7 जनवरी 2022 को जिस समय राज्य आन्दोलनकारी मुख्य मंत्री के उनके आवास में मिठाई और फूलों के गुलदस्ते के साथ फ़ोटो खींचने में मशगूल थे ठीक उसी समय सचिवालय में उनके खिलाफ़ पटकथा लिखी जा रही थी और इधर मुख्यमंत्री आन्दोलनकारियों को राज्यपाल कि कहानी सुना रहे थे ।

10% क्षैतिज आरक्षण का जिन्न एक बार फिर निकल आया है। माननीय उच्च न्यायालय ने पुनः उनके द्वारा दिनांक 7 मार्च 2018 पीआईएल संख्या 67/ 2011 में पारित आदेश के अनुपालन में की गई कार्यवाही का विवरण देने को कहा है। कार्मिक सचिव अरविंद सिंह ह्यांकी द्वारा दिनांक 7 जनवरी 2022 को समस्त विभागों को भेजे गए पत्र में अवमानना याचिका 810 / 2018 दीपक बहुगुणा बनाम उत्पल कुमार सिंह एवं अन्य का जिक्र करते हुए कहा है कि आज दिनांक 10 जनवरी 2022 को मध्यान 12 बजे तक हर हाल में उनके यहां 10% क्षैतिज आरक्षण के अंर्तगत कार्यरत सभी कार्मिकों का विवरण लेकर पहुंचे। इस पत्र में कार्मिक विभाग द्वारा दिनांक 5 दिसम्बर 2018 को भेजे गए पत्र का जिक्र भी किया गया है कि उसके अनुपालन में विभाग द्वारा क्या कार्यवाही सुनिश्चित की गई।

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क्या है ये मामला

पृथक राज्य के निर्माण में अपना बहुमूल्य योगदान देने के कारण तत्कालीन मुख्यमंत्री एन डी तिवारी द्वारा उत्तराखंड राज्यान्दोलनकारीयों का सम्मान करते हुए दिनांक 11 अगस्त 2004 को दो शासनादेश 1269 व 1270 लाकर सरकारी विभागों में नियुक्तियां प्रदान करवाई थी। जिसके बाद करुणेश जोशी ने पीआईएल संख्या 67/2011 के मार्फत शासनादेश संख्या 1269 को चुनौती दी थी। प्रदेश के विद्वान अधिवक्ताओं की लचर पैरवी के चलते दिनांक 7 मार्च 2018 को मा0उच्च न्यायालय ने शासनादेश संख्या 1269 के साथ 1270 (जिसके ख़िलाफ़ कोई अपील ही नहीं की गई थी) को भी रद्द करने के आदेश जारी कर दिए। तब सचिवालय के होशियार अधिकारियों द्वारा उक्त आदेश का मन-माना अर्थ निकालते हुए उक्त तिथि के बाद से लागू माना था। इसके बाद कार्मिक विभाग द्वारा 5 दिसम्बर 2018 को एक गोलमोल पत्र सभी विभागों को भेज कर अग्रेत्तर कार्यवाही सुनिश्चित करने को कहा था।

किंतु दीपक बहुगुणा द्वारा योजित अवमानना याचिका में उच्च न्यायालय ने 6 दिसम्बर 2018 को अपने आदेश को स्पष्ट करते हुए कहा कि यह पश्चगामी (Retrospective) प्रभाव से लागू किया होगा। यानि 11.8.2004 की जिस तिथि से ये लागू हुआ वहीं से इसे निरस्त किया गया है।

अब पुनः मा0 उच्च न्यायालय द्वारा उनके आदेश की अवमानना के नोटिस ने पूरे सचिवालय को हिला कर रख दिया। कल दिनांक 11 जनवरी को सरकार को अपना जवाब माननीय उच्च न्यायालय में प्रस्तुत करना है।
अफसोस की बात ये है कि इसी 10 % क्षैतिज आरक्षण पर कोटद्वार के आये आंदोलनकारी क्रान्ति कुकरेती द्वारा सरकार को आत्मदाह के नोटिस देने के साथ वह लगातार 11 दिन तक शहीद स्मारक उपवास पर बैठे रहे और तमाम खुद को वरिस्ठ आन्दोलनकारी मानने वाले 31 जनवरी तक ( चिन्हीकरणकी बैठक के बहाने) धरने पर दिखते रहे, उसके बाद कहाँ गायब हुए पता नहीं बाकि जिन लोगों की ये लड़ाई थी वह ही कभी इस विषय पर गम्भीर नही हुये तो बाकियों का तो कहना ही क्या ? अब दिनांक 11 जनवरी को सरकार अपना क्या जवाब माननीय उच्च न्यायालय में प्रस्तुत करेगी, यह देखने की बात होगी।

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