देहरादून, देहरादून में आयोजित एक कार्यक्रम में प्रमुख विशेषज्ञों ने दुर्लभ बीमारियों के बारे में चर्चा करने के दौरान इस बात पर जोर दिया कि इन समस्याओं से निपटने के लिये तत्काल कदम उठाने की जरूरत है। नेशनल हेल्थ मिशन (एनएचएम), इंडियन एकेडमी आॅफ पीडियाट्रिक्स (आईएपी) और उत्तराखंड सरकार द्वारा आयोजित, इस कार्यक्रम में कई जाने-माने विशेषज्ञ सम्मिलित थेे।
विशेषज्ञों में डाॅ. मधुलिका काबरा (यूनिट आॅफ जेनेटिक्स, एम्स), डाॅ. सीमा कपूर (एसोसिएट प्रोफेसर, डिपार्टमेंट आॅफ पीडियाट्रिक्स, मौलाना आज़ाद मेडिकल काॅलेज), मनजीत सिंह अध्यक्ष (एलएसडीएसएस), युगल किशोर पंत, (एनएचएम मिशन डायरेक्टर), डाॅ. सुमन आर्य, (एडिशनल डायरेक्टर हेल्थ सर्विस), डाॅ. प्रदीप भारती (प्रिंसिपल दून मेडिकल काॅलेज), डाॅ. अलोक सेमवाल (आईएपी उत्तराखण्ड अध्यक्ष), डाॅ. रत्ना पुरी (सीनियर कंसल्टेंट, इंस्टीट्यूट आॅफ मेडिकल जेनेटिक्स एंड जेनोमिक्स, सर गंगा राम हाॅस्पिटल), डाॅ. शशांक त्यागी (लेसोसोमल स्टोरेज डिसआॅर्डर सपोर्ट सोसाइटी (एलएसडीएसएस) रिप्रेजेंटेटिव प्रोजेक्ट काॅर्डिनेटर) और उत्तराखंड में दुर्लभ बीमारियों से पीड़ित मरीज शामिल थे। यह कार्यक्रम प्रमुख रूप से उत्तराखंड में दुर्लभ बीमारियों को लेकर किये जाने वाले कार्य कहां तक पहुंचे हैं उस बारे में बताने और चर्चा करने के लिये एक मंच था। यह खासतौर से केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय (एमओएचएफडब्ल्यू) द्वारा दुर्लभ बीमारियों के उपचार के लिये लाई गई नेशनल पाॅलिसी के सार्वजनिक रिलीज के आलोक में था। डाॅ. रत्ना पुरी ने कहा कि, ‘‘लेसोसोमल स्टोरेज डिसीज (एलएसडी) क्राॅनिक बीमारियों का एक समूह है, जिसका संबंध अपंगता और मृत्यु से है। इन बीमारियों के कारण कई सारे अंग प्रभावित होते हैं और अलग-अलग मरीजों में बीमारियों का प्रसार और गंभीरता में विविधता पाई जाती है। कुछ एलएसडी में बीमारी का पता जल्द चल जाने पर उसका इलाज संभव हो पाता है और उपचार जल्दी शुरू हो जाता है। इससे मरीजों के जीवन का स्तर बेहतर बनाने में मदद मिलती है। बीमारी का जल्द पता लगाने की मुख्य चीज जागरूकता होती है। निश्चित रूप से बीमारी का पता लगने पर परिवार के लोगों में इसे आगे फैलने से रोकना भी आवश्यक होता है।’’दुर्लभ बीमारियों की तरफ कई सारे सकारात्मक कदम उठाते हुए, पिछले साल केंद्र सरकार दुर्लभ बीमारियों के इलाज के लिये यह नेशनल पाॅलिसी लेकर आई। यह पाॅलिसी काफी विस्तृत है और इसके अंतर्गत दुर्लभ बीमारियों से संबंधित लगभग सारे पहलू सम्मिलित हैं। इसके अंतर्गत दुर्लभ बीमारियों की परिभाषा, और ज्यादा जांच केंद्रों की स्थापना, उपचार और वेब आधारित आवेदनांे के लिये केंद्र और राज्य में संचित निधि तैयार करना, शामिल है। कई सारे ठोस कदम उठाये गये, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण कदम राज्य स्तरों पर इस पाॅलिसी को लागू करना है, क्योंकि स्वास्थ्य राज्य से जुड़ा मामला है। राज्य के सम्मिलित होने की आवश्यकता के बारे में बताते हुए, शशांक त्यागी (प्रोजेक्ट काॅर्डिनेटर,लेसोसोमल स्टोरेज डिसआॅर्डर सपोर्ट सोसाइटी(एलएसडीएसएस)) ने कहा, ‘‘यह नेशनल पाॅलिसी एक उल्लेखनीय कदम है, लेकिन इसका सही लाभ राज्य स्तर पर मिलते हुए देखना अभी बाकी है। दुर्लभ बीमारियों का उपचार पाने के लिये इस पाॅलिसी को जल्द से जल्द लागू करने की जरूरत है। इससे पाॅलिसी बनाने का मूल उद्देश्य और लक्ष्य पूरा करने में मदद मिलेगी। हालांकि, कुछ राज्य इस पाॅलिसी के तहत पहले ही कदम उठा चुके हैं और केंद्र को विस्तृत योजना सौंप चुके हैं। उत्तराखंड राज्य इस पाॅलिसी के अंतर्गत बतायी गयी टेक्निकल कमिटी का निर्माण पहले ही कर चुका हे। एलएसडीएसएस की तरफ से चिकित्सा क्षेत्र के लोगों को दुर्लभ बीमारी के बारे में जागरूक करने के लिये इस बेहतरीन कदम के लिये मैं सरकारी अधिकारियों को बधाई देना चाहूंगा। हमें उम्मीद है कि उत्तराखंड सरकार जल्द ही उन मरीजों के लिये केंद्र को प्रस्ताव भेजेगी, जिनमें दुर्लभ बीमारियों के होने का पहले ही पता चल चुका है।’’