उत्तराखंड की भाजपा सरकार द्वारा पाँच पहाड़ी जिलों-चमोली, रुद्रप्रयाग, उत्तरकाशी,बागेश्वर और चंपावत में स्थित राजीव नवोदय विद्यालयों को देहरादून शिफ्ट करने की खबर समाचार पत्र-हिंदुस्तान के जरिये सामने आयी है. गौरतलब है कि उत्तराखंड में नवोदय नाम वाले दो तरह के विद्यालय हैं. एक जवाहर नवोदय विद्यालय हैं,जो केन्द्रीय मानव संसाधन मंत्रालय द्वारा संचालित किए जाते हैं. दूसरे राजीव नवोदय विद्यालय हैं,जिन्हें उत्तराखंड सरकार संचालित करती है. ये आवासीय विद्यालय हैं,जिनमें प्रवेश के लिए प्रतियोगी परीक्षा होती है. इन विद्यालयों में विभिन्न सरकारी विद्यालयों से शिक्षक डेपुटेशन पर जाते हैं. उत्तराखंड के सभी 13 जिलों में एक-एक राजीव नवोदय विद्यालय हैं. अब 13 में से पाँच विद्यालयों को सरकार देहारादून के नवोदय विद्यालय में विलय करने की तैयारी कर रही है.जो प्रस्ताव सामने आया है,उसके मुताबिक सरकार द्वारा वर्तमान में इन पाँच विद्यालयों में पढ़ने वाले छत्र-छात्राओं को देहारादून शिफ्ट करने की तैयारी है.  इसका मतलब यह है कि अगले सत्र से पहाड़ के इन जिलों के लिए इन नवोदय विद्यालयों में प्रवेश की राह और दुर्गम हो जाएगी. इसका अर्थ यह भी है कि आवासीय सुविधा समेत गुणवत्तापरक सरकारी शिक्षा यदि चाहिए तो देहारादून की राह पकड़ो,पहाड़ में इसको उपलब्ध करवाने के लिए सरकार राजी नहीं है.  यह तो उत्तराखंड राज्य बनने के अर्थ पर ही प्रश्न चिन्ह है ! राज्य की लड़ाई इसलिए लड़ी गयी कि सार्वजनिक सुविधाओं का विकेन्द्रीकरण हो,सार्वजनिक सुविधाएं दूरस्थ पहाड़ी इलाकों तक पहुंचे. लेकिन त्रिवेन्द्र रावत के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार तो पहाड़ में स्थित विद्यालयों तक को देहारादून ले जाने पर उतारू हो गई है !सरकारी तर्क है कि नवोदय का देहारादून में ढांचा मजबूत है. यह मजबूत ढांचा किसने बनाया? जाहिर सी बात है कि सरकार ने. तो फिर पहाड़ में क्यूँ नहीं बनाया ? सवाल यह भी है कि अब भी पहाड़ के नवोदयों में प्रचंड बहुमत वाली डबल इंजन की सरकार को मजबूत ढांचा बनाने से कौन रोक रहा है ?
नवोदय विद्यालय तो सबसे ताजा उदाहरण है. लेकिन पिछले कुछ समय के निर्णयों को देखें तो ऐसा लगता है कि त्रिवेन्द्र रावत की सरकार ने जैसे सरकारी शिक्षा का बोरिया बिस्तर बांधने का अभियान छेड़ा हुआ है.पहाड़ के नवोदय विद्यालय बंद करने के निर्णय से पहले इसी सितंबर महीने में हुई मंत्रिमंडल की बैठक में 11 इंटर कॉलेज और 23 हाई स्कूल बंद करने का फैसला लिया गया. पिछले वर्ष भी दस या उससे कम संख्या वाले सरकारी प्राथमिक और जूनियर स्कूलों को बंद करने की खबर आई थी. इन विद्यालयों की संख्या लगभग तीन हजार के करीब बैठ रही थी. इन में तैनात शिक्षकों को अन्य विद्यालयों में  अन्य विद्यालयों में विलय करने का निर्णय लिया गया. यह परोक्ष रूप से शिक्षकों के पदों की कटौती का भी अभियान है. जितने स्कूल कम  होंगे,भविष्य में शिक्षकों के पद भी उसी अनुपात में कम हो जाएँगे.स्कूल बंद करने की यह व्यग्रता इस कदर है कि राज्य सरकार के वर्ष 2018-19 के बजट भाषण तक में स्कूल बंद करने के फैसले का उल्लेख था.
