शिरगुल महाराज मंदिर में दर्शन करने आए भक्तों के मन में अगर किसी प्रकार की समस्या या उलझन है तो वहां इसका समाधान यहां पानी की कोशिश करते हैं। बता दें कि शिरगुल महाराज मंदिर के पुजारी भगवान को साक्षी मानकर भक्तों के प्रश्नों का समाधान करते हैं।

शिरगुल महाराज मंदिर

हिमाचल प्रदेश जितना प्राकृतिक रूप से समृद्ध है, उतना ही यहां पर देवी देवताओं के पवित्र स्थान भी मौजूद हैं। आज हम हिमाचल के सिरमौर जिले स्थित शिरगुल महाराज की मंदिर की चर्चा करेंगे और इस मंदिर की महत्ता आपको बताएंगे।
हिमाचल प्रदेश के पहाड़ों में सबसे ऊंची चोटी चूड़धार है, जहां शिरगुल महाराज का मंदिर बना हुआ है। मंदिर में स्थापित भगवान शिव को सिरमौर और चौपाल का देवता के रूप में स्थानीय लोग जानते हैं। इस मंदिर को लेकर स्थानीय लोगों के अंदर बेहद अटूट श्रद्धा है और ऐसा कहा जाता है कि ‘शिरगुल महाराज’ के समक्ष अपनी समस्याओं को बताने से उनका निदान भी मिलता है। ऐसे ही कई दिलचस्प किस्से जुड़े हुए हैं इस मंदिर को लेकर। आईये जानते हैं…

कहा जाता है कि आदि शंकराचार्य जब हिमाचल प्रवास पर आए थे, तब उन्होंने इस ऊँची पहाड़ी पर एक शिवलिंग की स्थापना की थी और तभी से यह मंदिर प्रचलित है। इस पहाड़ी पर एक विशाल पत्थर है जिसको लेकर पौराणिक कथाओं में कहा जाता है कि यहां भगवान शिव अपने परिवार के साथ निवास करते थे।

वहीं मंदिर को लेकर एक और कथा प्रचलित है, जिसके अनुसार प्राचीन समय में चूरू नाम का एक शिव भक्त अपने बेटे के साथ इस मंदिर में दर्शन करने के लिए आया करता था। एक दिन अचानक एक विशाल सर्प निकलकर चूरू और उसके बेटे को डंसने के लिए आगे बढ़ा। तभी चूरू ने भगवान शिव को याद करते हुए अपने प्राणों की रक्षा की गुहार लगाई। चूरू की गुहार पर एक विशाल पत्थर आकर उस सांप के ऊपर गिर गया और इस तरीके से चूरू और उसके बेटे के प्राणों की रक्षा भगवान शिव ने की। कहा जाता है कि इस घटना के बाद से इस स्थान को ‘चूड़धार’ के नाम से भी जाना जाने लगा।

बावड़ियों को लेकर कहानी

शिरगुल महाराज मंदिर के पास दो बावड़ियां बनी हुई हैं, जिनको लेकर लोगों में गहन आस्था है। कहा जाता है कि इन बावड़ियों में स्नान के पश्चात ही शिरगुल महाराज के दर्शन का फल प्राप्त होता है। इन दोनों बावड़ियों में से एक-एक लोटा जल लेकर अगर अपने सर पर डाला जाए तो आपके मन की मुराद शिरगुल महाराज पूरी करते हैं। इतना ही नहीं, सिरमौर जिले में जब भी किसी नए मंदिर की स्थापना होती है तो इन बावड़ियों में से जल भर देवी देवताओं को स्नान कराया जाता है।

शिरगुल महाराज मंदिर में दर्शन करने आए भक्तों के मन में अगर किसी प्रकार की समस्या या उलझन है तो वहां इसका समाधान यहां पानी की कोशिश करते हैं। बता दें कि शिरगुल महाराज मंदिर के पुजारी भगवान को साक्षी मानकर भक्तों के प्रश्नों का समाधान करते हैं।

कैसे पहुंचे?

चूड़धार पर्वत साल भर बर्फ से घिरा रहता है ऐसे में यहां आने के लिए गर्मियों का मौसम सबसे उपयुक्त है। चूड़धार पर्वत पर पहुंचने के लिए नौराधार होकर जाना सबसे उपयुक्त बताया गया है जो कि यहां से 14 किलोमीटर दूर स्थित है।

 

#शिरगुल_महाराज_मंदिर

– विंध्यवासिनी सिंह