सरकार बोली- वन विभाग से मिली अनापत्ति


नैनीताल। उत्तराखंड हाईकोर्ट ने राज्य सरकार द्वारा रिजर्व शिवालिक एलिफेंट कॉरिडोर को डी नोटिफाइड करने के खिलाफ दायर जनहित याचिका पर सुनवाई की। कोर्ट ने इस मामले में अगली सुनवाई के लिए 11 अगस्त की तिथि नियत की है। सुनवाई के दौरान सरकार द्वारा कोर्ट को बताया गया कि इस पर उन्हें वन विभाग से नो ऑब्जेक्शन (अनापत्ति प्रमाण पत्र) मिला हुआ है।
पिछली तिथि को सदस्य सचिव राज्य वन्य जीव बोर्ड जे. सुहाग व्यक्तिगत रूप से कोर्ट में पेश हुए थे। उनसे कोर्ट ने पूछा था कि केंद्र सरकार व जैव विविधता पर्यावरण को संरक्षित करने के लिए क्या कदम उठा रही है? कोर्ट ने यह भी कहा कि क्या वहां पर प्रस्तावित एयरपोर्ट का विस्तार अन्य जगह की तरफ किया जा सकता है? कोर्ट ने सुहाग से यह भी पूछा था कि जो संस्थान वन्य जीवों के संरक्षक हैं वे ही ऐसा निर्णय कैसे ले सकते हैं?

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मामले की सुनवाई मुख्य न्यायधीश आरएस चौहान व न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ में हुई। बता दें कि देहरादून निवासी रेनू पाल ने नैनीताल हाईकोर्ट ने जनहित याचिका दायर की थी। याचिका में उन्होंने कहा था कि 24 नवंबर 2020 को स्टेट वाइल्ड लाइफ बोर्ड की बैठक में देहरादून जौलीग्रॉट एयरपोर्ट के विस्तार करने लिए शिवालिक एलिफेंट रिजर्व फॉरेस्ट को डी नोटिफाइड करने का निर्णय लिया गया। बैठक ने बताया गया था कि शिवालिक एलिफेंट रिजर्व के डी नोटिफाइड नहीं करने से राज्य की कई महत्वपूर्ण परियोजनाएं प्रभावित हो रही हैं, लिहाजा इसे डी नोटिफाइड करना अति आवश्यक है। इस नोटिफिकेशन को याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। कोर्ट ने सरकार के इस डी नोटिफिकेशन के आदेश पर रोक लगा रखी है।याचिकाकर्ता का यह भी कहना है कि रिजर्व शिवालिक एलीफेंट कॉरिडोर 2002 से रिजर्व एलिफेंट कॉरिडोर की श्रेणी में शामिल है, जो करीब 5405 स्क्वायर वर्ग किलोमीटर में फैला है। यह वन्य जीव बोर्ड द्वारा ही नोटिफाइड किया गया एरिया है। इसके बाद भी बोर्ड इसे डी नोटिफाइड करने की अनुमति कैसे दे सकता है? जबकि एलिफेंट इस एरिया से नेपाल तक जाते हैं।