तो एक तरफ सरकारी विद्यालयों की बंदी का अभियान है,दूसरी तरफ इन विद्यालयों के भवनों को भी खुर्द-बुर्द करने की तैयारी भाजपा सरकार ने कर ली.भाजपा के मातृ संगठन आर.एस.एस. के आनुषांगिक संगठन विद्या भारती को लगभग 350 बंद स्कूलों को देने की तैयारी में सरकार है. इस संबंध में उत्तराखंड के विद्यालयी शिक्षा महानिदेशक- कैप्टेन(से.नि.) आलोक शेखर तिवारी के हस्ताक्षरों से 12 सितंबर 2018 को जारी कार्यवृत्त के बिन्दु संख्या 17 में उक्त विद्यालयों के भवनों को विद्या भारती को देने का प्रस्ताव सरकार को भेजने का उल्लेख है. जाहिरा तौर पर प्रस्ताव भेजना तो औपचारिकता मात्र है,वरना आर.एस.एस.-भाजपा-विद्या भारती के कनैक्शन को देखते हुए साफ है कि प्रस्ताव भेजने का आदेश सरकार की ओर से महानिदेशक को हुआ होगा. इस संदर्भ में प्रस्ताव और विद्यालयी शिक्षा मंत्री अरविंद पाण्डेय की भाषा एक ही है. प्रस्ताव और मंत्री दोनों कहते हैं कि विद्या भारती को इन बंद पड़े स्कूलों के भवन देने से पलायन रोकने में मदद मिलेगी ! कैसे मिलेगी ? ये विद्यालय तो बंद इसलिए हुए कि इनमें छात्र संख्या न्यूनतम हो गयी या रह ही नहीं गयी थी. जब इनमें छात्र हैं ही नहीं तो विद्या भारती वाले पलायन किसका रोकेंगे?मकसद साफ है.पलायन रुके न रुके परंतु विद्या भारती के हाथों में और प्रकारांतर से आर.एस.एस. के हाथों में 350 स्कूलों के भवन और जमीन की सम्पदा आ जाएगी. यह सीधे-सीधे सार्वजनिक संपत्ति को मुफ्त में आर.एस.एस. के हाथों सौंपना है.
   लेकिन इस पूरे घटनाक्रम से यह साफ है कि राजीव नवोदय विद्यालय से लेकर प्राथमिक,जूनियर और इंटर तक के सरकारी स्कूलों को बंद करने के बहाने त्रिवेन्द्र रावत की सरकार तलाश रही है. यह एक तरह से उन गरीब परिवारों को शिक्षा से वंचित करने का इंतजाम है,जो मंहगे प्राइवेट स्कूलों में अपने बच्चों को नहीं पढ़ा सकते. पहाड़ में पलायन का एक बड़ा कारण शिक्षा भी है. स्कूल बंदी का यह सरकारी अभियान,यह सुनिश्चित करेगा कि जिसे भी अपने बच्चों को पढ़ाना है,वह पहाड़ में न रहे. इस तरह पहाड़ में रहने वाले के बच्चे या तो अनपढ़ रह जाएँगे या वे पहाड़ छोड़ कर जाएँगे. ऐसे करके पहाड़ खाली होगा. अभी बंद स्कूलों के भवन आर.एस.एस. को दे रहे हैं,कल को खाली पड़े घरों,बंजर खेतों का सौदा होगा. यह स्कूल बंदी का अभियान तो अपने ही राज्य में लोगों की बेदखली का अभियान है. अगर इसे रोका न गया तो कल कुछ कहने लायक स्थिति ही नहीं बचेगी.
-इन्द्रेश मैखुरी