दुकानी म हौर कई पछाणवाला भी मिल्गिन,दुआ –सलाम व्हे लाला न ऊँ तैं भी चाय क पुछी .भैजी, प्या तुम हमुन अब्बी गिलास भ्वां धरिन .अरे भुला ,दुई चा बणे ,अर पकोड़ी गरम कि सुबेरी की ? न लालाजी अब्भि आधा घंटा पैली बंणाईन ,थोड़ा ठंडी जरूर छन .
अच्छा चल १०० ग्राम पकोड़ी भी दे अर एक –दुई भुटी मर्च भी डाली . लाला, पचास गराम भौत, खिम्मा न बोलि.अरे खा यार, न झुरो जुकडू ,पैसा मै द्युलू ,विनोद न बोली .अरे मै अब्बी खाणु खैक आई, तेरी कसम .
परसी भौत झगड़ा ह्व़े खिम्मा मेरु पुनर्वास म. माँ की—धी की ह्व़े पड़ी . मैंन साब की गरदन पकड़ दिनि , मैंन बंद ह्व़े जांण थौ वै दिन पर अपणा जांणन्नवाला दुई चारु न छुड़े दिनी .
मैंन बोलि, साब तुम खुद देखा ,मौका –मुआयनु करा ,तब रिपोर्ट बणा ? सैडा शहरवालों पुछा , हम कुई झूठ बोल्ना त हम तैं फांसी पर चढ़ा . हम टी सिर्फ, इंसाफ करणक बोल्ना .मैंन भी सोचियालु थौ कि ,आज एक दुयों तैं, बेटों तैं ठिकाणा लगेद्यूं, बाद म जु होलु देखे जालु ?
अरे कख गय ला तेरी चा, बेड़ ऋषिकेश बिटि औणी क्या ? ना भैजी बंणगी, थोड़ा पकोड़ी थौ गरम करनु — ल्या . खिम्मा, आज मै बड़ा बाबु नौटियाल तै मिल्यों,वैन बोलि सीधा एस.डी.एम कोर्ट म प्रार्थना –पत्र द्या, कलेक्टर का नौ पर. मै त अब यूँ पर सीधा जज –कोर्ट म केस करदौं ?
“ इनकलाब –जिंदाबाद ;जो हमसे टकरायेगा ,चूर –चूर हो जाएगा ; विस्थापित एकता, जिंदाबाद ; पहले बसाओ फिर बाँध बनाओ ; डाम प्रशासन मुर्दाबाद ”. दुई –तीन सौ आदमियों कु जलूस मत्थी राज –दरबार पहुंचिगी थौ. राज –दरबार अब डाम –दरबार बंणगि थौ. डाम का राजा –महाराजा वक्खी बैठदा था .वना वूँका दर्शन कम ही होंदा था ?
हल्ला सुणीक सब्भी औफ़िसवाला भी भैर ऐगी था .कुछ त लोकल था अर बाकियों तैं भी शहरवाला पछाण दा था . राज –दरबार की चढ़ाई चढदा – चढदा, कईयों का गिच्चा उबेगी था. घाम अलग थौ लगणु ,पसीना अलग थौ बगणु ?लोग खड़ा होणक छ्यलु था खोजणा .
अबे पाणी त पिलौ , कंडारी न विजय तैं बोली. भैजी, साब देख्लु त नौकरी बिटि निकाळ देलु ? ठीक त, ब्याखन बेटा बजार न ऐ, मोहल्ला म दिखेणी त फिर देखी ,सीधा साब का डेरा ही जै ? मजाक भी चलनी थै अर कई औफ़िसवाला कई जग पाणी लियाई था . नौकरी अपणी जगा थै अर भाईबंदी अपणी जगा थै ?
जनु कुई धर्मयुद्ध हो ? काम भी करेणा, पैसा भी लियेणा ,रिश्तेदारी भी निभेणी, कानून की मज़बूरी भी बतेणी त काम बड्न्न कु रस्ता भी बतोंण लग्यां अर साब म सिफारिश भी करेणी ? सब एक जादू का खेल की तरों थौ ?
गंगाजी का ऐंच एक पुल थौ. टेहरी शहर तैं भैर की दुनिया से जोड्नवालु . वै पुल का पल्ला किनारा पर कई बरसु से कई जनानी धरना पर थैं बैठीं. धरना स्थल पर एक हनुमानजी की मूर्ती भी थै थरपीं.
धरना का बाद कभी हनुमानजी की आरती होंदी अर कभी रामचंद्रजी की त कभी सुंदरकांड कु पाठ . धरना दिन म दुई –ढ़ाई बजी शुरू होंदु अर श्याम 4-5 बजि तक ख़तम .सर्दी हो ,गर्मी हो या बरसात, कई बरसु से यु सिलसिला लगातार चल्नु थौ.
अहलकारी मोहल्ला की सकलानी पुफु कु थौ यु धरना .वूं गलि अहलकारी मोहल्ला , पुर्बियाणा मोहल्ला की दुई –चार जनानी अर बजार की हौर भी कई जनानी रंदी थै बैठीं — पंजाबी भी अर देसी भी अर कभी नुकटी की माँ भी.
“ जय हनुमान ज्ञान गुण सागर ,जय कपीश तिहु लोक उजागर ”, ब्याखंनी बखत आरती अर प्रार्थना का सुर रोज ही सुणेदा था ?“ सच्ची मेरी गंगा माई होलि त यूँ पाप्यों कु अवश्य नाश करली, कना माचू शहर डुबोंण पर लग्याँ ”, कई जनानी रोज रंदी थै बोल्न लगीं .भुली, भोळ मंगलवार ,जरा रोट लिये हनुमानजी कु .
कई लोगु लग्दु ,जनान्यों कु यु अच्छु टाईम पास ? रमेश न अपणी नोनी तैं पुछी “ अरे तेरी माँ कख बेटी ” ? माँ ,धरना म जाईं .कब तक आली ? चार –पांच बजी तक ऐ जालि .
कैलाश न एक दिन अपणी घरवाली तैं पुछि, “ कख चली भाई, दिन दुफेरी” ? इच्छी धरना म जाणु, जनानिंन बोलि. रोज –रोज क्या जाणु जरुरी छ ? रोज को जाणों ? फिर भी क्या फायदा वख जैक ? क्या तेरा बैठण से डाम रुक जालु ? देखा एक त मै सिर्फ ऐतवार कु जांदों ? तुम, सबेर कु नाश्ता खलैयालि ,दिन कु खाणु व्हेगी, ब्याखन चा का टैम तक ऐजौलु नितर बबली चा बणेदेली ?
आदमी थोड़ा डरगी, “ मेरु मतलब थौ, घर म थोड़ा आराम करदी ?” मेरा आराम कि भारी फिकर लगीं तुम तैं ?कनु , तुम करादौं आराम, मेरा बगर कुछ छुटण लग्युं क्या यख ? अच्छा, जा भईया जा , त्वेक त कुछ बोल्नु बेकार ,आदमी न बोलि .
तुम क्या चांदा, कि रात –दिन मै लग्युं रौं, तुमारी सेवा –टहल म ? अर तुम जु रात दस –दस बजी तक रंदा ताश खेलणा, तब ? वां से त अच्छु ही छ धरना म बैठणु ? भगवान कु नौ भी लिये जांदु अर थोड़ा भौत मन भी हल्कु व्हे जांदु . यु चुल्लु –चौका त रातदिन कू, यई पर खपगी मेरी सैडी जिंदगी ?
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