बहुत पुराने ज़माने का बात है, जब मथुरा में लोकतंत्र खतरे में था और कंस के अत्याचारों का जल –स्तर खतरे के निशान को पार कर ओवर फ्लो हो रहा था ? कंस ने अपना डैड को कुर्सी के राज सिंहासन से उतारकर, मार्गदर्शक मंडल में भी न रखकर सीधा जेल में डाल दिया था. बेचारे अग्रसेनजी को किंग कंस ने न तो प्रीविपर्स की तरह कोई खर्चा-पाणी दिया और उन्हें ललुआ –भकुआ की तरह इलाज के नाम पर अस्पताल की सुविधा भी नहीं मिली ?
अग्रसेनजी खाली नाम के ही अग्र थे वे दिल के बड़े नरम थे  उनका वोट बैंक न तो उग्रवादी था और न नक्सली जो कंस की ज्यादतियों के खिलाफ मोर्चा खोल देता या धरना –प्रदर्शन करता ? उसने सोचा जाने दो महाराज को जेल में पिता –पुत्र का आपस का और घर का मामला है, वो अपने आप निबटेंगे, हमें काहे का टेंशन लेना ?
कंस का एक सिस्टर था, उनका नाम श्रीमती देवकीजी था और उनके पति का नाम वसुदेवजी था . वसुदेवजी का मथुरा जिले के ही अंदर एक छोटा मोटा राज्य भी था ,जो आजकल के किसी ब्लोक या प्रखंड के जितना रहा होगा ? वसुदेवजी बहुत जेंटलमैंन थे लेकिन कंस को लगा कि, ये साहब बाद में उसके लिए वैसे ही प्रॉब्लम करेगा जैसा जयप्रकाश नारायण ने इंदिराजी के लिए किया था ? तो उसने मथुरा के अघोषित आपातकाल के अंतर्गत वसुदेवजी को मीसा में जेल में बंद कर दिया .
उसे लगा कि, बहन को अगर बाहर रखेगा, तो उसके घर पर लोग आएगा, उनका समर्थक आएगा, गुप्त बैठक करेगा तो उसने जीजा के साथ बहन को भी जेल में बंद कर दिया और रहने को एक बड़ा बैरक दे दिया ताकि वो लोग फेमली लाइफ भी एंजॉय कर सकें. वसुदेवजी और देवकीजी को जेल में अब करने को कोई काम नहीं था ? न खेत न खलिहान न चूल्हा चौका, बस खाओ, कपड़े –बर्तन धोओ और रात दिन कंस को कोसो ?
कंस को वैसे देवकी से कोई ख़ास प्रॉब्लम नहीं था लेकिन उसको कोई बतलाया कि, तेरा भांजा एक दिन तेरा  इमरजंसी  को ख़तम करके तेरा प्रोपर्टी का मालिक बनेगा ? कंस यह सुनके डर गया और उसने सोचा कि बहन को फ्री नहीं छोड़ने का, उसको इधरीच ही रखने का जेल में नहीं तो कहीं विदेश न भाग जाए, वसुदेव को लेके, नीरव मोदी और विजय माल्या को लेके ?
आज का बात होता तो कंस का डाक्टर्स लोग आप्रेशन करके माताजी का गर्भाशय ही निकाल देता फिर न रहता बांस और न बजती बांसुरी ? पर उस ज़माने में सर्जरी इतनी उन्नत नहीं थी ? इसलिए उसको भ्रूणहत्या के लिए मजबूर होना पड़ा . इस मुसीबत के चलते देवकी और वसुदेवजी को 8-9 साल तो वैसे ही जेल में रहना पड़ा और उसके बाद भी कई साल, शायद कृष्णजी के बालिग होने तक ?
कंस के खिलाफ़ भ्रूण-हत्या के लिए न तो कोई एफ.आई.आर ही दर्ज हुई और न मानव अधिकार और स्त्री –मुक्ति वालों ने कोई धरना- प्रदर्शन, आंदोलन ही किया ? कंस ने जेल के स्टाफ के ही भरोसे न रहकर, कई सादी वर्दीवाले सी.बी.आई. के लोगों को भी अतिरिक्त सावधानी के नाते जेल में तैनात कर दिया क्योंकि कैदियों के रिश्तेदारों से 1-1,2-2 रूपये मांगनेवाले और उनके द्वारा लाए गए बीड़ी के  बंडलों में से आधा से ज्यादा गायब कर देने वाली मानसिकता वाले सिपाहियों पर कंस को भरोसा नहीं  था ?
