आज 23 जनवरी को नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 125 वीं जयंती है। आजाद भारत की सरकारों ने उन्हें भारत के सर्वोच्च सम्मान“भारत रत्न” से सम्मानित करने की कभी गंभीर कोशिश नहीं की गई। जबकि उनकी योग्यता स्वीडन के नोबेल पुरस्कार प्राप्त करने से भी कहीं अधिक बढ़कर थी ।
कितना आश्चर्य है कि ब्रिटिश राज के राजकुमार जॉर्ज पंचम के भारत आगमन की शान में “जन गण मन अधिनायक” जैसे गीत को रचने वाले रविंद्र नाथ टैगोर को तो “नोबेल पुरस्कार” तथा भारत का सर्वोच्च सम्मान “भारत रत्न” मिल गया। किंतु विशुद्ध रूप से देशभक्ति से ओत-प्रोत नेताजी सुभाष चंद्र बोस जिन्होंने जर्मनी, जापान, रूस,सिंगापुर आदि देशों में घूम कर “आजाद हिंद फौजी “को गठित किया व मातृभूमि को आजाद करने का जिस अद्वितीय साहस से बीड़ा उठाया, उसे ना तो आजाद भारत की सरकार ने पसंद किया और ना ही किसी विदेशी सरकार ने।
पूरे विश्व इतिहास में ऐसा कोई उदाहरण नहीं मिलता, जहां अपने देश को आजाद कराने के लिए किसी ने, विदेशों में जाकर सेना का गठन कर अपने देश की आजादी के लिए संघर्ष किया हो।आजाद भारत की सरकारें, एक राजनीतिक षडयंत्र के तहत उनके जिंदा रहने या मरने की अफवाहें तो उड़ातीं रहीं, मगर उनकी अद्वितीय देश भक्ति के अस्तित्व को कभी सम्मान नहीं दिया।
कालांतर में आजादी के 53 साल के पश्चात उन्हें जो “भारत रत्न” का सम्मान देने की कोशिश की गई, तो उनके परिवारजनों ने ही उसे यह कहते हुए लेने से इनकार कर दिया कि इतने वर्षों के बाद अब यह यह सम्मान नेताजी सुभाष चंद्र बोस के उच्चतम, सर्वश्रेष्ठ व अनन्य देशभक्ति का अपमान है।
ऐसे अप्रतिम देशभक्त को श्रद्धांजलि देने के लिए आज हमारे पास न तो शब्द बचे और ना ही भाव।