क्या सिर्फ बोर्ड लगा देने से रुक सकता है अतिक्रमण ?
देहरादून, 27 फरवरी : उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में सरकारी जमीनों को कब्जाने का खेल बहुत पुराने समय से चल रहा है लेकिन मजाल जो किसी पर आज तक कार्रवाई हुई हो । यहां तक कि अपनी करोड़ों रुपए की जमीने छुड़वाने के लिए नगर निगम को हाईकोर्ट में पसीने बहाने पढ़ रहे हैं । इससे भी हैरानी की बात यह है कि सरकारी जमीनों पर अवैध कब्जे मुक्त कराने में नाकाम हो चुके अधिकारियों पर भी कोई कार्रवाई निगम की ओर से आज तक नहीं हुई है । आखिर सवाल ये उठता है कि करोड़ों रुपए की जमीनो पर अतिक्रमण रोकने में नाकाम हो चुके अधिकारियों को नगर निगम मोटी तनख्वाह क्यों दे रहा है ? और उन्हें क्यों बेवजह ढो रहा है ? इस मामले में शहरी विकास विभाग की भूमिका पर भी सवाल उठने लगे हैं। गौरतलब है कि नगर निगम के गठन के बाद से ही सरकारी जमीनों पर अवैध कब्जे होते आए हैं । जिसको लेकर निगम प्रशासन की कार्यशैली कटघरे में आती रही है । नगर निगम की सरकारी जमीनों पर अवैध कब्जों को यहां के मेयर तक स्वीकार करते रहे हैं, लेकिन कार्रवाई के नाम पर निगम अपने हाथ खड़े करता रहा है । सिर्फ सड़कों और फुटपाथों से अतिक्रमण हटाकर प्रशासन भी अपनी जिम्मेदारी की इतिश्री करता रहा है । लेकिन करोड़ों रुपए की जमीन जो भूमाफिया कब्ज़ा कब चुके हैं उन्हें छुड़वाने के लिए गंभीरता से कोई कार्रवाई नहीं की गई । जिसको लेकर लगातार निगम की कार्यशैली सवालों के घेरे में आती रही है। चाहे प्रथम मेयर स्वर्गीय मनोरमा डोबरियाल शर्मा का कार्यकाल हो या फिर विनोद चमोली के दो-दो कार्यकाल, भू माफिया लगातार नगर निगम की जमीनों को कब्जाने का खेल खेलते रहे हैं ।
हैरानी की बात यह है कि भूमि अनुभाग से जुड़े अधिकारियों की मिलीभगत सामने आने के बाद भी आज तक इन पर कोई कार्रवाई नहीं हो पाई । वर्तमान में भी लगातार नगर निगम की जमीने ना केवल कब्जाई जा रही हैं, बल्कि उन पर प्लॉटिंग कर भूमाफिया उन्हें खुलेआम बेच रहे हैं । लेकिन नगर निगम के अधिकारी और जनप्रतिनिधि मानो कुंभकरण की नींद में सोए हुए हैं। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार नगर निगम क्षेत्र के अंतर्गत डांडा लखौंड क्षेत्र में एक भूमाफिया ने ना केवल नगर निगम की जमीन पर अवैध कब्जा कर लिया है बल्कि अवैध रूप से प्लाटिंग कर फर्जी तरीके से बेच भी रहा है । इसमें जनप्रतिनिधि व अधिकारियों की भी मिलीभगत की खूब चर्चाएं हो रही है । इसी तरह से मार्केट में भी अवैध रूप से नगर निगम की जमीन पर चैटिंग कर बेचने का खेल खेला जा रहा है । लेकिन निगम के अधिकारियों के कानों पर जूं तक नहीं रेंग रही । इसी तरह सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार मोथरोवाला में भी लगभग डेढ़ सौ बीघा जमीन पर अवैध रूप से प्लाटिंग कर उसे बेचने का खेल चल रहा है । जिसमें भूमि अनुभाग के अधिकारियों की मिलीभगत की भी खूब चर्चाएं हो रही है । हैरानी की बात तो यह है कि नगर निगम की जमीनों से अतिक्रमण हटाने में नाकाम हो चुके अधिकारियों पर क्यों कार्रवाई नहीं की जा रही ? इसमें कहीं ना कहीं मिलीभगत की भी आशंका जताई जा रही है । यहां तक कि शहरी विकास निदेशालय भी ऐसे मामलों में चुप्पी साधे बैठा हुआ है जो कि कहीं ना कहीं उसकी भूमिका पर भी सवाल खड़े करता है। ऐसे में आखिर कौन इन अवैध कब्जों की आवाज उठाएगा यह भी एक बड़ा सवाल बना हुआ है।
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