कहाँ जो देवकी माता कभी z +सिक्योरिटी में घूमती थी अब सी.बी.आई. की निगरानी में थे ? गर्भावस्था में न खाणी न खुराक, आयरन, कैल्शियम और प्रोटीन का तो बात ही छोड़ दो ? हिमोग्लोबिन गिरकर 3.5 हो गया पर देवकी माता ने भी कान्हा को जन्म देने की ठान ली थी ?
देवकी माता एक वीर -माता  और साहसी नारी थी उन्होंने न अपने कष्टों और संघर्षों की परवाह की और न अपने निश्चय से ही डिगी, उनको मालुम था कि कंस की हिटलरशाही को समाप्त करके यदि कोई मथुरा में लोकतंत्र की पुनर्स्थापना कर सकता है तो केवल श्रीकृष्ण ही ?
एक कन्या को मारने के कुछ दिन बाद से  ,कंस के वैद्य दुबारा माता देवकी का नाड़ी परिक्षण शुरू कर देते और फिर अगली डिलीवरी की अनुमानित डेट बता देते थे और बच्चा होने के बाद कंस फिर बैरक नंबर 7 में चला जाता था .कंस इतना क्रूर और वहमी था कि, बच्चों को मारने का काम किसी दाई या जल्लाद को न सौंपकर खुद अपने हाथ से बच्चे को जमीन में पटककर मारता था ताकि बाद में शक की कोई गुंजाईश ही न रहे ?
पता नहीं ये कौन से सन की बात है पर उस साल सौंण -भादों के महीनों में मथुरा में केरल जैसी तो नहीं पर उत्तराखंड जैसी वर्षा जरूर हो रही थी. वह भादों के महीने की एक रात थी और शायद काली रात ही रही होगी वरना चांदनी रात होती तो सब गड़बड़ हो जाता ? अचानक आसमान में रह-रहकर जोर –जोर से बिजली कडकने लगी.
इस  बार शायद वैद्यों को यह लगा था कि, डिलीवरी असूज में होगी या भादों के लास्ट में  तो अभी जेल में कोई दाई या नर्स भी नहीं भेजी गई थी, बिजली के कड़कने से पहरेदार भी लोग देवकीजी के कराहने की आवाज भी नहीं सुन पाए ? फिर  एक बार आसमान बड़े जोर से कड़का और अचानक पूरे मथुरा के पूरे दियों और मशालों की लाइट एकसाथ चली गई, जैसे आंधियों के झोंकों ने सबको एक साथ फूकमार कर बुझा दिया हो ?
पहरेदारों को भी ऐसे नींद आ गई ,जैसे किसीने सब को क्लोरोफार्म सुंघा दिया हो ? और कान्हा के रोने की आवाज सुनकर वसुदेव को ये देखकर बड़ा सरप्राईज हुआ कि, बैरक का गेट भी खुला हुआ है और भगवान भी इतने चालाक कि, एकआध बार ही रोके चुप हो गए ताकि पहरेदारों की नींद डिस्टर्ब न हो और टुकुर –टुकर अपनी माँ को देखने लगे और मंद –मंद मुस्काने लगे .
माता देवकी के चेहरे पर अपने लाल को देखकर जो ख़ुशी की चमक आई तो उनका सारा दर्द ,कष्ट और पीड़ा गायब हो गई ? उसने नन्हे कान्हा की बलैया ली और उनकी कई भुक्की पीकर उसे अपने सीने से लगा लिया.
अचानक वसुदेवजी का दिमाग कंप्यूटर से भी तेज चलने लगा, वो अपनी पत्नी से बोले, “ अरे सुनती हो, कान्हा को लेकर भाग जाऊं क्या, अच्छा मौका है, मै एकबार बैरक के बाहर निकलकर भी चेक करके आया हूँ , गेट नंबर 2 और 3 और मेनगेट भी खुला है और पहरेदार फसोरके सोए हुए हैं, ऐसा मौका दुबारा फिर नहीं मिलेगा, मै एक चांस और रिस्क ले लेता हूं और फिर बाद में जो होगा, वो देखा जाएगा ?
माता बोली गो वसुदेव गो, क्विक और फ़ास्ट एंड टेक केयर ऑफ़ कान्हां पर जाओगे किधर ? पहले ईधर से तो बाहर निकलुं फिर सोचता हूँ रस्ते में ? उन्होंने कान्हा को गोद में लिया और निकल पड़े और जेल के बाहर आ गए और जोर से भाग खड़े हुए. वसुदेव के पास छाता भी नहीं था तो यह देखकर वरुणदेव ने भी बरसने से 10 मिनट का ब्रेक ले लिया , खाली आसमान जोर- जोर से गरजता रहा, बिजलियों को भी चमकने से मनाकर दिया गया, ताकि कोई वसुदेव को देख न ले .
