संस्कृति संरक्षण, प्रबंधन व अनुशासन का परिचायक है नव संवत्सर

क्या आपने कभी यह सोचा कि हमारा नववर्ष कब से शुरू होता है? उसका इतिहास है ? आज पूरी दुनिया भारतीय संस्कृति का अनुसरण कर रही है और हम हैं कि खुद अपनी संस्कृति व अपने संस्कारों की तिलांजलि दे कर उस परालौकिक सभ्यता को तहस-नहस करने पर तुले हैं। भारतीय कैलेंडर के अनुसार हिंदू नववर्ष यानी संवत 2079 इस वर्ष 2 अप्रैल यानी शनिवार से शुरू होने जा रहा है। 2 अप्रैल को शनिवार है इसलिए इस वर्ष के देवता शनि महाराज होंगे।

भारतीय पंचाग और काल निर्धारण का आधार बना हुआ हैं। सबसे बड़ी विशेषता इस कैलेंडर की यह है कि यह वैज्ञानिक रूप से काल गणना के आधार पर बना हुआ है। सभी 12 महीने राशियों के नाम पर इसका समय 365 दिन का होता है। बात करें चन्द्र वर्ष की तो इसके महीने चैत्र से प्रारम्भ होते हैं। इसकी समयावधि 354 दिनों की होती है शेष बढ़े हुए 10 दिन अधिमास के रूप में माने जाते हैं। ज्योतिष काल की गणना के अनुसार इसके 27 प्रकार के नक्षत्रों का वर्णन है। एक नक्षत्र महीने में दिनों की संख्या भी 27 ही मानी गई है। सावन वर्ष में दिनों की संख्या लगभग 360 होती है और मास के दिन 30 होते हैं वैसे तो अधिमास के 10 दिन चन्द्रवर्ष का भाग है लेकिन इसे चंद्रमास न कह कर अधिमास कह दिया जाता है।

यही नहीं यूनानियों ने नकल कर भारत के इस हिंदू कैलेंडर को दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में फैलाया। भले ही आज दुनिया भर में अंग्रेजी कैलेंडर का प्रचलन बहुत अधिक हो गया हो लेकिन फिर भी भारतीय कलैंडर की महत्ता कम नहीं हुई। आज भी हम अपने व्रत-त्यौहार, महापुरुषों की जयंती-पुण्यतिथि, विवाह व अन्य सभी शुभ कार्यों को करने के मुहूर्त आदि भारतीय कलैंडर के अनुसार ही देखते हैं। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से ही बसंती नवरात्र भी प्रारंभ होते हैं। सबसे खास बात इसी दिन ही सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना प्रारंभ की थी। ताज्जुब होता है जिस भारतीय कैलेंडर ने दुनिया भर के कैलेंडर को वैज्ञानिक राह दिखाई आज हम उसे ही भूलने लग गए हैं। पड़ोसी देश चीन नववर्ष मनाने में अपनी संस्कृति का अनुसरण करता है, चीनी चांद आधारित कैलेंडर के अनुसार अपना नववर्ष मनाते हैं।

चीनी नववर्ष को ‘लूनर न्यू ईयर’ के नाम से भी जाना जाता है। चीनी नव वर्ष चीन में सबसे महत्वपूर्ण छुट्टियों में से एक है चीन में हर नववर्ष को किसी पशु का नाम दिया जाता है जैसे चूहा, बैल, बाघ, खरगोश, सांप, घोड़ा, भेड़, बंदर,मुर्गा,कुत्ता और सुअर आदि इस वर्ष 2022 बाघ का वर्ष है। चंद्र नव वर्ष 2022 इस साल 1 फरवरी को पड़ा था। पिछली बार 12 फरवरी को शुरू हुए नववर्ष को बैल (ऑकस) का नाम दिया गया था। इस साल चंद्र नव वर्ष के समारोह 31 जनवरी और 1 फरवरी को हुए थे। पारपंरिक तौर पर इस जश्न की शुरूआत पहले दिन की शाम से शुरू होकर महीने के 15वें दिन में होने वाले लालटेन उत्सव तक चलती रहती है। नव वर्ष के पहले दिन नया चांद निकलता है। चीनी नेता भी इस मौके पर लोगों को बधाई देते हैं। चीनी नववर्ष का सामाजिक तौर पर भी बहुत महत्व है यह नववर्ष चीनी लोगों में मेल-मिलाप कराता है, सभी झगड़ों को मिटाता है और सभी को सुख समृद्धि की शुभकामनाएं देता है। नए साल के अगले दिन बच्चे अपने माता-पिता को नववर्ष की बधाई देते है, लाल कागज के लिफाफे में माता-पिता अपने बच्चों को पैसे देते हैं। चीन में यह त्योहार सबसे लंबी राष्ट्रीय छुट्टी का पर्व है। करीब 30 करोड़ प्रवासी मजदूर अपनी जमा पूंजी के साथ अपने माता-पिता और गांवों में अपने बच्चों से मिलने व नववर्ष मनाने के लिए चले जाते हैं।

