देहरादून, 27 जनवरी: कैंट विधानसभा से आज दो प्रत्याशियों ने पर्चा दाखिल किया। दोनो ही प्रत्याशियों के बीच कई बातें सामान दिखीं। सबसे पहले तो दोनों ही के पास उत्तराखंड राज्य आन्दोलनकारीयों की भरमार देखने को मिली। अनिरुद्ध नामांकन से पहले तो दिनेश नामांकन के बाद शहीद स्मारक पहुंचे। दोनों का ही स्वभाव बेहद सरल एवं सौम्य दिखा और दोनों ही कैंट विधानसभा में उत्तराखंडीयत को जगाने की बात करते दिखे। दोनों के बीच जो अंतर दिखा वह उनके उम्मीदवार बनने को लेकर था। जहाँ दिनेश रावत भाजपा द्वारा ग़लत टिकट वितरण को लेकर आहात थे, तो दूसरी ओर अनिरुद्ध भविष्य के लिए उक्रांद की जमीन तैयार करते दिखे। उनका कहना था कि 22 सालों से भाजपा व् कांग्रेस ने इस राज्य को सिवाये लूटने के कोई काम नहीं किया। इसे रोकने के लिए सक्षम क्षेत्रिय दल बेहद जरुरी है। अगर यह मजबूत हुआ तभी हम अपने संसाधनों की लूट को रोक पायेंगे।
चुनावी मुद्दों पर बात करते हुए काला ने कहा कि शुरुवात में तो उनका फ़ोकस सिर्फ कैंट विधानसभा के विकास पर था। मगर अब कांग्रेस द्वारा घोषित प्रत्याशी के कारण राज्यन्दोलानकारी रहे लोगों के दिलों में वह उबाल सा महसूस होने लगा है। उनके चयन के बाद से कांग्रेस के कई नेता उनसे व्यक्तिगत संपर्क कर चुके हैं। उनका कहना है कि अगर पार्टी ने प्रत्याशी नहीं बदला तो वह अपना मन बदलने में बिलकुल भी संकोच नहीं करेंगे।
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कमोवेश ऐसी ही स्थिति भाजपा के अन्दर भी है। चूँकि पिछली बार स्व० हरबंस कपूर जो कि खुद राज्यन्दोलानकारी थे, तो लोगों को उनके साथ खड़े होने में कोई दिक्कत नहीं होती थी। मगर जब से प्रदेश भाजपा के शासकीय प्रवक्ता सुबोध उनियाल द्वारा पहाड़ियों को हरामखोर कहा गया, तब से वह भी असहज महसूस कर रहें हैं। मुख्य मुकाबले के बारे में उन्होंने कहा कि अभी यह बताना संभव नहीं है, क्योंकि कल शायद राज्यआन्दोलन की नींव रहे बड़े भाई वीरेन्द्र पोखरियाल भी नामांकन कर रहे हैं जो इस विधानसभा में विगत 1 साल से अपनी पूरी टीम के साथ आन्दोलनकारियों के सम्मान की लड़ाई को बेहद शिद्दत के साथ लड़ रहे हैं। इस विधानसभा के हर वार्ड में उनके समर्थकों का जाल बिछा हुआ है। पहले सभी दावेदारों को सामने आने दें, उसके बाद ही तस्वीर साफ हो पायेगी. अंत में उन्होंने आग्रह करते हुए स्पष्ट किया कि पूर्व में पार्टी के द्वारा की गई गलतियों को भुला कर प्रदेश में क्षेत्रिय दल को मजबूत करें। चुनाव के बाद वह लोग पार्टी के भीतर एक बड़ा रिफॉर्म करने वाले हैं। भले ही आज वो दावेदार हैं, हो सकता है अगली बार आप को ही लड़ना पड जाये। ये कोई दिल्ली वालों की पार्टी तो है नहीं, जो वहां जाकर लक्ष्मी-गणेश पूजने पड़ें।