उत्तराखंड राज्य शाखा के खिलाफ शराब उद्योग ने जीता मुकदमा
– हरीश रावत सरकार में बिकने वाली डेनिस को लेकर शराब व्यवसाइयों ने सीसीआई में किया था मुकदमा
देहरादून। भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (सीसीआई, सुप्रीम कोर्ट के समकक्ष) ने उत्तराखंड कृषि उपज विपणन बोर्ड (यूएपीएमबी) पर एक करोड़ रूपये का जुर्माना ठोका है। सीसीआई ने उत्तराखंड के यूएपीएमबी को राज्य में भारतीय निर्मित विदेशी शराब (आईएमएफएल) की खरीद में प्रतिस्पर्धा-विरोधी तरीकों के लिए दंडित किया है। यह मादक पेय पदार्थों के कारोबार में काम कर रहे राज्य सरकार के व्यावसायिक उद्यम के खिलाफ उद्योग के पक्ष में शासन करने का पहला उदाहरण है।
सीसीआई ने अपने फैसले में कहा कि राज्य के लिए विशेष थोक लाइसेंसधारक यूएपीएमबी द्वारा मादक पेय पदार्थों की मनमानी खरीद, अपनी प्रमुख स्थिति का दुरुपयोग करने के रूप में हुई है। क्योंकि इससे यूनाइटेड स्पिरिट्स के माध्यम से शीर्ष शराब कंपनियों को बाजार की पहुंच से इनकार किया गया। दरअसल इंटरनेशनल स्पिरिट्स एंड वाइन एसोसिएशन ऑफ इंडिया (आईएसडब्ल्यूएआई) ने 2016 में निष्पक्ष व्यापार नियामक से शिकायत की थी कि सरकार की थोक इकाई उन्हें अन्य आपूर्तिकर्ताओं के पक्ष tvमें राज्य से बाहर निकालने की कोशिश कर रही है और अपने आदेशों को कम से कम करने के लिए राज्य सरकार के नियंत्रण में है। बहुत से लोगों को यह मामला समझ नहीं आ रहा होगा। चलो आपको बताते हैं कि बात हरीश रावत सरकार में प्रमोट की गई शराब डेनिस के संबंध में हो रही है। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2014 में लोक सभा चुनाव के चलते आचार संहिता चल रही थी। उसी दौरान तत्कालीन उत्तराखंड राज्य में कांग्रेस की हरीश रावत सरकार ने एफएल-2 का जीओ जारी किया था। जीओ जारी होने के साथ ही भाजपा के तत्तकालीन प्रदेश अध्यक्ष अजय भटृट ने जमकर विरोध किया और पूरी भाजपा अजय भटृट के पीछे खडी हो गई। राज्य सरकार पर दबाव पड़ा और राज्य सरकार ने जीओ वापस ले ले लिया। इसके बाद राज्य सरकार ने वर्ष 2015 में फिर से जीओ लाने के लिए एक कमेटी का गठन किया और उत्तराखंड मंडी परिषद को अधिकार देते हुए एफएल-2 को लेकर नीति बनाने का अधिकार दे दिया। मंडी परिषद ने कुमांउ मंडल विकास निगम और गढ़वाल मंडल विकास निगम का चयन कर जिलों में कमेटियां गठित करने को कहा और शर्त यह रखी कि राज्य में बिकने वली शराब पर निर्णय मंडी परिषद ही करेगा और वही खरीदेगा और बेचने के लिए भी वही देगा। उसी दौरान आबकारी सचिव का स्टिंªग आपरेशन हो गया और वह पद से हट गए। राज्य सरकार की इस पूरी कसरत का परिणाम यह निकला कि राज्य में अंर्तराष्ट्रीय और राष्ट्रीय कंपनियों की शराब जैस कि मैकडोवल, ब्लैंडर, हैंडरेड पाइपरी, ब्लैक डाॅक, रायल स्टैग इत्यादि शराब के ब्रांड उत्तराखंड से गायब हो गए और शराब के नाम पर केवल डेनिस के नाम से लोकल कंपनी की हुस्की की ही बिक्री प्रमुखता से होने लगी। डेनिस ने सारे रिकार्ड ध्वस्त कर दिए। इस दौरान बहुराष्ट्रीय कंपनियो के साथ ही कांग्रेस के वरिष्ट नेता पी चिदंबरम भी उत्तराखंड हाईकोर्ट में आ गए थे। वर्ष 2016 में शराब की बहुराष्ट्रीय कंपनियां यह मामला सीसीआई के पास लेकर चली गई । इसके बाद 2017 में राज्य में भाजपा सरकार के आते ही शराब की पुरानी नीति लागू हो गई लेकिन यह मामला सीसीआई में चल रहा था। बहुराष्ट्रीय कंपनियों का कथन था कि अगर डेनिस इतनी लोकप्रिय शराब थी तो अब क्यों नहीं बिक रही है जिसने हरीश रावत सरकार के कार्यकाल में सारे रिकार्ड तोड दिए थेै इस मामले में सुनवाई पूरी होने के बाद सीसीआई ने माना कि 2014 के बाद उत्तराखं में जो भी हुआ वह दुराग्रहपूर्ण किया गया था। इसके कारण शेयर बाजार में भी गिरावट आई थी। सीसीआई ने इस पूरे मामले के लिए यूएपीएमबी को दोषी ठहराया और उस पर एक करोड़ का जुर्माना ठोंका है।