देहरादून, वरिष्ठ राज्य आंदोलनकारी व प्रसिद्ध रंगकर्मी रेवानन्द भट्ट उर्फ रेवा भाई का 31 मार्च देर सांय उनके निवास पर निधन हो गया । वह पिछले 4 सालों से पैरालाइस चल रहे थे प्राप्त सूचना के अनुसार होली से एक दिन पूर्व उन्हें स्ट्रोक पड़ा था ।
उनके निधन की सूचना मिलते ही उनके सहकर्मी रहे कई रंगकर्मी व साहित्यकारों एंव समाजसेवियों ने उनके निवास में पहुँच कर उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित किये। उनके पुत्र नितिन भट्ट द्बारा हरिद्वार मे मुखाग्नि देकर उनका अंतिम संस्कार किया गया।
मंच के जिलाअध्यक्ष प्रदीप कुकरेती ने बताया कि वह नगर निगम से सेवा निवृत हुए थे औऱ अपने पीछे एक पुत्र और एक पुत्री छोड़ गए। उनका पुत्र नितिन भट्ट भी अपने पिता के पद चिन्हो पर चलते हुए नाटकों व रंगमंच पर अपनी भूमिका अदा रहा है।
वरिष्ठ जनकवि डाo अतुल शर्मा जी बताते है कि स्वर्गीय रेवा भट्ट जी एक बेहतरीन और दूरदर्शी इंसान के साथ उनमे रंगकर्म के प्रति जबरदस्त ललक थी। जब उनके द्वारा लिखे जनगीतों का पहला कैसेट निकाला तो उसके सबसे ज्यादा चर्चित गीत
लड़के लेंगे,भिड़ के लेंगे छीन के लेंगे उत्तराखंड
जिसने उत्तराखंड के जन मानस को पृथक राज्य की मांग के लिए उद्वेलित कर दिया था उसके बेहरतीन ढोलक की ताल भाई रेवा नंद भट्ट जी ने ही दी थी। प्रभात फेरी मे भी वह इस गीत के साथ ताल मिलाते और रंग जमा देते थे।
सड़कों पर उतर कर अपनी आवाज़ के माध्यम से जनगीतों को आम जन तक पहुँचाने वाले जयदीप सकलानी ने बताया कि आज से लगभग तीन वर्ष पूर्व जब उन्होंने “जनसंवाद” के माध्यम से पूरे प्रदेश में राज्यन्दोलन में अपनी विशेष भूमिका निभाने वाले रंगकर्मियों को सम्मान करने का बीड़ा उठाया तो रेवा भाई जो उस समय भी अस्वस्थता के कारण नगर निगम सभागार में पहुचने में असमर्थ थे उनके आग्रह को नहीं ठुकरा सके तब भाई मोहनखत्री के प्रयासों से उन्हें व्हीलचेयर पर बैठा कर उन्हें पूरे आदर और सम्मान के साथ समारोह स्थल तक ला कर उन्हें सम्मानित किया।संभवतः उनकी कई रंगकर्मी व साहित्यकारों से अंतिम सामूहिक मुलाकात थी वैसे स्थानीय उनके पुराने साथी उनकी खैर-खबर लेने बराबर जाते रहते थे।
युगांतर के “घासीराम कोतवाल” व “सैयां भये कोतवाल” नाटक उनकी बेहतरीन अदायगी के लिये हमेशा याद किये जायेंगे।
रंगकर्मी सतीश धोलाखण्डी ने कहा कि पृथक उत्तराखण्ड राज्य आन्दोलन मे सुरेन्द्र भण्डारी के द्बारा रचित नाटक “केन्द्र से छुड़ाना है” मे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। सतीश ने बताया कि राज्य बनाने के बाद उन्होंने आगे बढ़कर हमेशा नई पीढ़ी के लोगो मंच प्रदान और प्रोत्साहन किया। भट्ट जी सभी के मददगार थे और सुलझी हुई सलाह भी देते थे। मंच पर अपने सधे हुए अभिनय से वह सब का मन खुश कर देते थे उनकी संवाद अदायगी बहुत संतुलित थी ।
जगमोहन जोशी “मन्टू” द्बारा अतुल शर्मा के जनगीत “तकलीफे तूफान बनी है.. गीत को उन्होंने जिस अंदाज में गया था वह आज भी लोगों के जेहन में मौजूद है।
गढ़वाल सभा के अध्यक्ष रोशन धस्माना ने याकहा कि वह उत्तराखण्ड नाट्य परिषद के दूसरे महासचिव रहते हुए भव्य नाट्य समारोह आयोजित हुए जिसमे हमेशा युवाओ को प्रोत्साहन दिया गया।
उनके साथ रंगमंचों में सहकर्मी रहे मदन ढुकलान कुलानन्द घनशाला ने भी उनके निधन पर श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि आज गढ़वाली रंगमंच का सशक्त कलाकार अलविदा हो गया।
उत्तराखंड सांस्कृतिक मोर्चा के सुनील कैंथोला ने भी दुःख प्रगट करते हुए कहा कि इसी के साथ नाटक के क्षेत्र में एक युग का अंत भी हो गया। उनकी भरपाई कोई नही कर सकता।
श्रद्धांजली देने वालो में सत्यानंद बडोनी,पवन राना,सुरेंद्र उनियाल,मोहन चौहान,रमेश धीमान,अमित गोदियाल, जयकृत कंडवाल, अंबुज शर्मा,उदय भट्ट,एमपी डिमरी,राम देवप्रयागी रणवीर सिंह,कुंदन कुमारी,अनूप कुमार, राजा बहुगुणा, बीपी मैंदोली,नंद शर्मा, रवि मिश्रा ,एलपी भट्ट, अनिल रौतेला, सुरेश नेगी, राजीव धस्माना,सुमन डोभाल काला,उपेंद्र तिवारी, मीना सिंह, पवन नारायण रावत, नवेदु मठपाल, सुनील खंतवाल,इंद्र दत्त ,वीरेंद्र सिंह भूपत बिष्ट, शशि भूषण बड़ोनी, राकेश नेगी ओमी उनियाल,जगमोहन नेगी,प्रदीप कुकरेती,जयदीप सकलानी,डाo अतुल शर्मा,रामलाल खंडूड़ी ,राजकुमार , राजेश चौधरी, उदय मल्ल,रमेश डोबरियाल,अनुज जोशी,कमलेश खंतवाल,नाट्यकर्मी अभिषेक मैंदोला और दीपक रावत,सुदेश सिह , सुरेश कुमार,मनोज ज्याडा, राकेश नौटियाल आदि रहे।