उत्तराखंड में श्रीनगर से करीब 14 किमी दूरी पर प्राचीन सिद्धपीठ धारी देवी मंदिर स्थित है।दुनियाभर में अध्यात्म और आस्था के लिए प्रसिद्ध राज्य उत्तराखंड की अपनी अलग पहचान है। यहां कई ऐसे धार्मिक स्थान हैं जो पौराणिक काल से मौजूद हैं। प्राचीन ऋषि मुनियों की परंपरा को थामे उत्तराखंड यूं ही नहीं देवभूमि कहलाता है। यहां हर साल कई सैलानी शांत वातावरण की तलाश में आते हैं। यूं तो उत्तराखंड में अनगिनत प्रसिद्ध मंदिर मौजूद हैं लेकिन आज हम आपको यहां के एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जहां की देवी उत्तराखंड की रक्षक मानी जाती हैं।यहाँ प्राचीन मंदिर बाँध की झील में डूब गया है, लेकिन इसके बाद भी भक्तों की आस्था नहीं डिगी। धारी देवी को माँ काली के रूप में पूजा जाता है। मान्यता अनुसार माँ धारी उत्तराखंड के चार धाम की रक्षा करती हैं।इस देवी को पहाड़ों और तीर्थयात्रियों की रक्षक देवी माना जाता है।

 

मंदिर में मूर्ति जागृत और साक्षात हैं।

यह सिद्धपीठ श्रद्धालुओं की आस्था और भक्ति का प्रमुख केंद्र है। धारी गाँव के पांडेय ब्राह्मण मंदिर के पुजारी हैं। माँ काली इन को प्रकृति की देवी कहा गया है, जनश्रुति है कि यहाँ ये प्राकृतिक आपदाओं से रक्षा करती हैं, पर जब भी इन को इन की जगह से हटाने का प्रयास किया गया है, भारी आपदा आई है। इस मंदिर में माता की एक अद्भुत प्राकृतिक मूर्ति हैं जो  प्रतिदिन तीन रूप – प्रात: काल कन्या, दोपहर युवती और शाम को वृद्धा का रूप धारण करती हैं। प्राचीन देवी की मूर्ति के इर्द-गिर्द चट्टान पर एक छोटा मंदिर स्थित था – माँ धारी देवी का मंदिर अलकनंदा नदी पर बनी 330 मेगावाट श्रीनगर जल विद्युत परियोजना की झील से डूब क्षेत्र में आ गया।

केदारनाथ में प्रलय

माँ काली का रूप माने जाने वाली धारा देवी की प्रतिमा को 16 जून 2013 की शाम को मूल स्थान से अपलिफ्ट कर अस्थायी मंदिर में माँ धारी देवी की मूर्ति स्थापित की गई है।ये वही धारी माता का मंदिर है जिस को तत्कालीन उत्तराखंड सरकार ने तोड़ने के लिए आदेश दिए थे उस दौरान कुछ लोगों का कहना था कि प्रतिमा हटाने के कुछ घंटे के बाद ही उत्तराखंड में आपदा आई थी। हालाँकि कुछ लोग इस बात को अंधविश्वास मानते हैं। मौजूदा समय में बाँध से मंदिर का मूल स्थान डूब गया है। यहां के लोगों की मानें तो केदारनाथ में आया प्रलय धारी देवी के गुस्से का ही नतीजा था और उस के बाद उत्तराखंड और केदारनाथ में प्रलय रूपी बाढ़ आई थी।

माँ धारी देवी मंदिर का इतिहास 

1807 से पहले के साक्ष्य गंगा में आई बाढ़ में नष्ट हो गए हैं। 1803 से 1814 तक गोरखा सेनापतियों द्वारा मंदिर को किए गए दान अभी भी मौजूद हैं। बताया जाता है कि ज्योतिलिंग की स्थापना के लिए जोशीमठ जाते समय आदि शंकराचार्य ने श्रीनगर में रात्रि विश्राम किया था।
इस दौरान अचानक उनकी तबीयत बिगड़ने पर उन्होंने धारी माँ की आराधना की थी, जिससे वे ठीक हो गए थे।तभी उन्होंने धारी माँ की स्तुति की थी।

पुजारी का कहना है कि माँ की जो इच्छा हो उसे पूरा किया जाए। माँ दो बार अपना जवाब सुना चुकी हैं कि उन्हें यहाँ से नहीं हटाया जाए।
यहाँ के पुजारी बताते हैं कि द्वापर युग से ही काली की प्रतिमा यहाँ स्थित है।ऊपर के काली मठ एवं कालिस्य मठों में देवी काली की प्रतिमा क्रोध की मुद्रा में हैं…पर धारी देवी मंदिर में वह कल्याणी परोपकारी शांत मुद्रा में हैं। उन्हें भगवान शिव द्वारा शांत किया गया जिन्होंने देवी-देवताओं से उनके हथियार का इस्तेमाल करने को कहा। पुजारी का मानना है कि धारी देवी, धार शब्द से ही निकला है। यहाँ उनके धार की पूजा होती है जबकि उनके शरीर की पूजा काली मठ में होती है।

 

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