब घास प्रिय है। यह घास औषधि के रूप में विशेष तौर पर प्रयोग की जाती है। दूब घास पर जब ओस पड़ी हो तो उस पर चलने मात्र से नेत्र ज्योति बढ़ती है। साथ-साथ सिरदर्द और तनाव के लिए भी दूब काफी लाभदायक है। जिन लोगों को अक्सर तनाव रहता है ऐसे लोग दूब घास को पीसकर उसका लेप अपने पैरों में लगाएं। ऐसा करने पर मस्तिष्क को ठंडक मिलती है और दिमाग की उथल-पुथल शांत हो जाती है। इसके अलावा जिन लोगों को अक्सर सिर दर्द रहता हो वे लोग दूब घास को पीसकर उसमें थोड़ा सा चूना मिला लें। फिर इस मिश्रण को सिर पर लगाएं। इसी के साथ दूब घास को हरा रक्त भी कहा जाता है। यह खून बढ़ाने में मददगार होता है। एनीमिया रोग में इसका रस पीने से काफी लाभ होता है।

स्तनापान कराने वाली महिलाओं के लिए दूब का सेवन बहुत लाभकारी होता है साथ ही इसके इस्तेमाल से महिलाओं संबंधी कई स्वास्थ्य समस्याओं जैसे- ल्यूकोरिया, यूरीन इंफेक्शन आदि का उपचार किया जाता है। चूंकि दूब घास की तासीर ठंडी होती है इसलिए इसके ताजे रस का इस्तेमाल मिर्गी, हिस्टीरिया आदि मानसिक रोगों में भी किया जाता है। कहा जाता है कि महाराणा प्रताप ने वनों में भटकते हुए जिस घास की रोटियां खाई थीं, वह भी दूब घास से ही निर्मित थी। दूब या ‘दुर्वा’ वर्ष भर पाई जाने वाली घास है। हिन्दू संस्कारों एवं कर्मकाण्डों में इसका उपयोग होने के कारण इस घास का हिंदु धर्म में बहुत महत्‍वपूर्ण स्‍थान है। दूब घास संपूर्ण भारत में पाई जाती है। दूब घास पशुओं के लिए ही नहीं बल्कि मनुष्यों के लिए भी पूर्ण पौष्टिक आहार है।

अनेक औषधीय गुणों की मौजूदगी के कारण आयुर्वेद में इसे ‘महाऔषधि’ में कहा गया है। दूब की घास का स्वाद कड़वा-मीठा होता है. इसमें प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, कैल्शियम, फाइबर, पोटेशियम पर्याप्त मात्रा में विद्यमान होते हैं. यह पेट के रोगों, यौन रोगों, लीवर रोगों के लिए असरदार मानी जाती है. दूब को संस्कृत में ‘दूर्वा’ घास कहा जाता है .दूब की जड़ें, तना, पत्तियां सभी का चिकित्सा के क्षेत्र में विशिष्ट महत्व है।आयुर्वेद में अनेक रोगों के उपचार के लिए उपयोग में लाया जाता है. दूब का स्वाद कसैला-मीठा होता है। विभिन्न प्रकार के पित्‍त एवं कब्‍ज विकारों को दूर करने के लिए दूब का प्रयोग किया जाता है। दूब घास शरीर में प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ने में मदद करती हैं। इसमें मौजूद एंटीवायरल और एंटीमाइक्रोबिल गुणों के कारण यह शरीर की किसी भी बीमारी से लड़ने की क्षमता को बढ़ाता है। इसके अलावा दूब घास पौष्टिकता से भरपूर होने के कारण शरीर को एक्टिव और एनर्जीयुक्‍त बनाये रखने में बहुत मदद करती है। यह अनिद्रा रोग, थकान, तनाव जैसे रोगों में भी प्रभावकारी है। दूब घास फ्लेवोनोइड्स का मुख्‍य स्रोत है, जिसके कारण यह अल्सर को रोकने में मदद करती है।


दूब में ब्‍लड में ग्लूकोज के स्तर को कम करने की क्षमता होती है। जिससे डायबिटीज कंट्रोल में रहताहै। दूब ब्‍लड में कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम कर दिल को मजबूती प्रदान करती है। यह सर्दी-खांसी एवं कफ समस्‍याओं को दूर करने में मददगार है।उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में मान्यता है कि दूब की घास में टूटा हुआ दांत डालने से दांत न केवल जल्दी आता है बल्कि मजबूत भी आता है. दूब की घास को अत्यंत पवित्र माना जाता है. इसी कारण जहां भी दूब होता है वहां गंदगी नहीं की जाती है.हिन्दू कर्मकांडों में दूब की घास का अत्यंत महत्त्व है. इसे सबसे पवित्र घास माना जाता है.सभी कर्मकांडों में दूब की घास का प्रयोग किया जाता है. जहां भी गणेश की पूजा होती है वहां सबसे पहले दूब को चढ़ाया जाता है. पार्थिव पूजा में भी दूब की तीन पत्ते वाली 108 तिनके चढ़ाये जाते हैं.उत्तराखंड के लोक जीवन में दूब की घास से जुड़े अनेक लोकोक्तियां एवं आशीर्वाद हैं. यहां भाई दूज के दिन दूब की घास के तिनकों से ही बहिन अपने भाई के सिर पर तेल की धार डालती है।संथाल जाति के लोग दूब को पीसकर फटी हुई बिवाइयों पर इसका लेप करके लाभ प्राप्त करते हैं।

डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला (दून विश्वविद्यालय)

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