ये वेल्लूर की स्नेहा राजा हैं और पेशे से वकील। लेकिन इनकी पहचान यह नही है। इनकी पहचान यह है कि स्नेहा देश की पहली नागरिक हो गई हैं जिन्होंने वैधानिक तौर पर धर्म और जाति विहीन ( नो कॉस्ट नो रिलीजन) होने का सर्टिफिकेट हासिल कर लिया है। इसके लिए उन्हें लंबी लड़ाई लड़नी पड़ी है। प्रतिभा कहती हैं बतौर मनुष्य हम ब्रह्मांड की सर्वाधिक विकसित प्रजाति हैं तो फिर हमें जाति और धर्म की क्या जरूरत ?

क्या सवा सौ से अधिक की जनसंख्या वाले देश में किसी को नहीं सूझा था ऐसा कुछ ?

सूझा था कई लोगों को सूझा था, लेकिन वे सब वह नहीं कर पाये जो प्रतिभा ने कर दिखाया। जिन्हें जाति और धर्म से एलर्जी थी, वे सब स्वयं को नास्तिक घोषित करके खुश हो गए। अब प्रश्न उठता है की प्रतिभा ने स्वयं को जाति व धर्म से मुक्त करने के लिए लंबी लड़ाई क्यों लड़ी अदालत में ?

यदि देखा जाये, तो तथाकथित जातियाँ और धर्म केवल लेबल मात्र हैं, व्यावहारिकता से कोई संबंध नहीं है। इनसे न तो व्यक्ति का कोई हित होता है, न समाज का और न ही राष्ट्र का। तो कोई भी जागृत व चैतन्य व्यक्ति इन सब से मुक्त ही होना चाहेगा। जिसका कोई उपयोग नहीं, जिससे कोई सहयोग नहीं, कोई सुरक्षा नहीं, उसे ढोने का लाभ ही क्या है ?

जातियाँ बनीं किसी समूह द्वारा अपनाई गयी आजीविका के माध्यम से। जैसे स्वर्णकारों का समूह सुनार कहलाए, लोहे के काम करने वाले लुहार कहलाए। शिक्षा का प्रचार प्रसार करने वाले ब्राह्मण कहलाए। युद्ध कौशल में पारंगत सैनिक, प्रहरी आदि क्षत्रिय कहलाए। लेकिन क्या आज इनकी कोई प्रासांगिकता है ?

आज जब आईएएस, आईपीएस बनने की होड़ मची है, ऐसे में ब्राह्मण हो या क्षत्रिय या वैश्य, या शूद्र……सभी इसी दौड़ में दौड़ रहे हैं। और सरकारी नौकरी मिलने के बाद सभी शूद्र बन जाते हैं। ब्राह्मण और क्षत्रिय तक गलत को गलत कहने का साहस खो बैठते हैं और अधर्मियों के साथ मिलकर अधर्म पर अधर्म किए जाते हैं। और जब आज जातियों के मायने ही समाप्त हो गए तो जातियों को ढोने का लाभ ही क्या है ?

रही धर्म की बात ! तो आज धार्मिक है कौन ?

साम्प्रदायिकता को धर्म घोषित करके सभी साम्प्रदायिक बन चुके हैं और अधर्म व अधर्मियों के समर्थन में खड़े हो गए लोग। और यदि कोई इक्का दुक्का धार्मिक होने का प्रयास करता भी है, तो सारा समाज ही उसके विरुद्ध खड़ा हो जाता है। तो धर्म और धार्मिकता बची ही कहाँ है ?

आप जिस नेता या राजनैतिक पार्टी का समर्थन करते है, जिसे सत्ता सौंपते हैं, क्या वे धार्मिक हैं ?

क्या आप धार्मिक हैं ?

आप हिन्दू हो सकते हैं, मुसलमान हो सकते हैं, सिक्ख हो सकते हैं, ईसाई हो सकते हैं, बौद्ध हो सकते हैं…..लेकिन क्या धार्मिक हैं ?

अब जब समाज में गिने चुने ही धार्मिक बचे हों, तो ऐसे में जाति व धर्म का महत्व ही क्या है ? क्यों ढोना ऐसी जातियों और धर्मो को जो किसी के कोई काम नहीं आ रही ?

क्या जातिवादी पार्टियां अपनी जातियों के लोगों को माफियाओं, रिश्वतखोर अधिकारियों, धूर्त, मक्कार नेताओं और अपराधियों से सुरक्षा दे पा रहीं हैं ?

क्या धार्मिक लोग अपने अपने धर्मों के लोगों को सामाजिक, राजनैतिक सुरक्षा व सहायता कर पा रहे हैं ?

नहीं न ??

तो क्यों ढोना इन बोझों को ?

 

कहीं आप भी अनजाने में अपने राष्ट्रीय ध्वज (तिरंगे ) का अपमान तो नहीं कर रहे

साभार -सोशल मीडिया