दूसरी तरफ हम भारतीय हिंदू नववर्ष के दिन शुभकामनाएं देने से हिचकिचाते हैं शायद इसलिए की कहीं हम पर रूढ़ीवादी का टैग न लग जाए? जबकि अपनी संस्कृति संस्कारों का अनुसरण करना रूढ़िवादीता नहीं। यह तो वह बहुमूल्य धरोहर है जिससे एक तरफ पूरा विश्व सीख रहा है तो दूसरी ओर हम इस धरोहर को खोते जा रहें हैं। दुनिया को राह दिखाने वाली संस्कृति आज खुद राह से भटकने को मजबूर है। भले ही आज सोशल मीडिया पर हिंदू नववर्ष को मनाने के लिए हम सब संदेशों को प्रचारित प्रसारित कर रहे हों, लेकिन हकीकत में उस दिन को भूल जाते हैं। अपने धर्म व संस्कृति के उत्सवों को मनाने का सभी में लगाव होना चाहिए। हमारे महापुरुषों व वीर योद्धाओं ने धर्म व संस्कृति की रक्षा के लिए बहुत बलिदान दिया है क्या वह बलिदान इसलिए ही दिया था की एक दिन हम अपनी संस्कृति व धर्म को ही भूल जाएं। अभी भी समय है सभी को मिलजुलकर ऐसा प्रयास करना चाहिए जिससे विश्व में हमारी संस्कृति का एक ऐसा संदेश जाए की हम 100 करोड़ से ऊपर भारतीय अपनी संस्कृति को संरक्षित रखने के लिए एकजुट हैं। निश्चय ही यह पर्व हमारी सांस्कृतिक विरासत का द्योतक तो है ही, साथ ही कन्यापूजन व पर्यावरण संरक्षण सहित हमारे वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भी अभिव्यक्त करता है। पर्व सामाजिक समरसता व उदारता के लिए उद्दीपन कार्य करते हैं।

संवत्सर प्रतिपदा अर्थात नव संवत्सर भारतीय संस्कृति का परिचायक तो है ही, साथ ही यह पर्व हमें प्रबंधन और अनुशासन का भी बोध करता है। चैत्र शुक्लपक्ष नवरात्र की प्रतिपदा ही वह श्रेष्ठ तिथि है। जबकि ब्रह्मा जी ने सृष्टि का सृजन किया। इस पावन तिथि के महत्व को जानकर विक्रमादित्य ने विजय के पश्चात आज ही के दिन विक्रम संवत लागू किया। भारत में नव संवत्सर एक त्योहार के रूप में मनाया जाता है। कहीं इसे उगादि, तो कहीं इसे नवरेह, तो कहीं नवरात्र और गुढ़ी पड़वा के नाम से जाना जाता है। इस दिन मंदिरों में शंखनाद होता है तो कही घंटियों की स्वर लहरियां वैदिक मंत्रोच्चार के साथ पूरे वातावरण में गूंज उठती है। इस दिन हर भारतवासी सृष्टि का कृतज्ञ हो कर उसके आगे अपना शीश झुकाता है और मन ही मन कहता है कि हे ईश्वर, हे प्रकृति हम आपके अहसानमंद है, जो आपने हमें अपनी आबोहवा में जीवन को खुशनुमा तरीके से जीने का शानदार और नायाब अवसर प्रदान किया है। यह विडंबना का विषय है कि आज की युवा पीढ़ी को भारतीय महीनों के नाम तक याद नहीं है, वह जनवरी, फरवरी के फेर में पड़ी रहती है लेकिन तिथियों का ज्ञान हमें केवल और केवल भारतीय पंचाग से ही मिलता है। भारतीय महीने चैत्र,वैशाख,ज्येष्ठ आषाढ़,सावन,भाद्रपद,आश्विन,कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष,माह,फाल्गुन के बारे में जानकारी बिरले ही युवाओं को होगी,यह अत्यंत दुखद बात है।

आज हमारी युवा पीढ़ी जनवरी में नववर्ष आने पर ढोल, नगाड़े और डीजे पर नाचती नजर आती हैं जिसकी शुरुआत 15 अक्टूबर 1582 से हुई। इसके कैलेंडर का नाम ग्रिगोरियन कैलेंडर है। जूलियस सीजर ने ईसा पूर्व 45वें वर्ष में जूलियन कैलेंडर बनाया। लेकिन वह चैत्र शुक्ल प्रतिपदा का स्वागत नहीं करती। दीप प्रज्वलन की परंपरा वह भूल गई लगती हैं। यह दिन वह अवसर होता है जब मानव मात्र ही नहीं अपितु प्रकृति भी चैत्र शुक्ल प्रतिपदा की खगोलीय घटना की साक्षी बनती है और उसका स्वागत करती नजर आती है। हमें चाहिए कि हम अपनी युवा पीढ़ी को हमारी सनातन संस्कृति और परंपराओं का ज्ञान करवायें क्योंकि इनका निर्वहन व पालन करना हमारा नैतिक कर्तव्य तो हैं ही हमारा धर्म भी। हम अपनी पहचान को कायम रखें, इसे भूले नहीं।

डॉ० हरीश चन्द् अन्डोला (लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय कार्यरत हैं।)

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