या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता,
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।
या ब्रह्माच्युतशङ्करप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता,
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा।।
उपनिषदों की कथा के अनुसार सृष्टि के प्रारंभिक काल में भगवान शिव की आज्ञा से ब्रह्मा जी ने प्रकृति जीवों खासतौर पर मनुष्य योनि की रचना की, लेकिन वे अपनी सृजनता से संतुष्ट नहीं थे जिसके कारण चारों ओर मौन व्याप्त था। तब ब्रह्मा जी ने इस समस्या के निवारण के लिए अपने कमंडल में से जल लेकर छिड़का और भगवान विष्णु की स्तुति करने लगे, स्तुति सुन भगवान विष्णु ब्रह्मा जी के समक्ष प्रकट हुए। उनकी समस्या जानकर भगवान विष्णु ने आदिशक्ति मांँ दुर्गा का आवाह्न किया।
विष्णु जी द्वारा आवाह्न होने पर भगवती मांँ दुर्गा वहांँ तुरंत ही प्रकट हो गई। तब ब्रह्मा जी और विष्णु जी ने उनसे इस संकट को दूर करने का निवेदन किया। उसी क्षण आदि शक्ति मांँ दुर्गा के शरीर से एक श्वेत रंग का भारी तेज उत्पन्न हुआ जो एक दिव्य नारी के रूप में बदल गया। यह स्वरूप एक चतुर्भुजी सुंदर स्त्री का था जिसके एक हाथ में वीणा और दूसरा हाथ वर मुद्रा में था अन्य दोनों हाथों में पुस्तक एवं माला थी।
प्रकट होते ही देवी ने वीणा का मधुरनाद किया जिससे संसार के सभी जीव-जंतुओं को वाणी प्राप्त हो गई। जलधारा में कोलाहल व्याप्त हो गया और पवन चलने पर सरसराहट होने लगी। तब सभी देवी देवताओं ने शब्द और रस का संचार कर देने वाली उन देवी को वाणी की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती कहा। तब आदि शक्ति मांँ दुर्गा ने ब्रह्मा जी से कहा यह देवी सरस्वती आपकी अर्धांगिनी बनेगी। जिस प्रकार लक्ष्मी जी श्री विष्णु जी की शक्ति है, पार्वती शिव जी की शक्ति है, उस प्रकार देवी सरस्वती आपकी शक्ति होंगी।
ऐसा कहकर आदि शक्ति देवी दुर्गा अंतर्ध्यान हो गई और सभी देवी देवता सृष्टि संचालन में संलग्न हो गए। पुराणों के अनुसार श्री कृष्ण जी ने देवी सरस्वती को वरदान दिया था कि वसंत पंचमी के दिन आपकी आराधना की जाएगी। वरदान के फल स्वरुप वसंत पंचमी के दिन देवी सरस्वती की पूजा होने लगी जो आज तक जारी है।
सरस्वती जी को वागीश्वरी, भगवती, शारदा,वीणावादिनी, वाग्देवी, आदि नामों से भी जाना जाता है।