देहरादून, 26 जनवरी: गणतंत्र दिवस के शुभ अवसर पर आज वीरेंद्र पोखरियाल के समर्थकों द्वारा बल्लीवाला चौक के समीप एक बैठक का आयोजन किया गया। बैठक में आए समर्थकों ने एक स्वर में उनसे निर्दलीय चुनाव लड़ने पर जोर देते रहे तो दूसरी ओर वीरेंद्र पोखरियाल खुद को कांग्रेस का सिपाही बताते हुए उन्हें समझाने का प्रयास करते दिखे। बैठक में चर्चा कई बार बहस में भी तब्दील होती दिखी। असल में कुछ साथियों का कहना था कि उन्हें पार्टी के फैसले के साथ खड़े होना चाहिये तो अधिकतर ने उनकी बात का विरोध किया।
कैन्ट विधानसभा से कॉंग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ चुके 7 वार्ड प्रत्याशियों का कहना था कि वह तो सालों से पार्टी का डंडा -झंडा संभाल रहें हैं वार्ड से लेकर लोकसभा चुनाव तक घर-घर जा कर प्रचार करने/पर्ची बांटने से लेकर बूथ में बस्ता संभालने तक की जिम्मेदारी तो उनकी होती है। मगर कितनी अजीब बात है कि उनके क्षेत्र से कौन चुनाव लड़ेगा, ये दिल्ली में बैठ कर तय किया जाता है। आखिर इस बारे में उनकी राय क्यों नहीं ली जाती। अब उनके अंदर पार्टी कार्यकर्ता से ज्यादा बंधुवा मजदूर होने का अहसास भरने लगा है। पार्टी पिछले 10 सालों से इस सीट को हारा हुआ मान कर इस सीट का सौदा करती चली आ रही है। हम लोग भी इसी को नियति मान कर बैठे हुऐ थे मगर अब नहीं बैठेंगे।
समर्थकों ने बताया कि कोरोना काल में सभी पार्टियों ने उनकी मदद की गई मगर उनके द्वारा की गई मदद के बाद भी जो आत्मीय जुड़ाव उनके साथ बना वह पिछले 20 सालों में किसी के साथ नहीं हुआ। इसी के चलते आज उनके मन में यह विश्वास है कि उनके ऊपर कोई भी मुसीबत आती है तो पोखरियाल भाई है।
पोखरियाल ने कहा कि वह उनकी भावनाओं का सम्मान करते हैं मगर मेरे द्वारा निर्दलीय चुनाव लड़ने और आप लोगों को मेरा समर्थन करने के बाद पार्टी सभी को निष्कासित कर देगी। ऐसे में यह स्थिति मेरे लिए यह बेहद कष्टकारी होगी कि मैं अपने चुनाव लड़ने की चाह में आप सभी का राजनितिक भविष्य दाव पर नहीं लगा सकता।
इसके बाद तो समर्थकों का जैसे लावा ही फूट पड़ा। पार्टी के संगठन के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि संगठन की सबसे निचली इकाई में काम करने वाले लोगों के बीच ही जब भेदभाव होने लगे तो असर ऊपर तक तो जायेगा ही। यहां भी अपने आदमियों को एडजस्ट कराने की परंपरा बन चुकी है। योग्य होने के बावजूद अगर वह आदमी अगर “आपका” नहीं है तो वो कभी भी संगठन में नहीं आ सकता।
कार्यकर्ताओं ने शीर्ष संगठन पर भी सवाल दागते हुए कहा कि प्रदेश अध्यक्ष से लेकर कोषाध्यक्ष तक सभी पदाधिकारी चुनाव लड़ रहें है पार्टी में पद भी इन्हीं को चाहिये और टिकट भी ! तो फिर चुनाव लड़ाएंगा कौन ? वैसे भी प्रदेश के शीर्ष नेतृत्व के बीच चल रही खिंचम-तान के चलते इन पदों का कोई सम्मान बचा हो तो किसी को बतायें। राज्य बनने के बाद पहली बार लग रहा था कि कॉंग्रेस भी इस सीट को जीत सकती है मगर अब क्या कहें ? उन्होंने पोखरियाल से निवेदन किया कि आप दावेदारी तो करें हम निःसंकोच अपने पदों से इस्तीफा दे देंगे। जिसे टिकट दिया है जब उसने जीतना ही नहीं तो फिर हम भी हारें तो क्या फर्क पड़ जायेगा हम कम से कम एक साथ तो रहेंगें। इस बहाने शायद उनकी बात दिल्ली तक पहुंच जाएं।
पोखरियाल ने विश्वास दिलाया कि वह समर्थकों का मन नहीं तोड़ेंगे उनकी भावनाओं का सम्मान करते हुए वह अपना नामांकन जरूर दाखिल करेंगे। उन्होंने कहा कि वह एक कट्टर राज्यन्दोलानकारी रहें हैं, जिस कारण वह सैधांतिक रूप से कभी भी कांग्रेस के ‘इस’ प्रत्याशी का समर्थन नहीं कर सकते। उन्होंने पार्टी हाईकमान से गुजारिश करी है कि वह अपने फैसले पर एक बार फिर से पुनर्विचार करें और इस बात को समझने की कोशिश करें कि आखिर क्या कारण है कि कई चुनाव हारने के बाद भी इनके टिकट की पैरवी कौन कर रहा है और क्यों ? कैंट विधानसभा के दूसरे सभी प्रत्याशियों भी अगर सोनिया गांधी से इस निर्णय पर पुनर्विचार करने की सामूहिक अपील कर रहें हैं तो क्यों ? आखिर पार्टी कितनी बार और इन पर दांव लगायेगी । उन्होंने कहा कि हम सब का विरोध पार्टी से नहीं, प्रत्याशी से है । इसलिये वह थोडा और सब्र करें, चुनाव भावनाओं में बह कर नहीं जीता जा सकता इसके लिये अभी कुछ अन्य साथियों से भी चर्चा करना बेहद जरुरी है अत: आप लोगों को अभी मायूस होने की आवश्यकता नहीं है। वह नामांकन दाखिल कर रहें हैं । बैठक में सेकड़ों की संख्या में समर्थक मौजूद थे।
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