वसुदेव बारिस से बचने के लिए ने रस्ते के किनारे रखा एक सब्जीवाले का टोकरा उठा लिया और बहुत फ़ास्ट चले तो पंद्रह –बीस मिनट में ही यमुना के किनारे पहुँच गए. मौसम विभाग की चेतावनी के अनुसार जमुना का जलस्तर भी खूब बढ़ा हुआ था. अब सबसे बड़ी चुनौती जमुना को पार करने की थी ? वसुदेव ने सोचा कि, यमुना को खड़े –खड़े तैरकर पार करने के अलावा दूसरा कोई चारा नहीं,
वसुदेव ने कृष्ण को टोकरे में लिटाया, टोकरे को सर पर उठाया और भगवान का नाम लेकर पानी में उतर पड़े . अरे ये क्या चमत्कार , लहरें जैसे थम सी गई हों ,वसुदेव जहाँ पैर रखते वहां पानी का जल -स्तर कम होकर उनकी कमर तक ही सीमित रहता, जैसे किसी ने रिवर क्रॉस करने के लिए उनके लिए ग्रीन कारीडोर बना दिया हो ? उधर आधी नदी में शेषनाग भी चुपके से आकर वसुदेव के पीछे चलने लगे और कान्हा के सर पर फन का छाता बना दिया ?
पहले तो वसुदेव ऐनाकोंडा जैसा बड़ा सांप देखकर डर गए तो सांप मनुष्य का आवाज में बोला, “ फ्रेंड ,फ्रेंड. डोंट वरी, चलते रहो ” ?उसने कान्हा को भी बोला, “ हेलो बेबी ,हाउ आर यू, सो क्यूट, हैप्पी बर्थडे टुयू ”. कान्हा ने भी हल्के से मुस्कराकर थैंक्यू बोला और फिर से सो गए . नदी के आगे का और अपने मित्र नंद के घर का रास्ता वसुदेव को मालुम था. वो अच्छे दिनों में अपने मित्र नंद के साथ यहाँ कई बार स्वीमिंग के लिए आते थे.
यह ईलाका शायद हो सकता है, कंस का अंडर में न आकर अंग्रेजों के अंडर में रहा हो ? यह भी एक मजेदार बात है कि, उस दिन वसुदेव को देखकर न कुत्ते भौंके और न सियार रोये ? यहाँ तक कि गोकुल का गाय –भैंस भी सब चुप रहा ? यशोदा मैया का द्वार पर जाकर वसुदेव ने आवाज लगाई, “ अरे ओ नंद भैया ,उठो ,जरा तनिक दुआर खोलो, का घोड़े बेच के सोये हो का ” ?
जसोदा ने आवाज सुनकर, नंद को हिलाते हुए कहा, “ अरे ओ बलराम के बापू, जाके तनिक दुआर खोलके देखो, इतने भिनसारे कौन आया है ?” कौन है भैया, इतना रात गए, कहकर नंद ने दरवाजा खोला तो सामने वसुदेव को देखकर और साथ में न्यू-बोर्न बेबी देखकर हैरान रह गया और पीछे –पीछे जसोदा मैया भी लालटेन लेकर आ गई और बोलि, भौजाई किधर है नंद भैया ?
नंद बोले , भाभी अभी जादा टैम नहीं है, जेल से कोई पैरोल पर छूटकर नहीं आया हूँ बल्कि भागकर आया हूँ और संक्षिप्त स्टोरी ये है और फिर मुझे फिर बैरक में बंद होने वापस जाना है नहीं तो वो लोग देवकी को बहुत टार्चर करेगा, सो फ़िलहाल यू टेक केयर ऑफ़ कृष्णा और आगे का बाद में देखेंगे ? उन्होंने कृष्ण को बाय बोला, उसका पप्पी लिया और निकल गए ——-
आगे का स्टोरी बड़ा लंबा है कि, कैसे उन्होंने कंस को मारा आदि, वगेरा-वगेरा.
लेकिन उस दिन बड़ी भाग दौड़ और आपाधापी रही उनके जन्म के दिन लेकिन वो दिन और आज का दिन है कि,—–उनका जन्मदिन अब तक बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है ? घटना और किस्से के हिसाब से रात 12 बजे का टाइम सूट भी करता है और मैच भी करता है —- जय श्रीकृष्णा .