कवि कुछ ऐसी तान सुनाओ ,जिससे उथल -पुथल मच जाए ! और वाकई में आज 5 बजकर 5 मिनट पर आखिर उथल -पुथल मच ही गई ।
आदर्शवादी भारतीय राजनीति की एक बुलंद मीनार आज ढह गई ।हार और रार न मानने वाला एक कवि ह्रदय सह्रदय राजनेता भारतमाता को अलविदा कहकर अनंत की यात्रा पर चल दिया ।
पता नहीं उसने अपने लोगों से ये कहा कि, नहीं ,”अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों ” । लेकिन उन्हें जाते -जाते उसे ये हर्ष जरूर रहा होगा कि, वो जिस पार्टी की नैया को तूफ़ान से खेकर लाया था, वो आज सुदृढ़ स्तिथि में है सत्ता के शीर्ष पर प्रचंड बहुमत लेकर बैठी है और आगे आनेवाले कल में एकबार फिर जंग जीतने की तैयारी में प्राणपण से जुटी है।
किसी भी दल के मुखिया के लिए यह बड़े संतोष का सबब होता है कि, अपने पीछे वो एक भरापूरा परिवार और समृद्ध विरासत छोड़कर के जा रहा है
उन्हें अमेरिका की धमकी के आगे न झुकते हुए , पोखरण विस्फोट के द्वारा देश को परमाणु संपन्न राष्ट्र बनाने के लिए जाना जाएगा ,स्वर्णिम चतुर्भुज की कल्पना के अंतर्गत सड़कों के निर्माण के लिए जाना जाएगा ,उनको नदियों को जोड़ने की महत्वाकांक्षा के लिए जाना जाएगा , उन्हें संयुक्त राष्ट्र में हिंदी में बोलने के लिए जाना जाएगा, उन्हें किसी अन्य दल की सरकार होने के बावजूद भी संयुक्त राष्ट्र में भारत का पक्ष रखने के लिए जाना जाएगा,उन्हें अपने ही लोगों को राजधर्म की याद दिलाने के लिए जाना जायेगा, उन्हें हमारे पुराने दुश्मन पाकिस्तान से संबंध सुधारने के लिए जाना जाएगा ,उन्हें नरम हिंदुत्व के लिए जाना जाएगा ,उन्हें धार्मिक विद्वेष की राजनीति न करने के साथ ही संयम ,शिष्टाचार और भाषा व शब्दों की मर्यादा के लिए जाना जाएगा ।
एक बार तो ऐसा भी लगा था कि वो मुस्लिम समुदाय से बात करके राम मंदिर का मसला सुलझा लेंगे,उनके ज़माने में भले ही इंडिया शाइन नहीं हुआ पर उनके चेले -चांटों ने विदेशों में भारत की छवि को काफी हद तक चमका दिया था भले ही देश के अंदर हालात जो भी हों ।
अटलजी को देखकर काफी कुछ शास्त्रीजी भी याद आते है पर अटलजी बड़े मजाकिया और हंसोड़ किस्म के व्यक्ति थे, मस्त और बिंदास ,खुशदिल इंसान ! भारतीय जनता पार्टी के अंदर मौजूद दो प्रमुख विचार धाराओं में एक विचारधारा उनकी थी यह धड़ा उनका था ।
” न कोई टायर ( थका ) है और न रिटायर है ” , उनके इस कथन ने यह स्पष्ट कर दिया था कि ,पार्टी के अंदर ,उनको चुनौति देना आसान नहीं है ।
उनके हनुमान का लंका जीतने का ख्वाब अधूरा ही रह गया। एक बात जो मैं शिद्दत से महसूस करता हूँ कि, यदि वो पिछले कुछ सालों में स्वस्थ होते और मोबाईल पर सोशल मीडिया में राजनीति की छवि देखते तो वो अपने लोगों से ये जरूर कहते कि, यार ऐसा मत करो , राजनीति की गरिमा बनाए रखो ,यह ठीक नहीं है ।
पता नहीं हिंदुत्व पर मंडराते खतरे और एस.सी./ एसटी एक्ट के बारे में उन्हें पता था या नहीं और किसी ने उन्हें बताया भी था या नहीं ?
उन्हें देहरादून बहुत पसंद था और वो जब तक स्वस्थ थे ,साल में एक आध चक्कर मार ही लेते थे ।मैंने उन्हें टिहरी में डाक्टर साहब गैरोलाजी के घर में एकबार देखा था , शायद उत्तरकाशी से आते हुए या जाते हुए ।
खैर हम सभी जानते हैं कि, कुदरत के क़ानून के अनुसार तारे टूटा करते हैं और सहारे छूटा करते हैं । एक ज्वाजल्यमान सितारा था जो आज टूटकर ,धरती से आसमान की ओर उड़ चला,अंतरिक्ष की सैर पर ।
राकेश मोहन थपलियाल,मुंबई.
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