जनरल विपिन रावत ग्राम सैण, द्वारीखाल पौड़ी गढ़वाल के मूल निवासी थे
उनका ममकोट थाती गांव ,धनारी पट्टी उत्तरकाशी है
नाना थे यूपी में मंत्री
सेण गांव थाती गांव बतौर जनरल आये थे पिता थे लेफ्टिनेंट जनरल,
19 नवम्बर 19 को थाती गांव अपने भाई को मिलने आये थे
देश विदेश में सेना, सुरक्षा शांति बनाये रखने की अपनी 40 वर्ष से अधिक शानदार सेवायें दी
उत्तराखंड ने अपना बहादुर जनरल खोया है।
देश के साथ उत्तराखंड भी बहुत दुखी है।
लेफ्टिनेंट जनरल बिपिन रावत, लक्ष्मण सिंह रावत,श्रीमती सुशीला देवी के घर ग्राम सैण, द्वारीखाल पौड़ी गढ़वाल में पैदा हुए। उनकी माता सुशीला देवी का मायका परमार लोगों के यहाँ धनारी पट्टी में था। सुशीला देवी का पिता का नाम सूरत सिंह परमार था। सूरत सिंह के छोटे भाई ठाकुर किशन सिंह तत्कालीन उत्तर प्रदेश के कद्दावर नेताओं में थे। वह संविधान सभा के सदस्य रहे। ठाकुर किशन सिंह टिहरी प्रजामंडल सरकार में शिक्षा मंत्री रहे।उसके बाद स्वतंत्र भारत में मनोनीत सांसद रहे।1962,1967,1969 में उत्तरकाशी विधानसभा क्षेत्र से विधायक का प्रतिनिधित्व किया।1969- 70 में उत्तर प्रदेश सरकार में वन राज्य मंत्री भी रहे। ठाकुर साहब ने भारत सरकार से उत्तरकाशी में नेहरू पर्वतारोहण संस्थान की स्थापना करवाई। वह देहरादून बार एसोसिएशन के अध्यक्ष भी रहे।सुशीला देवी की पढ़ाई किशन सिंह जी के देख रेख में देहरादून में हुई। जनरल बिपिन रावत हर्षिल, नेलांग में भी रहे। बतौर आर्मी चीफ वह दो बार दो रात्री को हर्षिल में रहे। उन्होंने नेलांग और हर्षिल पुराने दिनों को याद किया था। 18 नवम्बर 19 को हर्षिल से अपने मामकोट आये थे। वहाँ वह अपने भाई भाभी जी सहित बच्चों, गाँव वासियों को मिले थे। उन्होंने वह घर भी देखा जहाँ वह बचपन में अपनी माँ के साथ आया करते थे रहा करते थे। उनकी मां एमकेपी कालेज में पढ़ती थी। जब छुट्टियां होती थी , तब वह धनारी पट्टी में जाती थी। जनरल विपिन रावत कि नाना ठाकुर किशन सिंह की न्यू रोड देहरादून में कोठी थी वहां भी जनरल बिपिन रावत काफी समय तक रहे। उस कोठी में भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू बैडमिंटन खेलने आया करते थे। अंग्रेज अधिकारियों ने उन्हें या छूट दे रखी थी, नेहरू जी पास के ही देहरादून जेल में करीब 300 दिन तक बंद थे। उत्तराखंड के लिए गौरव की बात थी जब वह अपने देश के एक जनरल को अपने गांव में अपने मामा कोट में अपने पास आते हुए देखते थे। इतिहास के प्रति मेरी रुचि से जनरल साहब की मां के भाई कर्नल सत्यपाल सिंह रावत से फोन पर बातचीत होती है। कर्नल परमार जी नोयडा में रहते हैं। मामकोट पक्ष से कर्नल साहब, जनरल साहब से संपर्क में रहते थे। कर्नल स्तब्ध हैं। जनरल रावत उत्तरखण्ड को उन ऊंचाईयों तक ले गए जहाँ अभी तक मात्र सात-आठ लोग ही पहुँचे हैं। इतिहास उन्हें याद करता रहेगा।
साभार: शीशपाल गुसाईं