धीरेन्द्र प्रताप ने कहा कि कांग्रेस ने उत्तराखण्ड राज्य बनने के बाद अपने पहले चुनावी घोषणा पत्र में विधानपरिषद के गठन का राज्य की जनता को विश्वास दिलाया था परन्तु तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री नारायण दत्त तिवारी ने बाद में इस प्रस्ताव को ठण्डे बस्ते मे डाल दिया। धीरेन्द्र प्रताप ने कहा कि पिछले 18 वर्षो में लगातार यह बात सिद्दत से महसूस की जाती रही है कि राज्य के कई ऐसे लोग जो अच्छे राजनेता, अच्छे अधिकारी, अच्छे साहित्यकार, अच्छे समाज सेवी व अन्य वर्गों के लोग थे विधानसभा में न जा सकने के कारण राज्य के विकास और वैभूति में अपना योगदान नहीं दे सके हैं। उन्होंने कहा राजस्थान और आसाम इस दिशा में विधानसभा से ऐसे प्रस्ताव पारित कर संसद को भेज चुके हैं। तमिलनाडू, उडीसा और पश्चिम बंगाल ने भी इस दिशा में प्रयास किये हैं। उन्होंने कहा कि अब समय आ गया है कि उत्तराखण्ड सरकार भी इस दिशा में पहल करे ताकि संसद संविधान के अनुच्छेद 171 के तहत संसद के दोनों सदनों में साधारण बहुमत से इस प्रस्ताव को पारित कर महामहिम राष्ट्रपति से मंजूरी लेकर उत्तराखण्ड में भी विधानपरिषद गठन का मार्ग प्रशस्त करे। धीरेन्द्र प्रताप ने उम्मीद जताई कि मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत इस प्रस्ताव को गम्भीरता से लेंगे व विधानसभा के आगामी सत्र में इस प्रस्ताव को लाकर उत्तराखण्ड राज्य के संतुलित विकास के लिए एक नये अध्याय की शुरूआत करेंगें।
देहरादून, उत्तराखण्ड प्रदेश कांग्रेस कमेटी के मुख्य प्रचार समन्वयक धीरेन्द्र प्रताप ने उत्तराखण्ड में भी उच्च सदन यानी विधान परिषद गठन किये जाने की मांग की है।
उपराष्ट्रपति एम वैंकय्या नायडू के हाल में इस सम्बन्ध में दिये गये वक्तव्य का पुरजोर समर्थन करते हुए धीरेन्द्र प्रताप ने कहा कि आवश्यक नीति निर्माण में संयुक्त विचार देने तथा सार्थक बहस के लिए इस प्रकार के सदन की महती आवश्यकता रहती है। उन्होंने कहा कि फिलहाल भारत में 7 राज्यों उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, बिहार, जम्मू कश्मीर, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र में ही दो सदनों की व्यवस्था है, याने कि देश के एक चैथाई राज्यों में ही विधानसभा के साथ-साथ विधान परिषद का भी गठन किया गया है। अन्य राज्यांे में विधानसभा जैसा चाहे वैसा विधेयक पास कर सकती है और विधानपरिषद की विशेषज्ञता का लाभ उन राज्यों को नही मिल रहा है। उन्होंने विधान परिषद गठन के संविधान के अनुच्छेद 169 के तहत 18 सितम्बर से उत्तराखण्ड विधानसभा के शुरू होने वाले सत्र में राज्य सरकार से 2 तिहाई बहुमत से इस प्रस्ताव को पास कर संसद के समक्ष भेजने की मांग की है।