SC/ST Act के खिलाफ सवर्ण संगठन आज सम्पूर्ण भारत  में विरोध-प्रदर्शन कर रहे हैं। कई जगहों पर हिंसक झड़पों का सामना भी करना पड़ रहा है। इस विरोध का सबसे ज्यादा असर उत्तर प्रदेश में देखा जा रहा है। कई मुख्य रेल सेवाओं को बाधित किया गया है। बाजार बंद किये गए हैं। केन्द्र सरकार के वोटबैंक के लिए, लिए गए फैसले के खिलाफ सवर्ण समाज एकजुट होता दिख रहा है।
सवर्ण संगठन चाहते हैं कि एससी/एसटी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट ने जो फैसला दिया था उसे उसी रूप में बहाल किया जाए। इस एक्ट को लेकर सवर्णों में जो आक्रोष आया उसकी तह तक जाना जरूरी है।
एक नज़र पूरे मामले पर
अनुसूचित जाति एवं जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989अथवा एससी/एसटी एक्ट हाशिए एवं कमजोर समुदायों को अत्याचार एवं भेदभाव से बचाता है। इस एक्ट का उद्देश्य दलित समुदाय के लिए समाज में ऐसा वातावरण निर्माण करना है जिससे कि वे सम्मानपूर्वक जीवन-यापन कर सकें।
गौरबतल है कि गत 20 मार्च 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने इस एक्ट के दुरुपयोग को लेकर चिंता जाहिर की और इस कानून के तहत प्राथमिकी (दर्ज) होते ही आरोपी की तुरंत गिरफ्तारी पर रोक लगा दी। साथ ही कोर्ट ने गिरफ्तारी से बचने के लिए अग्रिम जमानत का भी प्रावधान किया।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि किसी सक्षम अधिकारी के अनुमति के बिना सरकारी कर्मचारियों को गिरफ्तार नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी कहा कि इस एक्ट के तहत आम नागरिक की गिरफ्तारी मामले की जांच के बाद होनी चाहिए।
शीर्ष न्यायालय के इस फैसले के बाद दलित समुदाय सड़कों पर उतर आया और हिंसक प्रदर्शन किया। देश भर में हुए हिंसक प्रदर्शनों में 11 लोगों की जान गई। मामले की संवेदशीलता को देखते हुए केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल किया लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में किसी तरह का राहत देने से इंकार कर दिया। कोर्ट ने कहा, ‘हमारा उद्देश्य निर्दोष लोगों की सुरक्षा करना है और हमने किसी भी तरीके से इस कानून को कमजोर नहीं किया है।’
सवर्णो का तर्क 
एससी/एसटी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को सवर्ण समुदाय राहत देने वाला मानता है।
सवर्ण समुदायों का कहना है कि इस एक्ट का दुरुपयोग कर उन्हें झूठे मामलों में फंसाया जाता है।
सवर्ण समुदाय एससी/एसटी एक्ट पर शीर्ष न्यायालय के फैसले को बहाल करने की मांग कर रहे हैं। संगठनों का कहना है कि कोर्ट का फैसला सही है।
वोट बैंक में दबाव आकर सरकार ने एक्ट को उसके पुराने स्वरूप में बहाल कर दिया है, जिसका वे विरोध कर रहे हैं।
दरअसल, दलित समुदाय के विरोध प्रदर्शनों एवं अपने ही दलित समर्थक सहयोगी दलों के दबाव को देखते हुए सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को बदलने का फैसला किया।
सरकार ने मानसून सत्र में एससी-एसटी एक्ट में संशोधन से संबंधित विधेयक को मंजूरी दे दी। सरकार के इस कदम के बाद सवर्ण संगठन नाराज हो गए हैं।
सवर्ण समुदायों ने दी है धमकी
देशव्यापी  सवर्ण समुदायों ने चेतावनी दी है कि यदि उनकी मांगें नहीं मानी गईं तो सरकार को इसके गंभीर नतीजे भुगतने होंगे।
सवर्ण संगठनों की भारत बंद की तैयारी को देखते हुए सभी राज्यों  में सुरक्षा के कड़े प्रबंध किए गए हैं ।
राज्य में कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए सरकार ने उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और बिहार के  कई जिलों में धारा-144 लगाई है।
एससी/एसटी एक्ट के तहत तुरंत होती है गिरफ्तारी
दलित समुदाय का कोई व्यक्ति यदि किसी के खिलाफ शिकायत दर्ज कराता है तो आरोपी व्यक्ति के खिलाफ तुरंत प्राथमिकी दर्ज हो जाती है और बिना जांच के उस व्यक्ति को गिरफ्तार कर लिया जाता है।
एससी/एसटी एक्ट में दर्ज मामलों की सुनवाई भी स्पेशल कोर्ट में होती है।
इस एक्ट में अग्रिम जमानत मिलने का प्रावधान नहीं है। इन मामलों में जमानत केवल उच्च न्यायालय से मिलती है।
एससी/एसटी एक्ट बनने का यह था कारण 
इस एक्ट को बनाने का उद्देश्य समाज के दलित, वंचित और हाशिए के समुदायों को न्याय सुनिश्चित कराना है।
इस एक्ट का लक्ष्य दलित वर्ग के लिए समाज में भय और हिंसा मुक्त वातावरण बनाना है ताकि वे मर्यादा और आत्मसम्मान के साथ अपना जीवन-यापन कर सकें।
दलित समुदाय की सुरक्षा के लिए छूआछूत की भावना को भी इस एक्ट में अपराध की श्रेणी में रखा गया है।
कैसे केन्द्र सरकार है घेरे में 
मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़  में इस वर्ष होने वाले आगामी विधानसभा चुनावों में इसके परिणाम देखने को मिल सकते हैं। साथ ही लोकसभा चुनाव भी नजदीक ही हैं। ऐसे में किसी एक समाज की सन्तुष्टिकरण की राजनीति केन्द्र सरकार पर भारी पड़ सकती है। पिछले लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी विकास के नारे पर प्रचंड बहुमत के साथ विजयी हुई थी। बहरहाल इस लोकसभा चुनाव में सत्ताधारी पार्टी आरक्षण के मुद्दे पर घिरती दिख रही है।