विभाजन विभीषिका स्मृति

शैलेन्द्र शैली स्मृति व्याख्यान

“मोदी के न्यू इंडिया का मकसद आजादी के बाद भविष्य के उजाले की तलाश में लगे भारत को भूतकाल के अँधेरे में ले जाना है। आज की सबसे बड़ी चुनौती यह है कि संवैधानिक व्यवस्था को ध्वस्त करने की आरएसएस और भाजपा की साजिशों से देश को किस तरह बचाया जाए।” यह बात शैलेन्द्र शैली स्मृति व्याख्यान-2021 की पखवाड़े भर चली श्रृंखला के समापन व्याख्यान में सीताराम येचुरी ने कही।

उन्होंने याद दिलाया कि स्वतंत्रता संग्राम के सार के रूप में देश को आगे ले जाने का एक नजरिया भी सामने आया था। धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक, संघीय गणराज्य बनाकर उसे आत्मनिर्भर बनाने की आम राय निकल कर सामने आयी थी। अंग्रेजों की गुलामी के दिनों और थोपे गए विभाजन के दौरान जिन विभीषिकाओं की पीड़ा से इस देश को गुजरना पड़ा था, उनका समाधान भारत के संविधान में किया गया था। पिछले 7 सालों में भाजपा-आरएसएस उसी संविधान को ध्वस्त करने में लगी हैं। इसे और स्पष्ट करते हुए देश के वरिष्ठ वामपंथी नेता सीताराम येचुरी ने कहा कि आज वह धारा सत्ता में जाकर बैठ गयी है, जिसे स्वतंत्रता संग्राम के दौरान भारत की जनता ने पूरी तरह ठुकरा दिया था। यह भारत की जनता थी, जिसने तय किया था कि वह धर्म के आधार पर हिन्दू राष्ट्र बनाने की बजाय एक धर्मनिरपेक्ष देश बनाएगी। मोदी के 7 वर्षों के राज में इस समझ को ही उलट कर आजादी की लड़ाई की उपलब्धियों को ध्वस्त किया जा रहा है।

सीपीआई (एम) महासचिव येचुरी ने कहा कि आजाद भारत ने आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था की बुनियाद जिस सार्वजनिक क्षेत्र का निर्माण करके रखी थी, पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने जिन्हें ‘भारत के आधुनिक तीर्थ स्थल’ बताया था, मोदी सरकार उनके निजीकरण और खात्मे में लगी हुयी है। यह निजीकरण नहीं है, यह भारत की जनता की संपत्ति की लूट है। ऐसा करके सिर्फ आत्मनिर्भरता ही नहीं, देश की सम्प्रभुता को भी खतरे में डाला जा रहा है। महामारी के दौरान जनता को इलाज और राहत पहुंचाने में नाकाम रही मोदी सरकार वैक्सीन के मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश को भी नहीं मान रही। दिसंबर अंत तक हरेक भारतीय को दोनों टीके लगाने के इस आदेश को पूरा करना है, तो हर रोज 1 करोड़ टीके लगाने होंगे – मगर नहीं लगाए जा रहे, क्योंकि वैक्सीन है ही नहीं। सार्वजनिक क्षेत्र में इसका उत्पादन किया जा सकता है — मगर सरकार उसे करने नहीं दे रही।

उन्होंने कहा कि आम नागरिको की जिंदगी के लिए नए-नए खतरे सामने आ रहे हैं, मगर मोदी सरकार बजाय उन्हें राहत देने के लूट करने और कराने में लगी है। सामाजिक शोषण भी बढ़ा है। महिलायें अनगिनत तरीके के शोषण-उत्पीड़न की निशाना बनाई जा रही है। कोरोना के समय में जहां स्कूल-कालेज बंद हैं, वहीँ अमानवीयता की हद यह है कि बच्चो की, खासकर लड़कियों की तस्करी बढ़ी है। सामाजिक न्याय की बजाय सामाजिक अन्याय बढ़ रहा है। संविधान की संघीय समझदारी उलटकर प्रदेश सरकारों से उनके विधि सम्मत अधिकार छीने जा रहे हैं। लोकतांत्रिक अधिकार, अभिव्यक्ति का अधिकार, मौलिक अधिकार सभी खतरे में हैं। बुजुर्ग मानवाधिकार कार्यकर्ता फादर स्टेन स्वामी की जेल में मौत हो गयी — अनेक पत्रकार और मानवाधिकार कार्यकर्ता जेलों में पड़े हुए हैं।

राजनीतिक नैतिकता और लोकतांत्रिक मर्यादा की सारी सीमाएं लांघी जा चुकी है। चुनाव प्रणाली से हासिल जनादेश को पैसे की दम पर उलटा जा रहा है। इसके मध्य प्रदेश सहित कई उदाहरण उन्होंने दिए और कहा कि संविधान निर्माताओं ने विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के जो तीन स्तम्भ निर्मित किये थे, उन्हें खोखला किया जा रहा है। संसद को मखौल बनाकर रख दिया गया है। जनता की समस्याओं पर चर्चा रोकी जा रही है और बिना किसी प्रक्रिया का पालन किये लूट के क़ानून बनाये जा रहे हैं। इतिहास के अनेक उदाहरण देते हुए सीताराम येचुरी ने बताया कि हरेक ने कोई न कोई नया निर्माण किया। यह पहला शासक है, जो सब कुछ ध्वंस कर मोदी नगर में मोदी महल बनाने में बीसियों हजार करोड़ रुपया फूँक रहा है और भूख-बीमारी से खस्ताहाल जनता को राहत देने के नाम पर खजाने को खाली बता रहा है।

मिथिहास को इतिहास बताकर पढ़ाने के इरादे से शिक्षा नीति को अंधविश्वासी और पोंगापंथी बनाया जा रहा है। किसान आंदोलन का उल्लेख करते हुए उन्होंने किसान-मजदूरों के बढ़ते संघर्षों तथा मजबूत होती एकता को महत्वपूर्ण बताया और कहा कि भारत को बचाना है, तो संविधान लोकतंत्र, आजादी, सोच, समझ और बुनियादी अधिकारों की रक्षा के संघर्षो को तेज करना होगा।

उन्होने शैलेन्द्र शैली की क्षमताओं तथा योग्यताओं का स्मरण करते हुए कहा कि उनका होना जनवादी आंदोलन के लिए बहुत जरूरी था।